अश्वपति n. कश्यप तथा दनु के पुत्रों में से एक ।
अश्वपति (कैकय) n. एक आत्मज्ञानी पुरुष । प्राचीनशालादि कोई विद्वान पुरुष आत्मा के संबंध में जब विचार कर रहे थे, तब उन्हें निश्चय नहीं बन रहा था । इसे आत्मज्ञ मान कर वे इसके पास आये । उसने इनका यथायोग्य सत्कार किया तथा दूसरे दिन उन्हें दक्षिणा देने लगा । वह उन्होनें अमान्य कर दी । तब इसे ऐसा लगा कि, इस में कुछ दोष होगा, तभी उन्होंनें दक्षिणा अमान्य कर दी । तब इसने अपने राज्य की स्थिति का ‘न मे स्तिनो जनपदे, न कदयों-न मद्यपो, नानाहिताग्निर्ना-विद्वान्, न स्वैरी, स्वैरिणी कुतः’, इस प्रकार कथन किया । आये हुए लोगों नें कहा कि, हम दक्षिण के लिये नही, वैश्वानर आत्मा का ज्ञान पाने के लिये आये है । तब इसने उन्हें ज्ञान दिया
[श. ब्रा.१०.६.१.२] ;
[छां. उ. ५.११,४] ;
[मै. उ.१.४] अश्वपति (कैकय) II. n. केकय देश का राजा । इसकी पत्नी बडी साहसी थी । वह किसी भी चीज की चिंता नही करती थी । एक ऋषि के द्वारा दिये गये वर के अनुसार इसे पक्षियों की भाषा समझती थी । एक बार, जृंभ पक्षियो के जोड एकी बातें सुन कर इसे हँसी आ गई । इसकी पत्नी ने हँसने का कारण पूछा । इसने कहा कि, कारण इतना भयंकर है कि उसे बताते ही मेरी मृत्यु हो जायेगी । कारण इतना भयंकर होते हुए भी, उसकी पत्नी ने उसे बताने की जिद की । तब इसने वरदान देने वाले ऋषि को यह बात बताई । ऋषि ने उससे कहा कि, तुम अपनी पत्नी को भगा दो । इसने तत्काल वैसा ही किया । इसे युधाजित् तथा कैकेयी नामक दो पुत्र थे । इसमें से, युधाजित भरत का मातुल था । अश्वपति नाम, उपनाम कें समान भी लगाया जाता था
[वा.रा.अयो.१.२] ।
अश्वपति II. n. मद्र देश का राजा । इसे मालवी नामक पत्नी थी । इसकी अनेक पत्नीयों मे से वह ज्येष्ठा थी । इसने सावित्री देवी की पराशरोक्त गायत्री मंत्र से आराधना की, तथा आराधना के पश्चात् का हवन करते समय, सावित्री अग्नि में से प्रगट हुई । उसने इसे वरदान दिया कि, दोनों (ससुराल तथा मायका) कुलों का उद्धार करनेवाली कन्या तुम्हें होगी । उस वर के अनुसार इसे सावित्री नामक एक कन्या हुई । इसी सावित्री द्वारा यम से मांगे गये वर के अनुसार इसे सौ पुत्र हुए
[ब्रह्मवै. २.२३] ;
[म. आर. २७७] ; सावित्री देखिये