जरासंध n. (सो. मगध.) वायु मत में नभस् पुत्र । भागवत, विष्णु एवं मत्स्य मत में राजा बृहस्थ का पुत्र । इसलिये इसे बार्हद्रथि नामांतर था । बृहद्रथ राजा ने काशिराज की जुडवॉं कन्याओं से विवाह किये थे । लंबी कालावधि तक वह अनपत्य रहा । काक्षीवत तमपुत्र चंडकौशिक ने उसे पुत्रप्राप्ति के लिये प्रसादस्वरुप एक आम्रफल दिया । दोनों पत्नियों से समभाव से व्यवहार करुँगा, ऐसी उसकी प्रतिज्ञा थी । अतः उसकी दोनों पत्नियों ने, उस फल आध आधा भक्षण किया । कुछ काल के बाद, उन्हें आधा आधा पुत्र हुआ । वे टुकडे उन्होंने दासियों के द्वारा चौराहे पर ले जा कर, रखवा दिये । पश्चात् जरा अथवा गृहदेवी नामक राक्षसी ने उन तुकडों को जोड दिया । उससे एक बालक निर्माण हुआ । बाद में इस बालक को खाने के लिये, वह खींच कर ले जाने लगी । परंतु उस बलवान् बालक को वह खींच नहीं सकी । बाद में उस बालक ने रुदन प्रारंभ किया । तब राजा बाहर आया । राक्षसी ने वह बालक उसे दे डाला । राजा ने इसका नाम जरासंध रखा
[म.स.१६-१७] ;
[मत्स्य. ५०] । “बृहद्रथ की एक ही पत्नी को बालक के दो टुकडे हुएँ । उसने उन्हें चौराहे पर फेंक दिया । जरा नामक राक्षसी उन टुकडों के पास बैठ कर, लीलावश बारबार ‘जीवित हो,’ ऐसा कहने लगी । इस मंत्र से उन जुडे टुकडों में जान आ गई,” ऐसी भी कथा प्राप्त है
[भा.९.२२] । इसका जन्म विप्रचित्ति दानव के अंश से हुआ था
[म.आ.६१.४] । यह मगध देश का अधिपति था । इसकी राजधानी का नाम गिरिव्रज था । वह द्रौपदी के स्वयंवर में उपस्थित था । परंतु धनुष्य उठाते समय, घुटनों पर गिर कर यह फजीत हुआ । अतः सीधा अपने देश वापस चला गया
[म.आ.१७८-१८१८] । रुक्मिणीस्वयंवर में भी यह उपस्थित था । वहॉं भीष्मक के सामने इसके द्वारा किया गया कृष्णस्तृतियुक्त भाषण, इसके कृष्णद्वेष से विसंगत प्रतीत होता है
[ह.वं. २.४८] । इसने अपनी दो कन्यायें तथा सहदेव की कनिष्ठ बहनें, अस्ति तथा प्राप्ति कंस को दी थीं । कंसवध की वार्ता उनके मुख से ज्ञात होते ही, इसने सेनासहित मथुरा पर आक्रमण किया । इसकी सेना तेईस अक्षोहिणी
[विष्णू.५.२२] अथवा बीस अक्षौहिणी थी
[ह.वं. २.३६] । कृष्ण तथा बलराम नगर के बाहर आ कर, इससे युद्ध करने के लिये तैयार हो गये । जरासंध जैसे शक्तिमान् शत्रु से टक्कर देनी थी । बलराम तथा कृष्ण को इस काम में प्रभावी शस्त्रों की आवश्यकता थी । अतः कृष्ण ने शार्ङ्ग धनुष, अक्षय तुणीर तथा कौमोदकी गदा प्राप्त की । बलराम ने भी संवर्तक हल तथा सौनंद मुसल प्राप्त किया
[ह.वं.२.३५.५९-६५] ;
[विष्णु. ५.२२.६-७] । जरासंध के द्वारा मथुरा के चारों द्वारों पर आक्रमण करने के लिये, जिन राजाओं की योजना की थी, वे निम्नलिखित हैः
जरासंध II. n. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्रपुत्र ।