काश्यप n. किसी विस्तृत कुल का नाम । प्रजापति के द्वारा उत्पन्न सभी प्रजायें काश्यप माने कश्यपकुलोत्पन्न है
[श.ब्रा.७.५.१.५] ; कश्यप देखिये । यह सर्वसाधारण पैतृक नाम है तै.आ.२.१८,१०.१.८ । अगस्त्य तथा परशुराम के समान, यह भी दक्षिण का निवासी माना जाता है । अपने वंश अथवा उपनिवेश का काश्यप से संबंध जोडनेवाले में पाये जाते है । शाकटायन के साथ व्याकरणयज्ञ कह कर, इसका उल्लेख है
[शु. प्रा.४.५] । कश्यप गोत्र का मंत्रकार । यह ऋषि भी है (भृगु, कश्यप अवत्सार, ऋश्यशृंग, देवतरस, श्यावसायन, शूष वाह्रेय, गौत्म असित देवल, निध्रुवि, भूतांश, रेम, रेभसूक्ति, विव्रि तथा हरित देखिये) ।
काश्यप II. n. एक मांत्रिक ब्राह्मण । सर्पदंश हुए परीक्षित को अपने मंत्रसामर्थ्य से जीवित कर के, धनप्राप्ति करने के लिये यह जा रहा था । यह समाचार पाते ही, वृद्ध ब्राह्मण का रुप ले कर, ,मार्ग में तक्षक ने काश्यप से भेट की, तथा इससे कहा, ‘तुम्हारे सामने इस वृक्ष को मैं काटता हूँ । अपने मंत्रसामर्थ्य से तुम इसे जीवित करो, तभी तुम्हारा मंत्रसामर्थ्य मैं सत्य मानूँगा’ । तक्षक के दंश से भस्मसात् वृक्ष, इसने मंत्रसामर्थ्य से अंकुरित कर के दिखाया । इसके मंत्रसामर्थ्य के प्रति तक्षक को पूर्ण विश्वास हो गया । राजा से प्राप्त होनेवाली संपदा से अधिक धन दे कर, तक्षक ने इसे विदा किया । ब्राह्मणशाप के सामने अपना मंत्र सिद्ध न होगा, इस आशंका से काश्यप घर लौटा
[म.आ.३९] । परंतु राजा के पास न जाने के कारण, लोगों ने इसे जातिच्युत कर दिया । तब यह व्यंकटाचल पर गया । वहॉं के तीर्थस्नान से यह पापमुक्त हो गया
[स्कंद २.१.११] ।
काश्यप III. n. एक ब्राह्मण । काश्यप की एक पुरानी कथा, भीष्म ने ज्ञान के महत्त्व का वर्णन करने के लिये, युधिष्ठिर को बताई है, वह निम्न प्रकार से है । काश्यप नामक एक तपस्वी तथा सदाचरसंपन्न ब्राह्मण था । इस एक वैश्य ने रथ का धक्का दे कर गिरा दिया । तब विकल हो कर, क्रोध से यह प्राण देने के लिये प्रवृत्त हो गया । यह जान कर, इन्द्र शृंगाल रुप से वहॉं आया । उसने इसे मानवदेव तथा उसमें भी ब्राह्मणप्राप्ति की प्रशंसा इसे मानवदेह तथा उसमें भी ब्राह्मणप्रपति की प्रशंसा कर के मृत्यु से निवृत्त किया, तथा ज्ञान की ओर इसका ध्यान प्रेरित किया । तब काश्यप को भी आश्चर्य हुआ । तब इन्द्र की पूजा कर यह घर लौट आया
[म.शां.१७३] ; नारद देखिये ।
काश्यप IV. n. एक धर्मशास्त्रकार । अठारह उपस्मृतिकारों में से यह एक है
[सस्मृतिचं. १] ;
[सरस्वतीविलास पृष्ठ १३] । उसी प्रकार, पाराशरधर्मसूत्र में भी धर्मशास्त्रकर्ता कह कर इसका उल्लेख है । परंतु याज्ञवल्क्यस्मृति में इसका नामनिर्देश नहीं है । इसके ग्रंथो में आह्रिककर्म, श्राद्ध, अशौच, प्रायश्चित्तादि के बारे में काफी जानकारी दी गई है । मिताक्षरा, स्मृतिचन्द्रिकादि ग्रंथों में इसके धर्मशास्त्र सें उद्धहरण लिये गये है । काश्यपस्मृति नामक एक स्वतंत्र ग्रंथ है । उसमें गृहस्थ के कर्तव्य, भिन्नभिन्न प्रकार के प्रायश्चित्तादि की जानकारी है । कश्यप नामक एक धर्मशास्त्रकार का उल्लेख बौधायनधर्मसूत्र में है
[बौ. ध. १.२.२०] । परंतु यह तथा कश्युप दोनों भिन्नभिन्न हैं, वा एक ही हैं, इसके विषय में निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं होती है । एक व्याकरणकार के रुप में पाणिनि ने इसक उल्लेख किया है
[पा. सू. ८.४.६७] । यह शिल्पकार तथा शिक्षाकार भी था । इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध हैः---१. काश्यपपंचरात्र, २. काश्यपसंहिता, ३. काश्यपस्मृति, ४. काश्यपसूत्र । कश्यपस्मृति एवं कश्यप संहिता, तथा काश्यपस्मृति एवं काश्यपसंहिता इन ग्रंथो का रचयिता एक ही होगा (C.C.) । अठारह ज्योतिषसंहिताकारो में से एक । इसकी काश्यपसंहिता प्रसिद्धि है । इस संहिता के कुल पचास अध्याय है । कुल श्लोकसंख्या करीब-करीब १५०० है । कहते हैं कि, इस ग्रंथ में सूर्य पर प्राप्त धब्बों का उल्लेख है, तथा दूरवीक्षणादि यंत्रों का भी वर्णन है (कवि चरित्र) ।
काश्यप IX. n. अत्रि का मानसपुत्र
[ब्रह्मांड. ३.८.७४-८७] ।
काश्यप V. n. भौत्य मन्वन्तर का एक मनुपुत्र ।
काश्यप VI. n. सावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियो में से एक ।
काश्यप VII. n. स्वारोचिष मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ।
काश्यप VIII. n. वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियो में से एक ।
काश्यप X. n. ०. एक शाखाप्रवर्तक (पाणिनि देखिये) ।
काश्यप XI. n. १. गोकर्ण नामक शिवावतार का शिष्य ।
काश्यप XII. n. २. दाशरथि राम की राजसभा का एक धर्मशास्त्री ।
काश्यप XIII. n. ३. दाशरथि राम की सभा का एक हास्यकार ।
काश्यप XIV. n. ४. पांडवों के साथ यह द्वैतवन में था ।
काश्यप XV. n. ५. वसुदेव का पुरोहित । पांडवों के जातकर्मादि संस्कार इसने किये
[म.आ.परि.१] ;
[क्र. ६७. पंक्ति.२०] ।