मुचुकंद n. (सू.इ.) एक सुविख्यात इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो मांधातृ राजा का तृतीय पुत्र था । राम दाशरथि के पूर्वजों में से यह इकतालिसवॉं पुरुष था । इसके नाम के लिए ‘मुचकुंद’ पाठभेद भी प्राप्त है
[म.शां.७५.४] । इसकी माता का नाम बिन्दुमती था
[ब्रह्मांड.३.६३.७२] ;
[मत्स्य.१२.३५] ;
[ब्रह्म.७.९५] । इसने नर्मदा नदी के तट पर पारिपात्र एवं ऋक्ष पर्वतों के बीच में अपनी एक नयी राजधानी स्थापन की थी । आगे चल कर, हैहय राजा महिष्मंत ने उस नगरी को जीत लिया, एवं उसे ‘माहिष्मती’ नाम प्रदान किया । इससे प्रतीत होता है कि, मुचुकुंद राजा की उतर आयु में इक्ष्वाकु वंश की राजसत्ता काफी कम हो चुकी थी । इसने ‘पुरिका’ नामक और एक नगरी की भी स्थापना की थी, जो विंध्य एवं ऋक्ष पर्वतों के बीच में बसी हुयी थी
[ह.वं.२.३८.२, १४-२३] ।
मुचुकंद n. मुचुकुंद अपने बाहुबल से पृथ्वी को अपने अधिकार में ला कर, उस पर राज्य स्थापित किया था । इसकी जीवनकथा एवं वैश्रवण नामक इंद्र के साथ हुआ इसके संवाद का निर्देश महाभारत में प्राप्त है, कुन्ती ने युधिष्ठिर को बताया था
[म.उ.१३०.८-१०] ;
[शा.७५] । एक बार स्वबल की परीक्षा देखने के लिए इसने कुबेर पर आक्रमण कर दिया । तब कुबेर ने राक्षसोम का निर्माण कर, इसकी समस्त सेना का विनाश किया । अपनी बुरी स्थिति देख कर, इसने अपना सारा दोष पुरोहितों के सर पर लादना शुरु किया । तब धर्मज्ञ वसिष्ठ ने उग्र उपश्चर्या कर राक्षसोम का वध किया । उस समय कुबेर ने इससे कहा, ‘तुम अपने शौर्य से मुझे युद्ध में परास्त करो। तुम ब्राह्मणों की सहायता क्यों लेते हो’ तब इसने कुबेर को तर्कपूर्ण उत्तर देते हुए कहा, ‘तप तथा मंत्र का बल ब्राह्मणों के पास होता है, तथा शस्त्रविद्या क्षत्रियों के पास होती है । इस प्रकार राजा का कर्तव्य है कि, इन दोनों शक्तियों का उपयोग कर राष्ट्र का कल्याण करे’ । इसके इस विवेकपूर्ण वचनों को सुन कर कुबेर ने इसे पृथ्वी का राज्य देना चाहा, किन्तु इसने कहा, ‘मैं अपने बाहुबल से पृथ्वी को जीत कर, उस पर राज्य करुंगा’।
मुचुकंद n. कालयवन नामक राक्षस एवं श्रीकृष्ण से संबंधित मुचुकंद राजा एक कथा पद्म, ब्रह्म, विष्णु, वायु आदि पुराणों में, एवं हरिवंश में प्राप्त है । उस कथा में इसके द्वारा कालयवन राक्षस का वध करने का निर्देश प्राप्त है । किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से यह कथा कालविपर्यस्त प्रतीत होती है । एक बार देवासुर संग्राम में, दैत्यों विरुद्ध लडने के लिए देवों ने मुचुकुंड की सहाय्यता ली थी । उस युद्ध में देवों की ओर से लड कर इसने दैत्यों को पराजित किया, एवं इस तरह देवों की रक्षा की । इसकी वीरता से प्रसन्न हो कर, देवों ने इसे वर मॉंगने के लिए कहा । किन्तु उस समय अत्यधिक थकान होने के कारण, यह निद्रित अवस्था में था । अतएव इसने वरदान मॉंगा, ‘मैं सुख की नींद सोउ, तथा यदि कोई मुहे उस नीदें में जगा दे, तो वह मेरी दृष्टि से जल कर खाक हो जाये’। इसके सिवाय, इसने श्रीविष्णु के दर्शन की भी इच्छा प्रकट की । इस प्रकार पर्वत की गुफा में यह काफी वर्षो तक निद्रा का सुख लेता रहा । इसी बीच एक घटना घटी । कालयवन ने कृष्ण को मारने के लिए उसका पीछा किया । कृष्ण भागता हुआ उसी गुफा में आया, जहॉं पर यह सोया हुआ था । इसके ऊपर अपना उत्तरीय डाल कर, कृष्ण स्वयं छिप गया । पीछा करता हुआ कालयवन गुफा में आया, तथा इसे कृष्ण समझ कर, लात के प्रहार से उसने इसे जगाया । मुचुकुंद बडी क्रोध से उठा, तथा जैसे ही इसने कालयवन को देखा, वह जलकर वही भस्म हो गया ।
मुचुकंद n. बाद में ने इसे दर्शन दे कर, राज्य की ओर जाने को कहा, तथा वर प्रदान किया, ‘तुम समस्त प्राणियों के मित्र, तथा श्रेष्ठ ब्राह्मण बनोगे, तथा उसके उपरांत मुक्ति प्राप्त कर मेरी शरण में आओगे’। श्रीकृष्ण के द्वारा पाये अशीर्वचनों से तुष्ट हो कर, यह अपनी नगरी आया । वहॉं इसने देखा कि, इसके राज्य को किसी दूसरे ने ले लिया है, एवं सभी मानव निम्न विचारधारी एवं प्रवृत्ति के हो गये है । यह देखते ही यह समझ गया कि, कलियुग का प्रारंभ हो गया है । यह अपने नगर को छोड कर हिमालय के बदरिकाश्रम में जा कर तप करने लगा । वहॉं कुछ दिनों तक तपश्चर्यों करने के उपरांत, राजर्षि मुचुकुंद को विष्णुपद की प्राप्ति हुयी
[भा.१०.५१] ;
[विष्णु.५.२] ;
[ब्रह्म.१९६] ;
[ह.वं.१.१२.९,२.५७] ।
मुचुकंद n. यह उन राजाओं में था, सायंप्रातः स्मरणीय है
[म.अनु.१६५.५४] । इसने परशुराम से शरणागत की रक्षा के विषय में प्रश्न किया था, और उन्होंने इसे उचित उत्तर् दे कर, कपोत की कथा बता कर, इसकी जिज्ञासा शान्त की थी
[म.शां.१४१-१४५] । राजा काम्बोज से इसे खड्ग की प्राप्त हुयी थी, जिसे बाद को इसने मरुत्त को प्रदान किया
[म.शां.१६०.७५] । गोदानमहिमा के विषय में इसका निर्देश आदरपूर्वक आता हैं
[म.अनु.७६.२५] । यही नहीं, अपने जीवनकाल में इसने मांस भक्षण का भी निषेध कर रक्खा था ।
मुचुकंद n. इसके पुरुकुत्स और अंबरीष नामक दो भाई थे
[भा.९.६.३८] ;
[वायु.८८.७२] ;
[विष्णु.४.२.२०] । इसकी बहनों की संख्या ५० थीं, जिनका वरण सौभरि ऋषि ने किया था
[गरुड १.१३८.२५] ।
मुचुकंद II. n. एक राजा, जिसकी कन्या का नाम चन्द्रभागा, तथा दामाद का नाम शोभन था
[पद्म.उ.६०] ।