यवन n. कृष्ण के द्वारा मारे गये ‘कालयवन’ राजा का नामान्तर
[म.व.१३.२९] ; कालयवन देखिये ।
यवन II. n. हैहयराज का एक साथी, जिसे सगर ने पराजित किया था । पश्चात् यह वसिष्ठ ऋषि की शरण में गया, जिसने इसे जीवितदान तो दिया; किन्तु इसका सर के बाल निकालने की, एवं दाढी रखने की सजा इसे थी
[पद्म.उ.२०] ।
यवन III. n. एक लोकसमूह, जो गांधार देश के सीमाभाग में स्थित ‘अरिआ’ एवं ‘अंर्कोशिया’ प्रदेश में रहते थे । प्राचीन वाङ्मय में ‘अयोनियन’ ग्रीक लोगों के लिए ‘यवन’ शब्द प्रायः प्रयुक्त किया जाता है । इन युनानी लोगों को फारसी भाषा में ‘यौन’ कहते थे, जिसका ही रुपान्तर प्राकृत भाषा में ‘यौन’ , एवं संस्कृत में ‘यवन’ नाम से किया प्रतीत होता है ।’
यवन III. n. सिकंदर के हमले के पूर्वकाल में योन लोगों का एक उपनिवेश, अफगाणिस्तान में बल्ख एवं समरकंद के बीच के प्रदेश में बसा हुआ था, जिन लोगों का राजा ‘सेर्क्सस’ था । पाणिनि के व्याकरण में ‘यवन लिपि’ का निर्देश है, जो संभवतः प्राग्मौर्य थी, एवं इन्ही लोगों के द्वारा प्रस्थापित की गयी थी
[पा.सू.४.१.४९] ;
[कात्यायन वार्तिक.३] ।सिकंदर के हमले के पश्चात्, यवन लोगों का एक उपनिवेश भारत के उत्तरीपश्चिम प्रदेश में बसा हुआ था । चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आये हुये मेगँत्थिनिअस, दिओन्सिअस आदि परदेशीय वकील यवन ही थे ।अशोक के बारहवे स्तंभलेख में, ‘योन’ लोगों के देश में महारक्षित नामक बौद्ध भिक्षु धर्मप्रचारार्थ भेजने का निर्देश प्राप्त है । ‘योन धर्मरक्षित’ नामक अन्य एक बौद्ध धर्मगुरु अशोक के द्वारा ‘अपरान्त’ प्रदेश में भेजा गया था । रुद्रदामन् के जुनागड स्तंभलेख में, अपरान्त प्रदेश का राज्य योनराज तुषाष्प के द्वारा नियंत्रित किये जाने का, एवं वह सम्राट अशोक का राजप्रतिनिधि होने का निर्देश प्राप्त है । इससे प्रतीत होता है कि, अशोक के राज्यकाल में यवन लोगों की एक वसाहत पश्चिमी भारत में गुजरात प्रदेश में भी बसी हुयी थी ।पतंजलि के महाभाष्य में, मिनैन्डर नामक यवन राजपुत्र ने ‘साकेत’ (अयोध्या) एवं ‘मध्यामिका’ नगरी को युद्ध में धिरा लेने का निर्देश प्राप्त है
[म्हा.२.११९] । आगे चल कर शुंगराजा पुण्यमित्र एवं वसुमित्र ने यवनों को पराजित किया । आंध्र राजा गौतमीपुत्र शातकर्णी ने इनका संपूर्ण नाश किया ।
यवन III. n. महाभारत के अनुसार, यवन लोग ययातिपुत्र तुर्वसु के वंशज थे
[म.आ.८०.२६] । ये लोग पहले क्षत्रिय थे; किंतु ब्राह्मणों से द्वेष रखने के कारण, बाद में शूद्र बन गये थे
[म.अनु.३५.१८] । उसी ग्रंथ में अन्यत्र इन्हे नंदिनी के योनि (मूत्र) प्रदेश से उत्पन्न कहा गया है
[म.आ.१६५.३५] ।सहदेव से अपनी दक्षिणदिग्विजय में इनके नगरों को जीता था
[म.स.२८.४९] । नकुल ने भी अपनी पश्चिम दिग्विजय में इन्हें परास्त किया था
[म.स.२९.१५ पाठ.] । कर्ण ने अपने पश्चिम दिग्विजय में इन्हे जीता था
[म.व.परि.१.२४.६६] ।भारतीय युद्ध में, ये लोग कौरवों के पक्ष में शामिल थे । कांबोजराज सुदक्षिण यवनों के साथ एक अक्षौहिणी सेना ले कर भारतीय युद्ध में उपस्थित हुआ था
[म.उ.१९.२१.२२] । भारतीय युद्ध में यवनों के साथ अर्जुन का
[म.द्रो.६८.४१,९६.१] , एवं सात्यकि का
[म.द्रो.९५.४५-४६] घनघोर युद्ध हुआ था ।