कश्यप n. अग्नि का शिष्य । इसका शिष्य विभांडक
[वं.ब्रा.२] । ‘त्र्यायुषप्’ मंत्र में आयुवृद्धि की प्रार्थना करते समय इसका निर्देश है (जै. उ. ब्रा.४.३.१०।
कश्यप n. इसके कुल के मंत्रकार आगे दिये गये हैं (हरित, शिल्प, नैध्रुव देखिये) । इसका एवं वसिष्ठ का निकट संबंध है
[बृ. उ. २.२.४] ।
कश्यप n. इन्द्रियों का अधिष्ठान जो शरीर उसका पालन करनेवाला जीव ही कश्यप है
[म. अनु.१४२] । यह ब्रह्मा का मानसपुत्र है । मरीचिपत्नी तथा कर्दम की कन्या कला को कश्यप तथा पूर्णिमा नामक दो पुत्र हुए । उनमें से कश्यप ज्येष्ठ है
[भा.४.१] । इसे तार्क्ष्य तथा अरिष्टनेमि नामान्तर थे । यह सप्तर्षियों में से एक, उसी प्रकार प्रजापतियों में से भी एक था
[म. अनु.१४१] । परंतु सप्तर्षियों की सूचि में कश्यप के बदले भृगु तथा मरीचि नाम भी प्राप्त है । स्वायंभुव तथा वैवस्वत मन्वन्तर के ब्रह्मपुत्र मरीचि वास्तवतः एक ही है । इसलिये दोनों समय के कश्यप भी एक ही है । इसे पूर्णिमा नामक सगा भाई था तथा छः सापत्न बंधु थे । इसकी सापत्न माता का नाम ऊर्णा था । अग्निष्वात्त नामक पितर भी इसके ही भाई थे । इसे सुरुपा नामक एक बहन भी थी, जो वैवस्वत मन्वन्तर के अंगिरा नामक ब्रह्मा के मानसपुत्र को दी थी
[वायु. ६५.९८] ।
कश्यप n. इक्कीस बार पृथ्वी निःक्षत्रिय करने के पश्चात् परशुराम नें सरस्वती के किनारे अश्वमेध यज्ञ किया । उस समय कश्यप अध्वर्यु था । दक्षिणा के रुप में पृथ्वी कश्यप को दानरुप में प्राप्त हुई । अवशिष्ट क्षत्रियों का नाश न हो इस हेतु से, कश्यप ने परशुराम को अपनी सीमा के बाहर जा कर रहने के लिये कहा । इस कथनानुसार परशुराम समुद्रद्वारा उत्पन्न शूर्पारक देश में जा कर रहा । महाभारत में इसे कोंकण कहा गया है । बम्बई के पास सोपारा नामक एक ग्राम हैं, वही यह होगा
[म.शां. ४९.५६-५९] । बाद में कश्यप ने पृथ्वी ब्राह्मणों को सौंप कर, स्वयं वन में रहने के लिये गया ।
कश्यप n. कश्यप जब पुत्रेच्छा से यज्ञ कर रहा था, तब देव ऋषि तथा गंधर्व सब ने उसे सहायता की । वालखिल्य इसी प्रकार सहायता कर रहे थे, तब इंद्र ने वालखिल्यों का अपमान किया । इससे वे अत्यंत क्रोधित हो गये । इस क्रोध से अपनी रक्षा करने के लिये इन्द्र कश्यप के पास गया । तब बडी चतुराई से कश्यप ने वालखिल्यों को खुश किया । अनेक कृपाप्रसाद से इसे गरुड तथा अरुण नामक दो पुत्र हुए । नये इन्द्र के लिये किया गया तप वलखिल्यों ने इसे दिया तथा इन्द्र निर्भय हो गया ।
कश्यप n. तदनंतर विनता तथा कद्रू में उच्चैःश्रवा के रंग के बारे में शर्त लगाई गई । यह शर्त जीतने के लिये कद्रू ने अपने पुत्र नागों की सहायता मॉंगी । परंतु नाग सहायता न करते थे, इसलिये उसने उन्हें शाप दिया कि, तुम जनमेजय के सत्र में मरोगे । इस शाप को पुष्टि दे कर दुष्ट सर्पो का नाश करने के हेतु से ब्रह्मदेव वहॉं आया, तथा उसने सर्पो का नाश होगा
[म.आ.१८. ८-१०] , इतना ही नही, उनका सापत्न बंधु गरुड भी उनका भक्षण करेगा, यह शाप दिया
[पद्म. सृ.३१] । इस शाप से कश्यप को दुख होगा, यह सोच कर ब्रह्मा नें इसे विषहारिविद्या दी तथा इसकी सांत्वना की
[म.आ.१८.११] । उस विद्या का इसने उपयोग भी किया था (काश्यप देखिये) ।
कश्यप n. इन्द्रादि देवों का दैत्यों ने पराभव किया, इसलिये वे कश्यप के पास शरण आये, तथा उन्होने इसे सब कुछ बताया । तब यह काशी में शंकर के पास गया, तथा उसे दैत्यों का ताप नष्ट करने के लिये कहा । तब शंकर ने इसकी पत्नी सुरभि के उदर में ग्यारह अवतार लिये तथा दैत्यों का नाश किया । यह अवतार अद्यापि आकाश में ईशान्य की ओर रहते है
[शिव. शत.१८] ।
कश्यप n. कश्यप ने अर्बुद पर्वत पर बडी तपश्चर्या की । उस समय दूसरे ऋषियों ने गंगा लाने के लिये इसकी प्रार्थना की । तब शंकर से प्रार्थना कर के कश्यप ने शंकर से गंगा प्राप्त की । उस स्थान पर कश्यपतीर्थ बना
[पद्म. उ १६४] । बाद में गंगा ले कर यह स्वस्थान में गया । उस स्थान पर केशरंध्रतीर्थ बना । कश्यपद्वारा गंगा लाई गई इस लिये काश्यपी कहते है । उसे ही चारों युगों में अनुक्रम से कृतवती, गिरिकर्णिका, चंदना तथा साभ्रमती नाम हैं
[पद्म. उ.१३५] ।
कश्यप n. यह तपश्चर्या चालू थी, तब गरुड अपने पिता के पास आया तथा उसने कहा कि, एक अदृष्य शक्ती ने मुझे वाहन बनने के लिये कहा है तथा मैं ने वह मान्य भी किया है । कश्यप ने अन्तर्ज्ञान से जान कर कहा कि, तुम विष्णु के वाहन बने हो तथा अब तुम्हे उसकी ही आराधना करनी चाहिये । यों बता कर काश्यप ने उसे नारायणमहात्म्य का कथन किया ।
कश्यप n. इतने में अंग राजा ने पृथ्वी का दान करने का निश्चय किया । इस लिये अपना शरीर त्याग कर पृथ्वी ब्रह्मदेव के पास गई । इससे उसका शरीर निर्जीव बन गया । तब योगशक्ति के द्वारा कश्यप अपने शरीर से बाहर निकला तथा पृथ्वी के शरीर में प्रविष्ट हो कर उसे सजीव बनाया । कुछ दिनों के बाद पृथ्वी वापस आई, तथा कश्यप को नमस्कार कर, अपने शरीर में प्रविष्ट हुई । इस प्रकार कश्यप की कन्या होने के कारण पृथ्वी को काश्यपी कहते है ।
कश्यप n. आगे चल कर, दुष्टों की पीडा के कारन पृथ्वी डूबने लगी । तब कश्यप ने अपने ऊरु का आधार उसे दिया तथा उसे तारा । इस लिये उसे काश्यपी तथा ऊर्वी नाम प्राप्त हुए
[म.शां. ४९.६३-६४] । उसने अपने लिये राजा मांग कर बहुत से क्षत्रियों का नाम सुझाया । तब कश्यप ने उन सब को अभिषेक किया ।
कश्यप n. एक बार कश्यपादि सप्तर्षि पृथ्वी पर घूम रहे थे । तब शिबिपुत्र शैब्य उर्फ वृषादर्भि ने सप्तर्षि यो को एक यज्ञ में अपना पुत्र दक्षिणास्वरुप में दिया । इतने में उस पुत्र की मृत्यु हो गई । तब उन क्षुधार्त ऋषियों ने उसके मांस को पकाने के लिये रखा । यह वृषादर्भि ने देखा, तथा उस अघोरी कृत्य से-ऋषियो को परावृत्त करने के लिये, उनकी इच्छानुसार दान देने का निश्चय किया । किन्तु न तो वे दान लेने के लिये तैय्यार हुए, न मांस ही पका । इसलिये उसे छोड कर वे चले गये । आगे एक सरोवर में कमल थे । उन्हें खाने की इच्छा से, उन्होंने वहॉं की कृत्या यातुधानी की अनुमति से कमल तोड कर किनारे पर रखे । कुछ कारण से इन्द्र उन्हें चुरा कर ले गया । तदनंतर कश्यप तथा ऐल का संवाद हुआ । उसमें ब्राह्मण का महत्त्व, पापपुण्यसूक्ष्मभेद तथा रुद्र ये विषय कश्यप ने समझायें ।
कश्यप n. तार्क्ष्य मुनि का सरस्वती से संवाद हुआ था । उन दोनों में से श्रेष्ठ कौन, किस कृत्य से व्यक्ति धर्मभ्रष्ट नही होता, अग्निहोत्र के नियम, सरस्वती कौन है, मोक्ष आदि विषय चर्चा के लिये थे । परंतु यह तार्क्ष्य कश्यप ही था, यह नही कह सकते
[म.व.१८.४] । तदनंतर कश्यप ने एक सिद्ध देखा । तथा उनसे ज्ञानप्राप्ति के हेतु से बडी ही एकाग्रता से उसकी पूजा की । सिद्ध की आज्ञा से कश्यप ने प्रश्न पूछे । सिद्ध ने उसके उत्तर दिये तथा इसे संतुष्ट किया
[म. आश्व.१७] । यह एक ऋषि था
[वायु.५९.९०] ;
[ब्रह्मांड. २.३२.९८-१००] । इसके शरीर से तिल उत्पन्न हुए
[भवि. ब्रह्म.७] । यह स्वारोचिष तथा वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियो में से एक था । व्यास की पुराणशिष्य परंपरा के भागवतमतानुसार यह रोमहर्षण का शिष्य था (व्यास तथा आपस्तंब देखिये) ।
कश्यप n. कश्यप के नाम पर चरकसंहिता के काफी पाठ है । भूतप्रेतादि पर भी इसके कुछ मंत्र है । इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ हैं---१. कश्यपसंहिता (वैद्यकीय) २. कश्यपोत्तरसंहिता, ३. कश्यपस्मृति, जिसका उल्लेख हेमाद्रि, विज्ञानेश्वर तथा माधवाचार्य ने किया हैं (C.C.) ४. कश्यपसिद्धांत (नारदसंहिता में इसका उल्लेख आया है) ।
कश्यप n. कश्यप को वत्सार तथा आसित नामक दो पुत्र थे । वत्सार को निध्रुव तथा रेभ नामक दो पुत्र हुए । निध्रुव को सुमेधा से अनेक कुंडपायिन हुए । रेभ से रैभ्य उत्पन्न हुए । इसी प्रकार की वंशावली अन्यत्र भी प्राप्त है
[ब्रह्मांड. ३.८.२९-३३] ;
[वायु ७०.२४-२५] ;
[लिंग.१.६३] ;
[कूर्म.१.१९] ।
कश्यप n. अदिति, अरिष्टा, इरा, कद्रू, कपिला, कालका, काला, काष्ठा, क्रोधवश, क्रोधा, खशा, ग्रावा, ताम्रा, तिमि, दनु, दनायु, दया, दिति, धनु, नायु, पतंगी, पुलोमा, प्राधा, प्रोवा, मुनि, यामिनी, वसिष्ठा, विनता, विश्वा, सरमा, सिंही, सिंहिका, सुनेत्रा, सुपर्णा, सुरभि, सुरसा, सूर्य । यथार्थ में कश्यप को तेरह स्त्रियॉं थीं । बाकी नाम तो पाठान्तर से आये है, तथा संततिसादृश्य के कारण, बाकी सब एक ही मालूम होती है । भागवत तथा विष्णु मतानुसार इसे किसी समय अरिष्टनेमि नामक चार स्त्रिया बतायी गयी है । ये सब कन्यायें थी । पुलोंमा तथा कालका वैश्वानर की कन्यायें है ।
कश्यप n. आदित्य बारह है । अंश (अंशु, अंशुमत, विधातृ), अर्यमन् (यम), इंद्र (शक्र), उरुक्रम (विष्णु), त्वष्ट्टा, धातृ, पूपन, भग, मित्र, वरुण (पर्जन्य), विवस्वत (मार्ताड), सवितृ
[तै.आ.१.१३] ।
कश्यप n. अतिबाहु, आचार, ज्योतिष्टम, तुंबरु, दारुण; पूर्ण, पूर्णाश (पूर्णायु), बह्रीच (ब्रर्ह्मीच), ब्रह्मचारिन्, भानु, मथ्य, रतिगुण (शतगुण), वरुथ, वरेण्य, वसुरुचि, विश्वावसु, सिद्ध, सुचंद्र, सुपर्ण, सुरुचि, हंस, हाहा,हूहू, आदि गंधर्व अरिष्टा के पुत्र थे । इनमे से तारांकित लोग क्रोधा के पुत्र हैं, ऐसा उल्लेख ब्रह्मांड में आता है ।
कश्यप n. अनवद्या, अरुणा, अरुपा, अलंबुषा, असुरा, केशिनी, तिलोत्तमा, भासी, मनु, मनोरमा, मागणप्रिया, मिश्रकेसी, रक्षिता, रंभा, वंशा, विद्युत्पर्णा, सुप्रिय, सुबाहु, सुभगा, सुरजा, सुरता । इनमे से तारांकित स्त्रीया मुनि की कन्याएं हैं, ऐसा उल्लेख ब्रह्मांड में दिया गया है । इरा को वृक्षादि पुत्र हुए ।
कश्यप n. अकर्कर, अकर्ण, अक्रूर, अनंत, अनील, अपराजित, अंबरीष, अलिपिंडक, अश्वतर, आपूरण, आप्त, आर्यक, उग्रक, एलापत्र, ऐरावत, कपित्थक, कपिल, कंबल, कररोमन्, करवीर, कर्कर, कर्कोटक, कर्दम, कलषपोतक, कल्माष, कालिये, कालीयक, कुंजर, कुठर, कुंडोदर, कुमुद, कुमुदाक्षा, कुलिक, कुहर, कूर्म, कूष्मांडक, कोरग्य, कौणपाशन, क्षेमक, गंधर्व, ज्योतिक, तक्षक, तित्तिरि, दधिमुख, दुर्मुख, धनंजय, धृतराष्ट्र, नहुष, नाग, निष्ठानक, नील, पतंजलिम, पद्म (संवर्तक), पाणिन, पिंगल, पिंजर (पिंजरक), पिठरक, पिंडक, पिंडारक, पुष्पदंष्ट्र, पूर्णभद्र, प्रभाक्र, प्रह्राद, बलाहक, बहुमूलक, बहुल, बाह्यकर्ण, बिल्वक, बिल्वपांडुर, ब्राह्मण, भुजंगम, मणि, मणिस्थक, महाकर्ण, महानील, महापद्म, महापप्र, महाशंख, महोदर, मुद्नर, मूषकाद, वामन, वालिशिख, वासुकि, विमलपिंडक, विरजस्, वृत्त, शंकुरोमन्, शंख, शंखपाद, शंखपाल, शंखपिंड, शंखमुख, शंखरोमन्, शंखशिरस्, शबल, शालिपिंड, शुभानन शेप, श्रीवह, श्वेत, सुबाहु, सुमन, सुमुख, सूनामुख, हरिद्रक, हल्लक, हस्तिकर्ण, हस्तिपद, हस्तिपिंड, हेमगुह ।
कश्यप n. $कपिला को अमृत, ब्राह्मण, गंधर्व,अप्सरा, नंदिन्यादि गायें तथा दो खुरवाले प्राणी हुए ।
कश्यप n. $कालका को कालकेय ऊर्फ कालकंज ये पुत्र हुए ।
कश्यप n. क्रोध, क्रोधशत्रु, क्रोधहंतृ, विनाशन।
कश्यप n. $काष्ठा को अश्वादि एक खुरवले प्राणी हुए ।
कश्यप n. इरावती, कपीशा, तियी, दंष्ट्रा, मद्रमना, भूता, मातंगी, मृगमंदा, मृगी, रिषा, शार्दूली, श्वेता, सरमा, सुरसा, हरि, हरिभद्रा । क्रोधवशा की ये कन्याएं पुलह की भार्या थीं । इनके सिवा, क्रोधवशा क्रो क्रूर जलचर पक्षी, दंदशूकादि सर्प तथा क्रोधवश नाम के राक्षस हुए । इन में से क्रोधवश मुख्य है (अरिष्टा देखिये) ।
कश्यप n. $खशा को अकंपन, अश्व, उषस्य, कपिलोमन, कथन, चंद्रार्कभीकर, तुंडकोश, त्रिनाभ, त्रिशिरस, दुर्मुख, धूम्रित,निशाचर, पीडापर, प्रहासक, बुध्न, बृहज्जिव्ह, भीम, मधुअ, मातंग, लालवि, वक्राक्ष, विस्फूर्जन, विलोहित, शतदंष्ट्र, सुमालि आदि पुत्र तथा आलंबा, उत्कचोत्कृष्टा, कपिला, केशिनी, निऋता, महाभागा, शिवा आदि कन्याएं हुई । ये सब यक्ष, राक्षस, मुनि तथा अप्सराएँ है ।
कश्यप n. $ग्रावा को श्वापद हुए ।
कश्यप n. $ताम्रा को अरुणा, उलकी, काकी, क्रौंची, गृध्रिका (गृध्री), धृतराष्ट्रिका (धृतराष्ट्री), भासी, शुकी, शुची, श्येनी, सुग्रीवी, तथा गायें, भैंसे कन्यारुप में हुई ।
कश्यप n. $तिमि को जलचरगण हुए ।
कश्यप n. अजक, अप्र, अनुपायन, अशिरम्, अयोमुख, अरिष्ट, अरुण, अश्व, अश्वग्रीव, अश्वपति, अश्वशंकु, अश्वशिरस, असिलोमन्, अहर, आमहासुर, इंद्रजित्, इंद्रतापन, इरागर्भशिरस, इषुपात, ऊर्णनाभ, एकचक्र, एकाक्ष, कपट, कपिल, कपिश, कालनाभ, कुपथ, कुंभनाभ, कुंभमान, केतु, केतुवीर्य, केशिन, गनमूर्धन, गाविष्ठ, गवेष्टिन, चंद्रमस्, चूर्णनाभ, जभ, तारक, तुहुंड, दीर्घाजिह्र, दुदुंभि, दुर्जय, देवजित्, द्विमूर्धन, धूम्रकेश, धृतराष्ट्र, नमुचि, नरक, निचंद्र, पुरंड, पुलोमन्, प्रमद, प्रलंब, बलक, बलाढय,बाण, बिंदु,भद्र,भृशिन्, मघ,मघवत,मद, मय,मरीचि,महाशिरस्, महानाभ, महाबल, महाबाहु,महामाय, महाशिरस्, महासुर, महोदक, महोदर, मारीचि, मूलकोदर, मेघवत्, रसिप, वज्रनाथ, वज्राक्श, वनायु, वातापि, वामन, विकुभ, विक्रांत, विक्षोभ, विक्षोभण, विद्रावण, विपाद, विप्रचित्ति, विभावसु, विभु, विराध, विरुपाक्ष, वीर, वीर्यवत्, वृक, वृषपर्वन, वैमृग, वैश्वानर, वैसृप, शकुनि, शंकर, शंकुकर्ण, शंकुशिरस, शंकुशिरोधर, शठ, शतग्रीव, शतमाय, शतर्हद, शंकुरय, शतर्हाद, शतव्हय, शंबर, शरभ, शलभ, सत्यजित्, सप्तजित्, सुकेतु, सुकेश, सुपथ, सूक्ष्म, सूर्य, हयग्रीव, हर, हिरण्मय, हिरण्यकशिपु ।
कश्यप n. $दनायु को बल, विक्षर, वीर, वृत्रादि उत्पन्न पुत्र हुए ।
कश्यप n. $दया को पर्वत हुए ।
कश्यप n. $दिति को मरुत् (उनपचास), वज्रांग, सिंहिका, हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष आदि पुत्र हुए । पद्मपुराण में दैत्यों सा कृत्य करने वाला प्रत्येक व्यक्ति दितिपुत्र माना गया है (बल तथा वृत्र देखिये) ।
कश्यप n. विष्णुधर्मोत्तर में दनु का नामांतर है । इसका पुत्र रजि
[विष्णुधर्म. १.१०६] ।
कश्यप n. $पतंगी को पक्षी हुए ।
कश्यप n. $पुलोमा को पौलोम हुए । पौलोम तथा कालकेय मिल कर साठ हजार चव्हत्तर हजार थे, जिन्हें निवातकवच कहते थे ।
कश्यप n. अरिष्टा की संतति देखिये ।
कश्यप n. इसे संतति नहीं थी ।
कश्यप n. मुनि को अर्कपर्ण, उग्रसेन, कलि, गोपति (गोमत्), चित्ररथ, धृतराष्ट्र, नारद, पर्जन्य, प्रयुत, भीम, भीमसेन, वरुण, शालिशिरस्,, सत्यवाच् (सर्वजित्), सुपर्ण, सूर्यवर्चस् नामक सोलह गंधर्व, तथा अजगंधा, अनपाया, असिता, असिपर्णिनी, अद्रिका, क्षेमा, पुंडरीका, मनोभवा मारीचि,, लक्ष्मणा, वरंचरा, विमनुष्या, शुचिका, सुदती, सुप्रिया, सुबाहु, सुभुजा,सुरसा तथा अन्य छै (अरिष्टा देखिये), सि तरह कुल चोबीस अप्सरायें हुईं । वसिष्ठा यह नाम मुनि का नामांतर होगा ।
कश्यप n. $यामिनी को टिड्डिया हुए ।
कश्यप n. $विनता को अरिष्टनेमि, अरुण, आरुणि, गरुड,तार्क्ष्य, वारुणि नामक पुत्र, एवं सौदामिनी नामक कन्या हुई । अरिष्टनेमि तथा तार्क्ष्य गरुड के नामांतर होने का उल्लेख मिलता है ।
कश्यप n. $विश्वा को करोडो यक्ष तथा राक्षस हुए ।
कश्यप n. $सरमा को वनचर हुए ।
कश्यप n. $सिंहि ऊर्फ सिंहिका को चंद्रप्रमर्दन, चंद्रहर्तृ, राहु तथा सुचंद्र पुत्र हुए ।
कश्यप n. $सुरभि को अंगारक, अज (अजपाद), अर्हिर्बुध्न्य (हिर्बुध्न), ईश्वर, ऊर्ध्वकेतु, एकपाद, कपाला (कपालि) चंड, ज्वर, निऋति, पिंगल, भल, भीम, भुवन, मृत्यु, विरुपाक्ष, विलोहित, वृषभ (महादेव का नंदी), शंभु, शास्तृ, सदसत्पति,सर्प नामक पुत्र हुए तथा गांधारी (गांधर्वी) एवं रोहिणी ये कन्याए हुई
[शिव.शत.१८] ।
कश्यप n. $सुरसा को याजुधानादि राक्षस तथा १००० सर्प हुए ।
कश्यप n. $सूर्या को यमधर्म हुआ ।
कश्यप n. $कश्यप को अरुंधती, नारद, पर्वत
[वायु. ७०.७६९] ;
[लिंग १.६३.७२-८०] तथा मनसा ये मानसपुत्र तथा कन्याएं थी
[विष्णु.१.१५] ;
[मत्स्य.६] ;
[स्कंद.१.२.१४,३.२.८] ;
[वायु.६७.४३] ;
[ह.वं.१.३] ;
[ब्रह्मांड.३.३] । अरिष्टापुत्र केवल ब्रह्मांड तथा महाभारत में दिये है । सुरभिपुत्र वायु तथा शिवपुराण में दिये है । मुनिपुत्र तथा क्रोधापुत्र ब्रह्मांड, महाभारत में दिये है । कद्रूपुत्र वायु, स्कंद.तथा भागवत में नहीं है । दनुपुत्र स्कंद.तथा वायु में नहीं है । उपरोक्त आदित्य स्कंद में नहीं है (आदित्य देखिये) ।
कश्यप n. अग्निशर्मायण (ग), अधच्छायामय (ग), आग्ना प्रासेव्य (ग), आजिहायन (ग), आश्रायणि, आश्वलायनिन (ग), आश्ववातायन, आसुरायण (ग), उदग्रज (ग), उद्वलायन (ग), कन्यक (ग), कात्यायन (ग), कार्तिकेय, (ग), काष्टाहारिण, कौवेरक (ग), औरिष्ट (ग), गोमयान (ग), ज्ञानसंज्ञेय (ग), दाक्षायण, देवयान (ग), निकृतज (ग), पैलमौलि, प्रागायण (ग), प्राचेयु, बर्हि, भवनंदिन्, भृगु (ग), भोज (ग), भौतपायन (भीमपायन,ग), महाचक्रि माटार (ग), मातंगिन (ग), मारीच (ग), मृगय(ग), मेष किरीटकायन (ग), मेषष (ग) , योगगदायन (ग), योधयान (ग), वास्त्यायन (ग), वैकर्णेय (वैकर्णिक,ग), योधयान (ग), शामोदर, श्रोतन (श्रुतय), सासिसाहारितायन (ग), हस्तिदान (ग), हास्तिक (ग), ये सब कश्यप, निध्रुव, तथा वत्सर इन त्रिप्रवरों के है । अनसूय, काद्रुपिंगाक्षि (काद्रंपिंगासि), दिवावष्ट (दिवावस, दिवावसिष्ठ ग), नाकुरय, यामुनि (सामुकि), राजवर्तप (राजवल्लभ), रौपसेवकि ( शेषसेवकि), शैशिरोदवहि, सजातंबि, सैरंधी (सैरंध्रि), स्नातप ये भी द्विगोत्री हो कर कश्यप, वत्सर तथा वसिष्ठ इन तीन प्रवरों के है । उत्तर, कर्दम, काश्यप, कुलह, केरल, कैरात, गंदभी, मुख, गोभिल, जलंधर, दानव, देवजाति, नभ, निदाघ, पिप्पल्य, पूर्य, पैप्पलादि,भर्त्स्य, भुतातपूर, मसृण, मृगकेतु, वृषकंड, शांडिल्य, संयाति, हिरण्यबाहु ये असित, कश्यप तथा देवल इन त्रिप्रवरों के हैं
[मत्स्य. १९९] ।
कश्यप n. असित, कश्यप, देवल, निध्रव (नैधुव), रैभ्य, तथा वत्सार । वायु में ‘विक्षम’ तथा मत्स्य में ‘नित्य’ अधिक है
[ब्रह्मांड. २.३२.११२-११३] ;
[मत्स्य. १४५.१०६-१०७] ;
[वायु५९.१०२-१०३] । ये ब्रह्मवेत्ता थे । ऋग्वेद में वत्सार के लिये अवत्सार, नैध्रुव के लिये निध्रुवि, इसके अतिरिक्त भूतांश, रेभ तथा वित्रि ये कश्यप माने गये है ।
कश्यप (नैध्रुवि) n. एक आचार्य
[बृ. उ.६.५.३] ।
कश्यप (मारीच) n. ऋग्वेदमंत्रद्रष्टा
[ऋ.१.९९.८.२९.९.६६४,६७.४-६,९१-९२,११३-११४] ।