मेधाविन् n. एक उद्दण्ड ऋषिपुत्र, जो बालधि ऋषि का पुत्र था । इसकी आयु पर्वतों पर निर्भर थी, इसलिए इसे ‘पर्वतायु’ भी कहते थे । धनुषाक्ष नामक मुनि ने इसकी आयु के निमित्तभूत पर्वतों को भैंसों से विदीर्ण करा दिया, जिस कारण मृत्यु हुयी
[म.व.१३४] ; बालधि देखिये ।
मेधाविन् II. n. एक ब्राह्मण बालक, जिसने अपने पिता को संसार की क्षणभंगुरता बता कर मोक्ष एवं धर्म की ओर प्रेरित किया था
[म.शां.१६९] । यही कथा मार्कडेय में अधिक विस्तृत रुप में प्राप्त है
[मार्क.१०] । बौद्धधर्मीय ‘धम्मपद’ में, एव जैनधर्मीय ‘उत्तराध्यायन सूत्र’ में यही कथा कुछ अलग ढँग से प्राप्त है, जहॉं इसे राजकुमार मृगपुत्र कहा गया है
[धम्म.४.४७-४८] ;
[उत्तराध्यायन.१४.२१-२३] । इससे प्रतीत होता है कि, तत्कालीन समाज में प्रचलित एक ही लोककथा के आधार पर, इन तीनों कथाओं की रचना की गयी हैं । इनमें से महाभारत में प्राप्त कथा सर्वाधिक सुयोग्य प्रतीत होती है ।
मेधाविन् III. n. ((सो.कुरु.भविष्य.) एक कुरुवंशीय राज, जो विष्णु, वायु एवं भागवत के अनुसार सुनय राजा का, एवं मत्स्य के अनुसार सुतपस् राजा का पुत्र था ।
मेधाविन् IV. n. च्यवन ऋषि का एक पुत्र, जिसकी कथा ‘पापमोचनी एकादशी’ का माहात्म्य बताने के लिए पद्म में दी गयी है ।
मेधाविन् IV. n. एक बार चैत्ररथ नामक वन में इसकी मंजवोषा नामक अप्सरा से भेंट हुयी । उसके रुप- यौवन से यह मोहित हुआ, एवं अपनी तपस्या छोड कर, यह उसीके साथ रहने लगा । इस तरह अनेक साल बीत जाने पर मंजुघोषा ने इसे समय की कल्पना दी । फिर अपने तपःक्षय के विचार से यह विव्हल हो उठा, एवं इसने मंजुघोषा को पिशाच बनने का शाप दिया । उसके द्वारा दया की याचना की जाने पर, इसने उःशाप दिया, ‘चैत्र माह के कृष्णपक्ष की पापमोचन एकादशी का व्रत करने पर तुम्हे मुक्ति प्राप्त होगी’ आगे चल कर, अपने पिता के कहने पर इराने भी उसी एकादशी का व्रत किया, जिस कारण इसे मुक्ति प्राप्त हुयी
[पद्म.उ.४६] ।