अनसूया n. स्वायंभुव तथा वैवस्वत मन्वन्तर के ब्रह्म मानसपुत्र अत्रि ऋषि की पत्नी । यह कर्दम को देवहूती से हुई । यह दक्षकन्या भी थी
[गरुड.२६] । ऋग्वेद के वाईसवें परिशिष्ट में केवल अत्रि की प्रियपत्नी ऐसा इसका उल्लेख है । पौराणिक वाङ्मय में पतिव्रता कह कर इसका उल्लेख है । इसने निराहार तीन सौ वर्षो तक तप कर के शंकर की कृपा संपादित की । इससे इसे दत्तात्रेय, दुर्वास तथा चन्द्र नामक तीन पुत्र हुए । चित्रकूट की गंगा इसने प्रवृत्त की
[शिव.कै.२.१९] राम वनवास को जात समय अत्रि के आश्रम में आये थे । तब अत्रि ने निम्नोल्लेखित अनसूया का वर्णन कर के, सीता को, उसके दर्शनार्थ भेजने के लिये राम से कहा । दस वर्षातक पर्जन्यवृष्टि न होने पर लोग दग्ध होने लगे तब अनसूया ने फलमूल उत्पन्न कर के आश्रम में गंगा लाई । यह उग्र तपश्चर्या करनेवाली एवं कडक नियमोबाली है । दस हजार वर्षो तक इसने बडी तपस्या की है । इसकी व्रतो से ही ऋषियों की तपस्या के मार्ग में आनेवाले विघ्न दूर हुए । देवकार्यो के लिये परिश्रम करते समय दस रातों की एक रात्रि इसने बनाई । सीता ने जब इसका दर्शन लिया तब इसके गात्र शिथिल हो गये थे । शरीर पर झुरियॉं पड गई थी । बाल सफेद थे । हवा से हिलनेवाली कदली के समान इसकी स्थिति हो गई थी । पतिसमवेत वनवास स्वीकारने के लिये, सीता की इसने प्रशंसा की तथा निरंतर ताजी रहनेवाली माला, वस्त्र, भूपण, उबटन, अनुलेपन इ. वस्तुएं दी । तदनंतर कें बारे में, प्रेम से सीता के साथ बातें की । उसे अलंकर पहना कर बडे प्यार से बिदा किया
[वा.रा.अयो.११७-११९] । मांडव्य ऋषि को जब शूली पर चढाया गया था, तब उस शूल को अंधकार में एक ऋषिपत्नी का धोखे से धक्का लगा, तब मांडव्य ने उसे शाप दिया कि, सूर्यादय होते ही तुम विधवा हो जाओगी । तब उसने सूर्योदय ही नहीं होने दिया । इससे सारे व्यवहार बंद हो गये । उसकी अनसूया सखी होने के कारण, जब प्रार्थना की गई तब उसे वैधव्य प्राप्ती न होने देते हुए, इसने सूर्योदय करवा कर समस्त संसार को सुखी किया (मांडव्य देखिये) ।