पुलस्त्य n. ब्रह्माजी के आठ मानसपुत्रों में से एक, जो छः शक्तिशाली महर्षियों मे गिने जाते हैं
[म.आ.६०.४] । ब्रह्माजी के अन्य सात मानस पुत्रों के नाम इस प्रकार हैः
पुलस्त्य n. पुराणों में दी गयी पुलस्त्य के पुत्रों की नामावली इस प्रकार हैः-- (१) प्रीतिपुत्र---दानाग्नि, देवबाहु, अत्रि
[ब्रह्मांड.२.१२.२६-२९] ; दंभोलि (अगस्त्य)
[विष्णु.१.१०] । (२) हविर्भुवापुत्र---अगस्त्य; विश्रवा
[भा.४.१.३६] । इनके सिवा, पुलस्त्य को प्रीति से सद्वती नामक एक कन्या उत्पन्न हुयी थी ।
पुलस्त्य II. n. वैवस्वत मन्वतर में पैदा हुआ आद्य पुलस्त्य ऋषि का पुनरावतार । शिवाजी के शाप से मरे हुए ब्रह्माजी के सारे मानसपुत्र, वैवस्वत मन्वंतर के प्रारंभ में ब्रह्मा जे द्वारा पुनः उत्पन्न किये । उस समय यह अग्नि के ‘पिंगल’ केशों में सें उत्पन्न हुआ । एक बार यह मेरु पर्वत पर तपस्या कर, रहा था । उस समय गंधर्वकन्यायें पुनः पुनः इसके समीप आकार इसकी तपस्या में बाधा डालने लगी । फिर इसने क्रुद्ध हो कर, उन्हें शाप दिया, ‘जो भी कन्या मेरे सामने आयोगी, वह ‘गर्भवती’ हो जायेगी । वैशाली देश के तृणबिंदु राजा की कन्या गौ अथवा इडविडा असावधानी से इसके सामने आ गयीं । तुरंत अप्सराओं को इसके द्वारा दिये गये शाप के कारण, वह गर्भवती हो गयी । बाद में पुलस्त्य से उसका विवाह हो गया, एवं उससे इसे विश्रवस ऐडविड नामक पुत्र उत्पन्न हुआ
[म.व.२५८.१२] ;
[वा.रा.उ.४] । तृणबिंदु राजा का काल, त्रेतायुग का तीसरा मास माना जाता है । विश्रवस् का निवासस्थान नर्मदा नदी के किनारे पश्चिम भारत प्रदेश में था
[म.व.८७.२-३] । इन दो निर्देशों के आधार पर, पुलस्त्य का काल एवं स्थलनिर्णय किया जा सकता है । एक बार ‘महीसागर संगमतीर्थ’ अतिगर्व के कारण, उद्धत हो उठा । इसलिये पुलस्त्य ने उसे ‘स्तंभगर्व’ यह नया नाम प्रदान किया
[स्कंद. १.२.५.८] । ब्रह्माजी ने पुष्करतीर्थ पर किये यज्ञ समारोह में, अध्वर्यु के स्थान पर पुलस्त्य की योजना की गयी थी ।
पुलस्त्य II. n. पुलत्स्य को इडविडा से विश्रवस् ऐडविड नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ था । विश्रवस् से उत्पन्न पुलस्त्येवंश की बहुत सारी संतति राक्षस थी । इस कारण पुलस्त्य ने अगस्त्य ऋषि का एक पुत्र गोद लिया
[मत्स्य. २०२.१२-१३] । इसी दत्तोलि (दंभोलि) नामक पुत्र से, आगे चल कर, पुलत्यवंश की ‘अगस्त्य शाखा’ का निर्माण हुआ ।
पुलस्त्य II. n. पुलस्त्यवंश की विस्तृत जानकारी महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है
[म.आ.६६] ;
[वायु.७०.३१-६३] ;
[ब्रह्मांड.३.८] ;
[लिंग.१.६३] ;
[मत्स्य. २०२] ;
[भा४.१.३६] । इस वंश के लोग ‘पौलस्त्य राक्षस’ नामक सामूहिक नाम से प्रख्यात थे, जिसमें निम्नलिखित तीन शाखाओं का अंतर्भाव होता थाः--- (१) कुबेर वैश्रवण शाखा---पुलस्त्यपुत्र विश्रवस् को बृहस्पतिकन्या देववर्णिनी से कुबेर नामक पुत्र हुआ । कुबेर स्वयं यक्ष था, किंतु उसके चार पुत्र (नलकूबर, रावण, कुंभकर्ण, एवं बिभीषण), तथा एक कन्या (शूर्पणखा) राक्षस थे । उन्हीं से आगे चल कर, पौलस्त्य राक्षसवंश की स्थापना हुयी । इन राक्षसों का सम्राट स्वयं कुबेर ही था । (२) अगस्त्य शाखा---पुलस्त्य ने गोद में लिये अगस्त्यपुत्र दत्तोलि (दंभोलि) से आगे चल कर, अगस्त्य नामक ‘ब्रह्मराक्षस’ वंश की स्थापना हुयी । ब्राह्मणवंश से उत्पन्न हुये राक्षसों को ब्रह्मराक्षस कहते थे । ये ब्रह्मराक्षस वेदविद्याओं में पारंगत, एवं रात्रि के समय, यज्ञयागादि विधि करते थे । हिरण्यशृंग पर ये कुबेर की सेवा करते थे
[वायु.४७.६०-६१] ;
[ब्रह्मांड २.१८.६३-६४] । इस शाखा के राक्षस प्रायः दक्षिण हिंदुस्थान एवं ‘सीलोन’ में रहते थे । (३) विश्वामित्र तथा कौशिक शाखा---अगस्त्यों के साथ, विश्वामित्र एवं कौशिक शाखा के लोग भी ‘पौलस्त्य ब्रह्मराक्षसों’ में गिने जाते थे । ये लोग पौलस्त्यवंश में किस तरह प्रविष्ट हुये, यह नहीं कह सकते, किंतु ‘अगस्त्यों’ की तरह इन्हें भी ‘रात्रिराक्षस’ कहा जाता था ।
पुलस्त्य III. n. महाभारतकालीन एक ऋषि । अर्जुने जन्ममहोत्सव में यह उपस्थित था
[म.आ.११४.४२] । पराशर द्वारा किये राक्षस सत्र का विरोध करने के लिए अन्य महर्षियों के साथ, यह भी था । एवं इसने पराशर को समझाकार राक्षस सत्र बंद करने पर विवश किया
[म.आ.१७२.१०-११] । इसने भीष्म को विभिन्न तीर्थों का वर्णन, एवं पृथ्वी प्रदक्षिणा का महात्म्य कथान किया था
[म.व.८०-८३] । शरशय्या पर पडे हुये भेष्म से मिलने आये हुये ऋषियों में, यह भी शामिल था
[म.शां.४७.६६] ।
पुलस्त्य IV. n. एक धर्मशास्त्रकार । ‘वृद्धयाज्ञवल्क्य’ में प्राप्त स्मृतिकारों की नामावली में इसका निर्देश प्राप्त है । ‘शरीर शौच’ के विषय पर, इसके एक श्लोक का उद्धरण विश्वरुप ने दिया है
[याज्ञ. १.१७] । श्राद्धविधि के समय, ब्राह्मण शाकाहार का, क्षत्रिय तथा शूद्र मॉंस का, एवं शूद्र शहद का उपयोग करे, ऐसा इसका मत था
[याज्ञ१.२६१] । ‘मिताक्षरा’ में पुलस्त्य के दों श्लोकों का उद्धरण प्राप्त है, जिनमें ग्यारह नशा लानेवाली वस्तुओं के नाम देकर, बारहवें अत्यंत बुरे मादक पदार्थ के रुप में शराब क निर्देश किया गया है
[याज्ञ. ३.२५३] । संध्या, श्राद्ध, अशौच, संन्यासधर्म, प्रायश्चित्त आदि के संबंध में, ‘पुलस्त्य स्मृति’ के अनेक श्लोकों का निर्देश अपरार्क ने किया है । ज्ञानकर्मसमुच्चय के संबंध में भी, पुलस्त्य के दो श्लोक अपरार्क ने दिये हैं
[अपरार्क. याज्ञ. ३.५७] । आह्रिक तथा श्राद्ध के विषय में, पुलस्त्य के चालीस श्लोक ‘स्मृतिचंद्रिका’ में दिये गये हैं । रविवार, मंगलवार, एवं शनिवार के दिन स्नान करने से क्या पुण्यफल की प्राप्ति होती है, इसके बार में भी, पुलस्त्य का निर्देश ‘स्मृतिचंद्रिका’ में प्राप्त है । राम, परशुराम, नृसिंह तथा त्रिविक्रम आदि के जपानुष्ठान से क्या लाभ होता है, इस विषय में इसके मत उल्लेखनीय है । चंडेश्वर के ‘दानरत्नाकर’ में, मृगाजिनदान के विषय में, पुलस्त्य का एक गद्य उद्धरण लिया गया हैं । ‘पुलस्त्यस्मृति’ का रचनाकाल संभवतः ईसा के चौथी, सातवीं शताब्दी के बीच कहीं होगा) ।
पुलस्त्य V. n. चैत्र माह में धाता नामक आदित्य के साथ घूमनेवाला एक ऋषि
[भा.१२.११.३३] ।