बक n. कंस के पक्ष का एक असुर, जिसे कंस ने कृष्ण के वध के लिये गोकुल भेजा था । बगुले का वेश धारण कर यह गोकुल गया । वहॉं गोप सखाओं के साथ क्रीडा में निमग्न कृष्ण को देख कर इसने उसे निगल लिया । कृष्ण इसके शरीर में पहुँच कर इसे पीडा से दग्ध करने लगा । अतएव इसने उसे तत्काल उगल कर, यह अपनी पैनी चोंच से उसे मारने लगा । इसका यह कुकृत्य देख कर कृष्ण ने इसकी चोंच के दोनों जबडों को चीरकर इसका वध किया
[भा.१०.११] । ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, पूर्वजन्म में यह सहोत्र नामक गंधर्व था । यह कृष्णभक्त था, और दुर्वास ऋषि के आश्रम में रहकर, कृष्ण की प्राप्ति लिए इसने अत्यधिक तपस्या भी की । एक वार कृष्ण की पूजा के हेतू पार्वती के सरोवर से कमल तोडने के अपराध में, वहॉं के रक्षकों द्वारा यह शिवजी के सम्मुख पेश किया गया । शिवजी ने इसकी निष्ठा को देखकर आशीष देते हुए कहा, ‘अगले जन्म में तुम्हें कृष्ण के दर्शन होंगे, एवं उन्हींके हाथों तुम्हें मुक्ति भी प्राप्त होगी’
[ब्रह्मवै.४.१६] ।
बक (दाल्भ्य) n. एक ऋषि, जो दाल्भ्य ऋषि का भाई था
[म.स.४.९,२६.५, परि.१. क्र.२१. पंक्ति१-४] । महाभारत में इसके नाम का निर्देश दाल्भ्य के साथ प्रायः हर एक जगह आया है । किन्तु, यह निर्देश कभी ‘बकदाल्भ्यौ’ (बक एवं दाल्भ्य) रुप से, एवं कभी ‘बको दाल्भ्यः’ (दल्भ का पुत्र बक) रुप भी प्राप्त है । इसीकरण यह दाल्भ्य ऋषि का भाई था, अथवा दल्म ऋषि का पुत्र था, यह निश्चित रुप से नहीं कहा जा सकता । उपनिषदों में ‘दाल्भ्य’ बक ऋषि का पैतृक नाम दिया गया है
[छां.उ.१.२.१३] ;
[क.सं. ३०.२] ; दाल्भ्य देखिये । कई विद्वानों के अनुसार, ग्लाव मंत्र एवं यह दोनों एक ही व्यक्ति थे । ‘जैमिनी उपनिषद् ब्राह्मण’ में, आज केशिनों के लिए इन्द्र को विवश करनेवाले एक व्यक्ति के रुप में, तथा कुरु-पंचाल के रुप में इसका उल्लेख किया गया है
[जै.उ.ब्रा.१.९.२.४.७.२] । तीर्थयात्रा करता हुआ बलराम, बक दाल्भ्य के आश्रम आया था । वहॉं बलराम को इसके बारे में निम्नलिखित कथा ज्ञात हुयी । उस कथा में बक दाल्भ्य के प्रत्यक्ष उपस्थिति का उल्लेख नहीं है, जिससे ज्ञात होता है कि, उस समय यह आश्रम में न था । एकबार, यह नैमिषारण्य के ऋषियों द्वारा आयोजित द्वादवर्षर्यिसत्र एवं विश्व जित् यज्ञ में भाग लेकर, पांचाल देश पहुँचा । वहॉं के राजा ने इसका उचित आदरसत्कार कर, उत्तम जाति की इक्कीस गायों को दक्षिणा के रुप में इसे भेंट की । इन गायों को स्वीकार कर, इसने उन्हें नैमिषारण्यवासे ऋषियों का प्रदान करते हुये कहा, ‘इन गायों को आप लोग ग्रहण करें, मैं सार्वभौम कुरुराजा धृतराष्ट्र के पास जाकर पुनः दक्षिणा प्राप्त करूँगा’।
बक (दाल्भ्य) n. धृतराष्ट्र के पास जाने के बाद इसे वहॉं धृतराष्ट्र द्वारा मृतक गायों की दक्षिणा प्राप्त हुयी । अपने इस अपमान को देखकर, यह कुरुराज पर अत्यधिक क्रोधित हुआ एवं उसके विनाश के लिए यज्ञ करने लगा । दक्षिणा में प्राप्त मृतक गायों को उसी यज्ञ में हवन कर, इसने धृतराष्ट्र के वंश, राज्य आदि के विनाश के लिए प्रार्थना की । इस यज्ञ का प्रभाव यह हुआ कि, धृतराष्ट्र का राज्य दिन पर दिन उजड कर नष्टप्राय होने लगा, मानों किसीने हरेभरे बन के वृक्षों को कुल्हडी से काट कर रख दिया हो । राष्ट्र की हालत देखकर, ज्योतिषियों के परामर्श से धृतराष्ट्र बक ऋषि की शरण गया, एवं राष्ट्र को विनाश से मुक्त करने की याचना करने लगा । धृतराष्ट्र की दयनीय स्थिति को देख कर, तथा उसकी प्रार्थना से द्रवीभोत होकर, यह राष्ट्रसंहारक मन्त्रों को छोडकर राष्ट्रकल्याणकारी मन्त्रों के उच्चारण के साथ पुनः यज्ञ करने लगा, जिससे राष्ट्र विनाश से बच गया । इससे प्रसन्न होकर धृतराष्ट्र ने बक ऋषि को अनेकानेक सुन्दर गायों को दक्षिणा के रुप में भेंट दी, जिन्हें लेकर यह नैमिषारण्य वापस लौट गया
[म.श.४०] ।
बक (दाल्भ्य) n. युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में यह ब्रह्मा नामक ऋत्विज बना था । पाण्डवों के अश्वमेध यज्ञ के समय, अश्व के रक्षणार्थ निकला हुआ अर्जुन इसका दर्शन करने के लिए इसके आश्रम आया था । उस समय अर्जुन के साथ जो इसका संवाद हुआ था, वह इसकी परम विरक्ति एवं मितभाषणीय स्वभाव पर काफी प्रकाश डालता है । इसके आश्रय में कोई झोपडी न थी । यह खुले मैदान में, सर पर एक वटवृक्ष के पत्ते को रक्खे हुए तपस्या कर रहा था । अर्जुन ने इसे इस प्रकार बैठा देखकर प्रश्न किया ‘यह सर पर वटपत्र क्या अर्थ रखता है’ इसने जवाब दिया ‘धूप से बचने के लिये’। अर्जुन ने पुछा, ‘इसके लिए आप को झोपडी आदि बनवाना चाहिये’। इसने जवाब दिया ‘उम्र इतनी कम है कि, इन चीजों के लिए समय ही कहॉं?’ इस पर अर्जुन ने इसकी आयु पूँछी । तब इसने जवाब दिया ‘ब्रह्मा की बीस अहोरात्रि’। ब्रह्मा का हर एक दिन और रात एक सहस्त्र वर्षो की होती है, यह मन ही मन जान कर, अर्जुन को इसकी आयु हजारों सालों की प्रतीत हुयी । बाद मे, अर्जुन इसे पालकी में सम्मानपूर्वक बिठा कर युधिष्ठिर के अश्वमेधयज्ञ में ले गया
[जै.अ.६०] । बहुत वर्षो तक जीनेवाले व्यक्ति को दिन दुःखसुखों के बीच गुजरना पडता है, इस सम्बन्ध में इसका तथा इन्द्र का संवाद हुआ था । इस संवाद में इन्द्र ने उल्लेख किया है कि, इसकी आयु एक लाख वर्षो से भी अधिक थी
[म.व.परि.१.क्र.२१] । यह अधिक तक जीवित रहा, इसके सम्बन्ध में एक और कथा ‘जैमिनि अश्वमेध’ में दी गयी है । एक बार इसने अभिमान में आ कर ब्रह्मा से कहा, ‘मैं तुमसे आयु में ज्येष्ठ हूँ, अतएव मेरा स्थान तुमसे ऊँचा है’। ब्रह्म ने इसके द्वारा इसप्रकार की अपमानभरी वाणी सुन कर, इसके मिथ्याभिमान एवं भ्रम के निवारणार्थ प्राचीन ब्रह्मदेवों का साक्षात् दर्शन करा कर सिद्ध कर दिया कि, यह उसके तुलना में कुछ भी नही था
[जै.अ.६१] । लंकाविजय के पूर्व, राम बक दाल्भ्य के आश्रम गया था, और समुद्र किस प्रकार पार किया जाय, इसके बारे में राय मॉंगी थी । तब इसने राम को ‘विजया एकादशी’ का व्रत बता कर उसे करने के लिए कहा । इसी व्रत के कारण ही, राम रावण का वध कर विजय प्राप्त कर सका
[पद्म. उ.४४] ।
बक (दाल्भ्य) n. बक दाल्भ्य की एक कथा दी गयी है, जिसमें ऐहिक सुखप्राप्ति के लिए मन्त्रोच्चारण का स्वांग रचानेवाले लोगों का लक्षणात्मक रुप से उपहास किया गया है । यह कथा कुत्तों से सम्बधित है, जो बक दाल्भ्य द्वारा देखी गयी । इन्होंने देखा कि, एक सफेद कुत्ते से अन्य कुत्ते अपने खाने की समस्या को रखकर निवेदन कर रहे है, ‘हम भुखे है, क्या खायें! कहॉं से हमें कैसे अन्न प्राप्त हो!" सफेद कुत्ते ने कहा, ‘ठीक है, कल आओ, हम देंगे तुम्हें भोजन’। यह सुनकर कुत्ते चले गये और दुसरे दिन फिर उसी सफेद कुत्ते के पास पहुँचे । बक ऋषि भी जिज्ञासावश दूसरे दिन सफेद कुत्ते की करामत देखने को हाजीर हुए । ऋषि ने देखा कि, सभी कुत्तों के चुपचाप खडे हो जाने के उपरांत, गर्दन उँची कर सफेद कुत्ता साभिमानपूर्वक मनगठ्न्त मन्त्र उँचारीत करने लगा--‘हिम ॐ । हम खायेंगे । ॐ हम पियेंगे । भगवान् हमें अनाज दे । हे अनाज देनेवाले प्रभो, हमें अनाज दे ।
[छां.उ.१.१२] ।
बक II. n. एक नरभक्षी राक्षस, जो एकचक्रा से दो कोस की दूरी पर, यमुना नदी के किनारे वेत्रवन नामक घने जंगल की एक गुफा में रहता था । इसका एकचक्रा नगरी तथा वहॉं के जनपद पर शासन चलता था
[म.आ.१४८.३-८] । अलंबुस तथा किर्भीर इसके भाई थे । एकचक्रा नगरी के व्यक्तियों ने अत्यधिक परेशान हो कर, इसे घरबैठे ही भोजन भिजवा देने के लिए, हर एक व्यक्ति की पारी बॉंधी दी । अब हर एक इसके भोजन के लिए, तीस मन चावल, दो भैंसे तथा एक व्यक्ति, नगरनिवासियों की ओर से जाने लगी । एक दिन एक गरीब ब्राह्मण की पारी आयी, जिसके घर लाक्षागृह से निकलने के उपरांत कुंती के साथ पांडवों ने निवास किया था । ब्राह्मण के उपर आयी हुयी विपत्ति दो देख कर, कुंतीद्वारा भीम सब खाने-पीने के सामान के साथ राक्षस के निवासस्थान भेजा गया । भीम बक के यहॉं जाकर सारे सामान को स्वयं खाने लगा । यह देख कर बक क्रोधित होकर भीम पर झपटा, और दोनों में मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया । अन्त में भीम ने बक का वध किया
[म.आ.५५.२०,१४४-१५२] ।
बक III. n. अंधकासुर के पुत्र आडि नामक असुर का नामांतर (आडि देखिये) ।