बुडिल (आश्वतराश्वि वैयाघ्रपद्य) n. एक गायत्री वेत्ता एवं मूलतत्त्वप्रतिपादक आचार्य, जो वेदह जनक एवं केकयराज अश्वपति का समकालीन था
[बृ.उ.५.१४.८] ;
[श. ब्रा.१०.६.१.१] । संभव है, ‘बुलिल आश्वतर अश्वि’ तथा यह दोनो एक ही व्यक्ति हो । अनेक ज्ञाताओं की विद्वत्सभा मे इसने आत्मा की संबंध मे अपने विचार प्रकट लिये, एवं ‘शर्य’ स्वयं ही आत्मा है, ऐसा अभिमत इसने व्यक्त किया
[छां.उ.५.११.१] । इसका एवं विदेह जनक का विवाद हुआ था, जिसमें जनक ने इस पर ‘प्रतिग्रह’ ली का दोषारोप किया था । संभव है, व्याघ्रपद का वंशज होने के कारण, इसे ‘वैयाघ्रपद्य’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ हो ।