भुज्यु (तौग्र्य) n. एक राजा, जो अश्वियों का आश्रित था । तुग्र राजा का पुत्र होने के कारण, इसे ‘तौग्र्य’, ‘तुग्र्य’ उपाधियॉं प्राप्त थी । एकबार इसका पिता तुग्र इसपर क्रुद्ध हुआ ,जिस कारण उसने इसे परद्वीपस्थ शत्रु पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया
[ऋ.१.११६.३-५, ११७.१४-१५, ११९.४] । समुद्र में प्रवास करते समय, इसकी नौका अचानक टूट पडी, जिस कारण यह बडे संकट में फँस गया । उस समय सौ पतवार वाले नाव में प्रविष्ट हो कर अश्वियों ने इसका रक्षण किया, एवं इसे सुरक्षित रुप में किनारे पहूँचा दिया । अश्वियों के पराक्रम का वर्णन करने के लिए उपर्युक्त कथा का निर्देश ऋग्वेद में अनेक बार प्राप्त है
[ऋ.१.११२.६,६.६२.६-७, ६८.७, १०.४०.७, ६५.१२,१४३.५] ।
भुज्यु (लाह्यायानि) n. एक आचार्य, जो याज्ञवल्क्य ऋषि का समकालीन था । ‘लह्यायन’ का वंशज होने के कारण, इसे ‘लाह्ययन’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ था । पतंचल काप्य नामक आचार्य के कन्या के शरीर में प्रविष्ट होनेवाले सुधन्वन् आंगिरस नामक ऋषि से इसे विशेष ज्ञान की प्राप्त हो गयी थी । उसी ज्ञान के बल से इसने याज्ञवल्क्य ऋषि को वादविवाद में परास्त करना चाहा । किन्तु अन्त में उस वादविवाद में इसका ही पराजय हुआ
[बृ.उ.३.३.१] ।