दीननाथ n. एक विष्णु भक्त राजा । यह द्वापर युग में पैदा हुआ । इसे संतान न थी । पुत्रप्राप्ति के लिये इसने गालव ऋषि की सलाह ने, नरयज्ञ करने का निश्चय किया । योग्य मनुष्यों को ढूँढे लाने के लिये इसने दूत नियुक्त किये । इन दूतों को, दशपुर नगरी के कृष्णदेव ब्राह्मण के सुशीला से उत्पन्न तीन पुत्र, योग्य दिखाई पडे । ब्राह्मण एक भी पुत्र देने के लिये तयार नही था । चार लाख मुहरे दे कर, दूत जबरदस्ती उसका ज्येष्ठ पुत्र ले जाने लगे । ब्राह्मण ने प्रार्थन की ‘उसे छोड दो । मैं स्वयं आ रहा हूँ’। पश्चात् ब्राह्मण के छोटे पुत्र को ले जाने की कोशिश दूतों ने की, तो माता ने उन्हे रोक लिया तब मँझले पुत्र वे जबरन ले गये । मातापिता ने अत्याधिक शोक किया । बाद में सेवकों का पडाव विश्वामित्र के आश्रम में पडा । तब विश्वामित्र ने ब्राह्मण के मँझले पुत्र के बदले, खुद को नरमेध के लिये बलि के रुप में प्रस्तुत किया । परंतु नौकरों ने वह मान्य नहीं किया । पश्चात् विश्वामित्र राजा के पास आया । विश्वामित्र ने राजा से कहा, ‘पूर्णाहुति दे कर भी पुत्रप्राप्ति हो सकती है’। यह सुनते ही उस पुत्र को छोड कर, राजा ने यज्ञ किया । उस ब्राह्मणपुत्र के जान बचाने के पुण्य से, विश्वामित्र को स्वर्गप्राप्ति, तथा दीननाथ को पुत्रप्राप्ति हुई
[पद्म. ब्र.१२] ; शुनः-- शेप देखिये ।