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त्वष्ट्ट

   
Script: Devanagari

त्वष्ट्ट     

त्वष्ट्ट n.  देवताओं का शिल्पी [अ.वे.१२.३.३३] । इसका पुत्र विश्वरुप । इंद्र ने उसका वध किया । तब सब कार्य इन्द्रविरहित करने का इसने निश्चय किया । फिर भी इसके सोमयाग में, इंद्र खुद आ कर सोम पी गया । परंतु उस सोम का इंद्र को वमन करना पडा । बचे सोम का इसने हवन किया । उस हवन से एक इंद्रशत्रु देवता निर्माण हुई । उसे वृत्र कहते हैं [श. ब्रा.१.६.३.१] । गर्भवृद्धि के लिये इसकी प्रार्थना की जाती है [बृ.उ.६.४.२१] ;[ऋ १०.१८४.१] । असुर-पुरोहित वरुत्रिन् के साथ इसका उल्लेख प्राप्त है [मै.सं. ४.८.१] ;[क.सं.३०.१] । शुक्र तथा गो का यह पुत्र था । इसकी पत्नी का नाम वैरोचिनी यशोधरा [ब्रह्मांड. ३.१.८७] । विश्वकर्मा तथा प्रजापतियों में यह एक था । विश्वकर्म तथा प्रजापति के अधिकार इसे थे । इसलिये इसे ये नाम मिले । हस्तकौशल्य से जो भी किया जा सकता है, वह करने का इसे अधिकार था । इस अधिकार के अनुसार, हर चीज इसीके द्वारा बनवाई जाती थी । इस प्रकार संपूर्ण प्रजा इसीके द्वारा बनवाई जाती थी । इसलिये इसे प्रजापति कहते हैं । इन्हें ‘विश्वकर्मन्’ भी कहा है [भ.६.९.५४] । इसे कुल तीन अपत्य थे । उनके नाम त्रिशिरस् विश्वरुप तथा विश्वकर्मन‍ थे [ब्रह्मांड.३.१.८६] । इसे संन्निवेश नामक और एक पुत्र भी था [भा.६.६.४४] । यह शिल्पशास्त्रज्ञ था । सुंदोपसुंद के वध के लिये इसने तिलोत्तमा नामक अप्सरा निर्माण की [म.आ.२०३.११-१७] । त्रिपुरवध के लिये, आकाश, तारे आदि वस्तुओंसे, इसने शंकर के लिये, एक रथ निर्माण किया [म.आ.२३१.१२] । इसने दधीचि ऋषि की हड्डिओं से एक वज्र निर्माण कर, वह वृत्रवध के लिये इंद्र को दिया था [पद्म. सृ.१९] ;[भा.६.९.५४] । वज्रनिर्माण का निर्देश अन्यत्र भी है [म.वं.१००.२४] । इंद्र ने इसका पुत्र त्रिश्रस् का वध किया, तब इसने इंद्र नाश के लिये वृत्र निर्माण किया [भा.६.९.१८,५४] ;[म.उ.९.४३] ; विश्वरुप देखिये ।
त्वष्ट्ट II. n.  महाभारतकालीन स्थापत्यविशारद । युधिष्ठिर के अर्धराज्यभिषेक के समय, इंद्र ने इसे भेज कर, इंद्रप्रस्थ नगरी तयार करने को कहा । तदनुसार इसने उस नगरी की निर्मिति [म.आ.१९९.१९८७] की । खांडववन के दाह के समय, इंद्र की मदद करने यह उपस्थित था ।
त्वष्ट्ट III. n.  कश्यप तथा अदिति का पुत्र । एक आदित्य [भा. ६.६.३९] । यह प्रत्येक इष (आश्विन) माह में प्रकाशित होता है [भा.१२.११.४३]
त्वष्ट्ट IV. n.  प्रभास वसु तथा अंगिरसूकन्या ब्रह्मवादिनी का पुत्र [भवि. ब्राह्म.२.७९.१६-१७] । यह प्रत्येक फाल्गुन माह में प्रकाशित होता है । इसकी ११०० किरणें हैं [भवि. ब्राह्म.७८]
त्वष्ट्ट V. n.  (स्व.प्रिय.) भागवत मतानुसार राजा भौवन तथा दूषणा का पुत्र । विष्णु मतानुसार मनस्यु का पुत्र । इसे विरोचना नामक स्त्री थी, जिससे इसे विरज नामक पुत्र उत्पन्न हुआ [भा.५.१५.१५]
त्वष्ट्ट VI. n.  ग्यारह रुद्रों में से एक ।
त्वष्ट्ट VII. n.  तारासुर तथा देवताओं के संग्राम में तारासुर की ओर का एक दानव [मत्स्य.१७२]

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