संपाति n. एक दीर्घजीवी पक्षी, जो अरुण एवं गृध्रि के पुत्रों में से एक था
[वा. रा. कि. ५६] ;
[ब्रह्मांड. ३.७.४४६] । अन्य पौराणिक साहित्य में इसकी माता का नाम श्येनी दिया गया है
[वायु. ७०.३१७] ;
[म. आ. ६०.६७] । इसके भाई का नाम जटायु था । वाल्मीकि रामायण में, इसका एवं इसके भाई जटायु का एक गीध पक्षी के नाते निर्देश पुनः पुनः प्राप्त है । फिर भी वाल्मीकि रामायण में ही प्राप्त एक निर्देश से प्रतीत होता है, यह अपने को एक पक्षी नहीं, बल्कि मनुष्यप्राणी ही मानता था
[वा. रा. कि. ५६.४] । अतः संभव यही है कि, वाल्मीकि रामायण में निर्दिष्ट वानरों के समान, संपाति एवं जटायु ये भी गीधयोनिज पक्षी न हो कर, गीधों की पूजा करनेवाले आदिवासी लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे (वानर देखिये) ।
संपाति n. यह एवं इसका भाई जटायु विंध्यपर्वत ते तलहटी में रहनेवाले निशाकर (चंद्र अथवा चंद्रमस्) ऋषि की सेवा करते थे । एक बार वृत्रासुर का छलकपट से वध कर लौट आनेवाले इंद्र से इसकी तथा जटायु की भेंट हुई। इन्द्र ने इसको काफ़ी दुरुत्तर दिये जिस कारण इन दोनों में युद्ध प्रारंभ हुआ। इन्द्र ने अपने वज्र से इसे घायल किया, एवं वह जटायु का पीछा करने लगा। अन्त में जटायु थक कर नीचे गिरने लगा। अपने भाई को नीचे गिरते हुए देख कर, इसने उसकी रक्षा के लिए अपने पंख फैला कर उस पर छाया की। इस कार्य में सूर्यताप के कारण इसके पंख दग्ध हो गये, एवं यह एवं जटायु घायल हो कर पृथ्वी पर गिर पड़े। इन में से जटायु जनस्थान में, एवं यह विंध्य पर्वत के दक्षिण में निशाकर ऋषि के आश्रम के समीप गिर पड़े। अपने पंख दग्ध होने के कारण, यह अत्यंत निराश हुआ, एवं आत्मघात के विचार सोचने लगा। किंतु निशाकर मुनि ने इसे इन विचारों से परावृत्त किया, एवं भविष्य काल में रामसेवा का पुण्य संपादन कर, जीवन्मुक्ति प्राप्त कराने की सलाह इसे दी।
संपाति n. यह एवं इसका पुत्र सुपार्श्र्व कितने विशालकाय एवं बलशाली थे, इसका दिग्दर्शन करनेवाली एक कथा ‘वाल्मीकी रामायण’ में प्राप्त है । सीता का हरण कर रावण जब लंका लौट रहा था, उस समय उसे पकड़ कर उसका भक्ष्य बनाने का प्रस्ताव इसके पुत्र सुपार्श्र्व ने इसके सामने रखा। इसके द्वारा संमति दिये जाने पर, सुपार्श्र्व ने रावण पर हमला कर उसे पकड़ लिया । किन्तु रावण के द्वारा अत्यधिक अनुनय-विनय किये जाने पर उसे छोड दिया ।
संपाति n. एक बार यह अपनी गुफा में बैठा था, उस समय सीता की खोज़ के लिए दक्षिण दिशा की ओर जाने वाले अंगदादि वानर इसकी गुफा में आये। उन्ही के द्वारा रावण के द्वारा किये गये अपने भाई जटायु के वध की वार्ता इसे ज्ञात हुई। इस पर इसने सीता हरण रावण के द्वारा ही किये जाने की वार्ता उन्हें कह सुनायी, एवं पश्चात् अंगद के कंधे पर बैठ कर यह दक्षिण समुद्र के किनारे गया । वहाँ इसने अपने भाई जटायु को तर्पण प्रदान किया । पश्चात् निशाकर ऋषि के वर के कारण इसे अपने पंख पुनः प्राप्त हुए
[वा. रा. कि. ५६-६३] ;
[म. व. २६६.४८-५६] ;
[अ. रा. कि. ८] ।
संपाति n. इसके सुपार्श्र्व, बभ्रु, एवं शीघ्रग नामक तीन पुत्र थे
[पद्म. सू. ६] ;
[मत्स्य. ६.३५] । इसके एक पुत्र एवं एक कन्या होने का निर्देश वायु में प्राप्त है, किन्तु वहाँ उनकेनाम अप्राप्य हैं
[वायु. ६९.३२७,७०.८-३६] । इसके अनेक पुत्र होने का निर्देश ब्रह्मांड में प्राप्त है
[ब्रह्मांड. ३.७.४४६] ।
संपाति II. n. किष्किंधा नगरी का एक वानर
[वा. रा. कि. ३३.१०] ।
संपाति III. n. विभीषण का एक अमात्य
[वा. रा. सुं. ३७] ।
संपाति IV. n. रावणपक्ष का एक असुर। लंकादहन के समय हनुमत् ने इसका घर जलाया था
[वा. रा. सुं. ६] ।
संपाति V. n. एक कौरवपक्षीय योद्धा, जो द्रोण के द्वारा निर्मित गरुड़व्यूह के हृदयस्थान में खड़ा था
[म. द्रो. १९.१३] ; पाठ- ‘संपाति’ ।