केशिनी n. कश्यप एवं प्राधा की कन्याओं में से एक अप्सरा ।
केशिनी II. n. सगर की दो स्त्रियों में से ज्येष्ठ
[म.व.१०४.८] इसके शिष्या, भानुमती एवं सुमति नामांतर भिन्न भिन्न स्थानों पर मिलते है । इसकी सौत का नाम सुमति था
[भा.९.८.१५] । सगर ने इन दोनों स्त्रियोंसहित पुत्रप्राप्ति के लिये तपस्या कर, शंकर से पुत्रप्राप्ति का वरदान प्राप्त किया । इससे सगर को अमसंजस् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (सगर देखिये) । यह विदर्भकन्या थी
[वायु ८८.१५५] ।
केशिनी III. n. (सो. पूरु.) सुहोत्र के पुत्र अजमीढ की तीन स्त्रियों में से एक । इसे जह्रु, जन, रुषिन्, आदि तीन पुत्र हुए
[म.आ.८९.२८] ।
केशिनी IV. n. विश्रवस् ऋषि की पत्नी । इससे रावण कुंभकर्ण, विभीषण आदि तीन पुत्र हुए
[भा.४.१.३७,७.१.४३] ।
केशिनी V. n. दमयंती के मायके की चेटी । दमयंती का नल ने त्याग किया । इसे दमयंती ने चार बार वाहुक के पास भेजा । पहली बार उसकी जानकारी, दूसरी बार उसकी विस्तृत जानकारी, तीसरी बार नलद्वारा पकाये मॉंस का कुछ हिस्सा मँगाना तथा चौथी बार इसी के साथ अपने दोनों अपत्यों को भेज कर, क्या होता हैं यह सविस्तर रुप से पुछवाया ।
केशिनी VI. n. एक अप्रतिम लावण्यवती राजकन्या । इसने अपना स्वयंवर रचा था । इसमें अंगिरा ऋषि का पुत्र सुधन्वा एवं प्रह्रादपुत्र विरोचन आया था । इनमें जो श्रेष्ठ होगा उसे वरण करुँगी ऐसा केशिनी ने कहा । तब इनका आपस में विवाद हुआ । प्राणों की बाजी लगा कर वे प्रह्राद के पास गये । प्रह्राद ने बताया कि, सुधन्वा का पक्ष सही है । प्रह्राद के कहने पर उदार अंतःकरणवाले सुधन्वा ने विरोचन को छोड दिया । केशिनी ने विरोचन का वरण किया
[म.स.६१] ; उ.३५ । यह कथा ‘भूमि के लिये असत्य नहीं बोलना चाहिये,’ यह समझाने के लिये उद्योगर्व में विदुर से धृतराष्ट्र को बताई । द्रौपदीवस्त्र हरण के समय, यही कथा यह स्पष्ट करने के लिये बताई गई कि, असद्धर्म से व्यवहार न करते हुए अगर कोई प्रश्न पूछे, तो योग्य तथा सत्य निर्णय देना चाहिये । सत्यकथन के लिये कभी डर अथवा लज्जा, संकोच नहीं मानना चाहिये । यह कथा दो स्वरुपों में प्राप्य है । उद्योगपर्व में कहा गया है कि, सख्य होने पर ही यह वादविवाद हुआ, परंतु सभापर्व में कहा गया है कि, आपस में झगडा होते समय यह वादविवाद हुआ, तथा प्रल्हाद ने कश्यप से पूछ कर निर्णय दिया ।
केशिनी VII. n. कश्यप तथा खशा की कन्या ।
केशिनी VIII. n. बृहध्वज देखिये ।