-
याज्ञवल्क्य वाजसनेय n. एक सर्वश्रेष्ठ विद्वान, वादपटु, एवं आत्मज्ञ ऋषि, जो ‘शुल्कयजुर्वेद संहिता’ का प्रणयिता माना जाता है । यह उद्दालक आरुणि नामक आचार्य का शिष्य था [बृ.उ.६.४.३. माध्यं.] । यह सांस्कारिक एवं दार्शनिक समस्या का सर्वश्रेष्ठ अधिकारी विद्वान था, जिसके निर्देश शतपथ ब्राह्मण, एवं बृहदारण्यक उपनिषद में अनेक बार प्राप्त हैं [श.ब्रा.१.१.१.९.२.३.१.२१,४.२.१.७] ;[बृ.उ.३.१.२ माध्यं.] ।ओल्डेनबर्ग के अनुसार, यह विदेह देश में रहनेवाला था । जनक राजा के द्वारा इसे संरक्षण मिलने की जो कथा बृहदारण्यक उपनिषद में प्राप्त है, उससे भी यही प्रस्थापित होता है । किन्तु इसका गुरु उद्दालक आरुणि कुरुपंचाल देश में रहनेवाला था, जिस कारण इसको भी उसी देश के निवासी होने की संभावना है ।
-
याज्ञवल्क्य वाजसनेय n. यज्ञवल्क्य का वंशज होने के कारण, इसे ‘याज्ञवल्क्य’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा । बृहदारण्यक उपनिषद में इसे ‘वाजसनेय’ कहा गया है [बृ.उ.६.३.७-८, ६.५.३] ;[श.ब्रा.१४.९.४.३३] । महीधर के अनुसार, वाजसनि का पुत्र होने के कारण, इसे वाजसनेय नाम प्राप्त हुआ होगा । इसके ‘मध्यंदिन’ नामक शिष्य के द्वारा इसके शुल्कयजुर्वेद संहिता का प्रचार होने के कारण, इसे ‘माध्यंदिन’ भी कहते है ।विष्णु में इसे ब्रह्मरात का पुत्र, एवं वैशपांयन का शिष्य कहा गया है [विष्णु.३.५.२] । वायु, भागवत, एवं ब्रह्मांड में इसके पिता का नाम क्रमशः ‘ब्रह्मवाह’, ‘देवरात’ एवं ‘ब्रह्मराति’ प्राप्त है [वायु.६०.४१] ;[भा.१२.६.६४] ;[ब्रह्मांड.३.३५.२४] । ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न होने के कारण, इसे ‘ब्रह्मवाह’ नाम प्राप्त हुआ था [वायु.६०.४२] । महाभारत में इसे वैशंपायन ऋषि का भतिजा एवं शिष्य कहा गया है [म.शां.३०६.७७६] । उद्दालकशिष्य याज्ञवल्क्य एवं वैशंपायनशिष्य याज्ञवल्क्य दोनों संभवतः एक ही होंगे । उनमें से उद्दालक इसका दार्शनिक शास्त्रों का, एवं वैशंपायन वैदिक सांस्कारिक शास्त्रों का गुरु था ।इनके अतिरिक्त, हिरण्यनाभ कौशल्य नामक इसका और एक गुरु था, जिससे इसने योगशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी [ब्रह्मांड.३.६३.२०८] ;[वायु ८८.२०७] ;[विष्णु४. ४.४७] ;[भा.९.१२.४] ।
-
याज्ञवल्क्य वाजसनेय n. याज्ञवल्क्य के दो प्रमुख पहलू माने जाते हैं । यह वैदिक संस्कारों का एक श्रेष्ठ ऋषि था, जिसे ‘शुक्ल यजुर्वेद’ एवं ‘शतपथ ब्राह्मण’ के प्रणयन का श्रेय दिया जाता है । इसके साथ ही साथ यह दार्शनिक समस्याओं का सर्वश्रेष्ठ आचार्य भी था, जिसका विवरण ‘बृहदारण्यक उपनिषद’ में विस्तारशः प्राप्त है । वहॉं इसने अत्यंत प्रगतिशील दार्शनिक विचार सरलतम भाषा में व्यक्त किये है, जो विश्व के दार्शनिक साहित्य में अद्वितीय माने जाते है ।
-
याज्ञवल्क्य वाजसनेय n. याज्ञवल्क्य यजुःशिष्यपरंपरा में से वैशंपायन ऋषि का शिष्य था । वैशंपायन ऋषि के कुल ८६ शिष्य थे, जिनमें श्यामायनि, आसुरि, आलंबि, एवं याज्ञवल्क्य प्रमुख थे (वैशंपायन देखिये) । वैशंपायन ने ‘कृष्णयजुर्वेद’ की कुल ८६ संहिताएँ बना कर, याज्ञवल्क्य के अतिरिक्त अपने बाकी सारे शिष्यों को प्रदान की थीं । वैशंपायन के शिष्यों में से केवल याज्ञवल्क्य को ‘कृष्णयजुर्वेद संहिता’ प्राप्त न हुयी, जिसे कारण इसने ‘शुल्कयजुर्वेद’ नामक स्वतंत्र संहिता ग्रंथ का प्रणयन किया ।
Site Search
Input language: