वृषादर्भि (शैब्य) n. (सो. अनु.) शिबि (वृषदर्भ) राजा का पुत्र, जिसे महाभारत में काशि देश का राजा कहा गया है
[म. अनु. ९३.२७-२९, १३७.१०] । भागवत, मत्स्य एवं वायु में इसे क्रमशः ‘वृषादर्भ’ ‘पृथुदर्भ’ एवं ‘वृषदर्भ’ कहा गया है । विष्णु में इसके नाम की निरुक्ति वृष + दर्भ दी गयी है । महाभारत में इसके ‘वृषदर्भ’
[म. अनु. ३२.४] , एवं वृषादर्वि
[म. शां. २२६.२५] नामान्तर प्राप्त है । भांडारकरसंहिता में ‘वृषादर्भ’ पाठ स्वीकृत किया गया है ।
वृषादर्भि (शैब्य) n. इसने सप्तर्षियों से किये संघर्ष की कथा महाभारत में प्राप्त है । एक बार सप्तर्षि पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर रहे थे, जिस समय इसने एक यज्ञ कर अपना पुत्र उन्हें दक्षिणा के रूप में प्रदान किया। आगे चल कर, अल्पायुत्व के कारण इसका पुत्र मृत हुआ, जिसे अकाल के कारण भूखे हुए सप्तर्षियों ने भक्षण करना चाहा। इसने सप्तर्षियों को इस पाशवी कृत्य से रोंकना चाहा, किन्तु सप्तर्षियों ने इसकी एक न सुनी। अपने पुत्र के मृत देह की पुनःप्राप्ति के लिए, इसने सप्तर्षियों को अनेकानेक प्रकार के दान देने का आश्र्वासन दिया, किन्तु कुछ फायदा न हुआ। अन्त में अत्याधिक क्रुद्ध हो कर इसने सप्तर्षियों का वध करने के लिए एक कृत्या का निर्माण किया। उस कृत्या का सही नाम यद्यपि ‘यातुधानी’ था, फिर भी इसने उसे ‘मनसा’ नाम धारण कर सप्तर्षियों पर आक्रमण करने के लिए कहा। इसकी आज्ञा से उस कृत्या ने सप्तर्षियों पर आक्रमण किया, किन्तु सप्तर्षियों के साथ रहनेवाले शुनःसख (इंद्र) ने उसका वध किया
[म. अनु. २३] ।
वृषादर्भि (शैब्य) n. इसकी दानशूरता की विभिन्न कथाएँ महाभारत में प्राप्त है । इसने ब्राह्मणों को अनेकानेक रत्न एवं गृह दान में प्रदान किये थे
[म. शां. २१६.२५] ;
[अनु. १३७.१०] । अपने पिता शिबि राजा के समान, इसने भी एक कपोत पक्षी का रक्षण करने के लिए अपने शरीर के मांसखंड श्येनपक्षी को खिलाये थे
[म. अनु. ३२.३९] ।