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शत्रुघ्न n. (सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो दशरथ राजा का पुत्र, एवं राम दशरथि का कनिष्ठ सापत्न बंधु था । इसकी माता का नाम सुमित्रा था, एवं लक्ष्मण इसका ज्येष्ठ सगा भाई था । फिर भी अपने सापत्न बंधु भरत से ही यह अधिक सहानुभाव रखता था, जिस कारण ‘राम-लक्ष्मण’ के समान ‘भरत-शत्रुघ्न’ का जोड़ा भ्रातृभाव की ज्वलंत प्रतिमा बन कर प्राचीन इतिहास में अमर हो चुका है ।
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शत्रुघ्न n. दशरथ के द्वारा राम का यौवराज्याभिषेक जब निश्चित हुआ, उस समय यह भरत के साथ उसके ननिहाल में था । अयोध्या आने पर इसे राम को वनवास प्राप्त होने के संबंध में वार्ता हुई । पश्चात् इस सारे अनर्थ का कारण मंथरा है, यह ज्ञात होते ही इसने उसे पकड़ कर घसीटा, एवं खूब पीटा । यह उसका वध भी करना चाहता था, किन्तु भरत ने इसे इस अविचार से परावृत्त किया । अपनी सापत्न माता कैकयी के मोह में फँस कर राम जैसे पुण्यपुरुष को वनवास देनेवाले अपने पिता दशरथ को भी इसने बुरा-भला कहा, एवं इस दुःखी घटना का अवरोध न करनेवाले अपने ज्येष्ठ भाई लक्ष्मण को भी काफ़ी दोष दिया [वा. रा. अयो. ७८.२-४] ।
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शत्रुघ्न n. राम की पादुका ले कर नन्दिग्राम लौट आनेवाले भरत के शरीररक्षक के नाते यह भी उपस्थित था । राम के वनवासकाल में शत्रुघ्न कहॉं रहता था, इस संबंध में कोई भी जानकारी ‘वाल्मीकि रामायण’ में उपलब्ध नहीं है । राम के वनवाससमाप्ति के पश्चात्, यह उसका धनुष एवं बाण ले कर उसका स्वागत करने गया था ।
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शत्रुघ्न n. वनवासकाल के पश्चात् राम अयोध्या का राजा बन गया, तब उन्हींके आदेश से इसने लवणासुर पर आक्रमण किया । लवणासुर यमुनातट के निवासी च्यवन भार्गवादि ऋषियों को त्रस्त करता था । उसके पिता मधु को शिव से एक अजेय शूल प्राप्त हुआ था, एवं शिव ने से आशीर्वाद दिया था कि, जब तक वह शूल लवण के हाथ में रहेंगा, तब तक वह अवध्य होगा [वा. रा. उ. ६१.२४] । इसी शूल के बल से लवण अब समस्त पृथ्वी पर अत्याचार करने के लिए प्रवृत्त हुआ था । च्यवन भागर्वादि ऋषियों ने लवण की शिकायत राम से की, जिस पर राम ने शत्रुघ्न को इस प्रदेश का राज्याभिषेक किया, एवं इसे लवण का वध करने की आज्ञा दी । इसने एक विशाल सेना को मधुवन की ओर भेज दिया, एवं स्वयं एक रात्रि वाल्मीकि के आश्रम में व्यतीत कर, यह मधुवन के लिए रवाना हुआ। अयोध्या से निकल ने के पश्चात् चौथे दिन यह मधुपर पहुँच गया । मधुपुर पहुँचते ही इसने देखा कि, शिव के द्वारा दिया गया शूल अपने राजभवन में रख कर, लवण कहीं बाहर गया था । इसने वह शूल हस्तगत किया, एवं यह उस राक्षस की राह देखते मधुपुर के द्वार में ही खड़ा हुआ । पश्चात् इन दोनों में घमासान युद्ध हुआ, जिसमें इसने लवण का वध किया ।
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