भीमसेन n. एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं मुनि का पुत्र था । यह अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित था ।
भीमसेन (पांडव) n. (सो. कुरु.) पाण्डु राजा के पॉंच ‘क्षेत्रज’ पुत्रों में से एक, जो वायु के द्वारा कुन्ती के गर्भ से उत्पन्न हुआ था । इसके जन्मकाल में आकाशवाणी हुयी थी, ‘यह बाल दुनिया के समस्त बलवानों में श्रेष्ठ बनेंगा
[म.आ.११४.१०] । पाण्डवों में भीम का स्थान सर्वोपरि न कहें, तो भी वह किसी से भी कुछ कम न था । बाल्यकाल से ही यह सबका अगुआ था । भीम के बारे में कहा जा सकता है कि, यह वज्र से भी कठोर, एवं कुसुम से भी कोमल था । एक ओर, यह अत्यंत शक्तिशाली, महान् क्रोधी तथा रणभूमि में शत्रुओं का संहार करनेवाला विजेता था । दूसरी ओर, यह परमप्रेमी, अत्यधिक कोमल स्वभाववाला दयालु धर्मात्मा भी था । न जाने कितनी बार, किन किन व्यक्तियों के लिए अपने प्राणों पर खेल कर, इसने उनकी रक्षा कर, अपने धर्म का निर्वाह किया । इस प्रकार इसका चरित्र दो दिशाओं की ओर विकसित हुआ है, तथा दोनों में कुछ शक्तियों पृष्ठभूमि के रुप में इसे प्रभावित करती रहीं । वे हैं, इसका अविवेकी, उद्दण्ड एवं भावुक स्वभाव । भीम निश्चल प्रकृति का, भोलाभाला, सीधा साफ आदमी था; यह राजनीति के उल्टे सीधे दॉंव-पेंच न जानता था । सबके साथ इसका सम्बन्ध एवं बर्ताव स्पष्ट था, चाहे वह मित्र हो, या शत्रु । यह स्पष्टवक्ता एवं निर्भीक प्राणी था । परम शारीरिक शक्ति का प्रतीक मान कर, श्री व्यास के द्वारा, भीमसेन का चरित्रचित्रण किया गया है । पांडवों में से अर्जुन शस्त्रास्त्रविद्या का, भीम शारीरिक शक्ति का, एवं पांडवपत्नी द्रौपदी भारतीय नारीतेज का प्रतीक माने जा सकती है । ये तीनो अपने अपने क्षेत्र में सर्वोपरि थे, किंतु पांडवपरिवार के बीच हुए कौटुंबिक संघर्ष में, इन तीनों को उस युधिष्ठिर के सामने हार खानी पडती थी, जो स्वयं आत्मिक शक्ति का प्रतीक था । संभव है, इन चार ज्वलंत चरित्रचित्रणों के द्वारा श्रीव्यास को यही सूचित करनी हो कि, दुनिया की सारी शक्तियों में से आत्मिक शक्ति सर्वश्रेष्ठ है ।
भीमसेन (पांडव) n. भीम का स्वरुपवर्णन भागवत में प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, यह अत्यंत भव्य शरीरवाला स्वर्ण कान्तियुक्त था । इसके ध्वज पर सिंह का राजचिन्ह था, एवं इसके अश्व रीछ के समान कृष्णवर्ण थे । इसके धनुष का नाम ‘वायव्य’, एवं शंख का नाम ‘पौंड्र’ था । इसका मुख्य अस्त्र गदा था । कौरवों का, विशेष कर दुर्योधन तथा धृतराष्ट्र का, यह आजन्म विरोधी रहा । दुर्योधन इससे अत्याधिक विद्वेष रखता था, एवं धृतराष्ट्र इससे काफी डरता था । भागवत के अनुसर, इसने दुर्योधन एवं दुशाःसन के सहित, सभी धृतराष्ट्रपुत्रों का वध किया था
[भा.१.१५.१५] ।
भीमसेन (पांडव) n. जन्म से ही यह अत्यन्त बलवान् था । जन्म के दसवें दिन, यह माता की गोद से एक शिलाखण्ड पर गिर पडा । किंतु इसके शरीर पर जरा सी भी चोट न लगी, एवं चट्टान अवश्य चूर चूर हो गयी
[म.आ.११४.११-१३] । इसके जन्म लेने के उपरांत इसका नामकरण संस्कर शतश्रुंग ऋषियों के द्वारा किया गया । बाद में वसुदेव के पुरोहित काश्यप के द्वारा इसका उपनयन संस्कार भी हुआ । भीम बाल्यकाल से ही अत्यंत उद्दंड था । कौरवपांडव बाल्यावस्था में जब एकसाथ खेला करते, तब किसी में इतनी ताकत न थी कि, इसके द्वारा की गयी शरारत का जवाब दे । दुर्योधन अपने को जब बालकों में श्रेष्ठ, एवं सर्वगुणसंपन्न राजकुमार समझता था । किन्तु इसकी ताकत एवं शैतानी के आगे उसको हमेशा मुँह की खानी पडती थी
[म.आ.१२७-५-७] । भीम भी सदैव दुर्योधन की झूठी शान को चूर करने में चूकता न था । इस प्रकार शुरु से ही पाण्डवों का अगुआ बन कर, यह दुर्योधादि के नाक के नीचे चने चबवाये रहता । इस प्रकार, इसके कारण आरम्भ से ही, पाण्डवों तथा कौरवों के बीच एक बडी खाई का निर्माण हो चुका था ।
भीमसेन (पांडव) n. दुर्योधन कौरवपुत्रों में बडा होशियार, चालबाज एवं धूर्त था । उसने इसे खत्म करने के अनेकानेक कई षड्यंत्र रचे । आजीवन वह भीम की जान के पीछे पडा ही रहा, कारण वह नहीं चाहता था कि, ये कॉंटा उसे जीवन भर चुभता रहे । एक बार जब यह सोया हुआ था, तब दुर्योधन ने इसे ऊपर से नीचे फेंकवा दिया, किन्तु इसका बाल बांका न हुआ । दूसरे बार उसने इसे सर्पो द्वार कटवाया, तथा तीसरी बार भोजन में विष मिलवा कर भी इसे खिलवाया, पर भीम जैसा का तैसा ही बना रहा
[म.आ.१२९] । जब दुर्योधन के ये षड्यंत्र सफल न हुए, तब उसने इसका वध करने के लिए एक दूसरी युक्ति सोची । उसने गंगा नदी से जल काट कर, एक जलगृह का निर्माण किया, एवं उसमें जलक्रीडा करने के लिए पाण्डुपुत्रों को आमंत्रित किया । जब सब लोग जलक्रीडा कर रहे थे, तब सभी ने एक दूसरे को फल देकर जलविहार किया । दुर्योधन ने अपने हाथों से भीम को विषयुक्त फल खिलाये, जिसके कारण जलक्रीडा कराता हुआ भीम थक कर नदी के किनारे आ कर लेट गया, तथा नींद में सो गया । यह सुअवसर देख कर, दुर्योधन ने इसे लता एवं पल्लवादि से बॉंध कर बहती धारा में फेंकवा दिया
[म.आ.११९.परि.१.७३] । इस प्रकार जल के प्रवाह में बहता हुआ भीम पाताल में स्थित नागलोक जा पहुँचा ।
भीमसेन (पांडव) n. नागलोग पहुँचते ही, इसके शरीरभार से अनेकानेक शिशुनाग कुचल कर मर गये, जिससे क्रोधित हो कर सर्पो ने इसके ऊपर हमला बोल दिया, एवं इसको खूब काटा, जिससे इसके शरीर का विष उतर गया, एवं मूर्च्छा जाती रही । जागृत अवस्था में आ कर, यह नागों को मारने लगा, जिससे घबरा कर वे सभी भागते हुए नागराज वासुकि के पास अपनी आपबीती सुनाने गये । वासुकि पहचान किया कि, सिवाय भीम के और कोई नहीं हो सकता । वासुकि इसके पास तुरन्त आया, एवं इसे आदर-पूर्वक अपने घर ले जा कर इसकी बडी आवभगत की (आर्यक देखिये) । हजारो नागो के बल को देनेवाले अमृत कुंभ को दिखा कर उसने भीम से कहा कि, जितना चाहो मनमानी पी कर आराम करो । तब इसने आठ कुंभों को आठ घूँट में ही पी डाला, एवं पी कर ऐसा सोया कि, आठ दिन बाद ही उठा । इन आठ कुंभो के दिव्य रसपान से इसे एक हजार हाथियों का बल प्राप्त हुआ । इसके जगने के उपरांत, नागों के द्वारा इसका मंगलाचरण गाया गया, एवं उनके द्वारा इसे दस हजार हाथियों के समान बलशाली होने का वरदान दिया गया । बाद को यह नागों के द्वारा नागलोक से पृथ्वी पर पहुँचा कर, सकुशल विदा किया गया । नागलोक से लौट कर यह खुशी खुशी हस्तिनापुर आ पहुँचा, एवं इसने अपनी सारी कथा मॉं कुंती को प्रणाम कर कह सुनायी । कुंती ने सब कुछ सुन कर, इस कथा को किसीसे न कहने का आदेश दिया ।
भीमसेन (पांडव) n. इसने राजर्षि शुक से गदायुद्ध की शिक्षा प्राप्त की थी
[म.आ.परि.१.क्र.६७] । अन्य पाण्डवों की भॉंति, इसे भी कृपाचार्य ने अस्त्रशस्त्रों की शिक्षा दी थी
[म.आ.१२०.२१] । पश्चात् द्रोणाचार्य ने इसे एवं अन्य पाण्डवों को नानाप्रकार के मानव एवं दिव्य अस्त्रशस्त्रों की शिक्षा दी थी । गदायुद्ध की परीक्षा लेते समय, इसके तथा दुर्योधन के बीच लडाई छिडनेवाली ही थी कि, गुरु दोण ने अपने पुत्र अश्वत्थामा के द्वारा उन्हें शांत कराया
[म.आ.१२७] । युधिष्ठिर के युवराज्यभिषेक होने के उपरांत, बलराम ने इसे खड्ग, गदा एवं के बारे में शिक्षा दे कर अत्यधिक पारंगत कर दिया
[म.आ.परि.१.क्र.८०. पंक्ति.१-८] । भीम तथा अर्जुन की शिक्षा समाप्त होने के उपरांत, द्रोण ने गुरुदक्षिणा के रुप में इनसे कहा कि, ये ससैन्य राजा द्रुषद को परास्त करें । इस युद्ध में भीम ने अपने शौर्यबल से द्रुपद राजा की राजसेना को परास्त किया, एवं उसकी राजधानी कुचल कर ध्वस्त कर देनी चाही, किंतु अर्जुन ने इसे रोंक कर, राज्य को विनष्ट होने से बचा लिया
[म.आ.परि.१.क्र.७८. पंक्ति.५१-१५५] ।
भीमसेन (पांडव) n. वारणावत में, धृतराष्ट्र के आदेशा नुसार बनाये गये लाक्षागृह में अन्य पाण्डवों तथा कुन्ती के साथ, यह भी जल कर मरनेवाला था, किन्तु विदुर के सहयोग से सारे पाण्डव बच गये । लाक्षागृह से निकलने के उपरांत, इसने अपने हाथ से ही लाक्षागृह को जला दिया, जिसमें शराब पिये अपने पॉंच पुत्रों के सहित ठहरी हुई एक औरत जल मरी । उसीमें शराब के नशें में चूर दुर्योधन का एक सेवक भी जल गया था
[म.आ.१३२-१३६] । लाक्षागृह से निकल कर, अपने भाइयों के साथ विदुर के सेवक की मदद से, इन्होंने गंगा नदी पार की । तदोपरांत शीघ्रातिशीघ्र दूर भाग चलने के हेतु से, अपने मॉं को कन्धे पर, नकुल-सहदेव को कमर पर, तथा धर्मार्जुन को हाथ में लेकर दौडते हुए, भीम ने एक जंगल में आ कर शरण ली । कुन्ती तथा अन्य पांडव थक कर इतने प्यासे हो गये थे कि, उन्हे पेड की छाया में लिटा कर, यह पानी लाने गया । पानी ला कर इसने देखा कि, सब थक कर सो गये हैं । अतएव यह उनके रक्षार्थ जागता हुआ, उनके उठने की प्रतीक्षा में बैठा रहा ।
भीमसेन (पांडव) n. इसी वन में, एक नरभक्षक राक्षस हिडिंब्र रहता था, जिसने मनुष्यसुगन्धि का अनुमान लगा कर, अपनी बहन हिडिंबा को इन्हें लाने के लिए कहा । हिंडिबा आई, तथा भीम को देखकर, इसके व्यक्तित्पर मोहित होकर, इसे वरण में प्राप्त कर लेनेके लिए निवेदन करने लगी । किन्तु भीम ने हिडिंबा की इस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया । उधर अधिक देर हो लाने पर, वस्तुस्थिति की जॉंच करता हुआ हिंडिंब राक्षस भी आ पहुँचा । पहले भीम एवं उसमें वादविवाद हुआ, फिर दोनों युद्ध में जूझने लगे । इस द्वंन्द्वयुद्ध की आवाज से सभी पांडव जाग पडे, एवं उन्हें सारी बातें भीम के द्वारा पता चलीं । पश्चात् भीम ने हिंडिंबा राक्षस का वध किया, एवं कुन्ती तथा अपने भाइयों के साथ इसने आगे चलने के लिए प्रस्थान किया । किन्तु हिडिंबा ने इसका साथ न छोडा, वह इसका पीछा करती हुई साथ अगी ही रही । अन्त में कुन्ती ने इन दोनों में मध्यस्थता कर के भीम को आदेश दिया कि, वह हिडिंबा का वरण करे । भीम ने हिडिंबा के सामने एक शर्त रखी कि, उसके एक पुत्र होने तक यह उसके साथ भोगसम्बन्ध रक्खेगा । हिडिंबा ने इसे अपनी स्वीकृति दे दी, तथा दोनों का विवाह हो गया । विवाह के उपरांत भीम एवं हिडिंबा रम्य स्थानों में घूमते हुए वैवाहिक जीवन के आनंदो में निमग्न रहे । कालान्तर में, इसे हिडिंबा से घटोत्कच नामक पुत्र हुआ ।
भीमसेन (पांडव) n. महर्षि व्यास के कथानुसार, यह अन्य पाण्डवों एवं अपनी मॉं के साथ एकचक्री नगरी में गया, जहॉं अपनी माता के आदेश पर, उसने बकासुर का वध कर, एकचक्रानगरी को कष्टों से उबारा था (बक देखिये) ।
भीमसेन (पांडव) n. द्रुपद राजा की कन्या द्रौपद्री(कृष्णा), जब स्वयंवर में अर्जुन द्वारा जीती गयी, तब वहॉं पर हुए युद्ध में इसका एवं शल्य का भीषण युद्ध हुआ था । द्रौपदी को जीत कर, अर्जुन और भीम वापस लौटे, एवं मॉं से विनोद में कहा कि, हम लोग भिक्षा लाये हैं । मजाक को न समझ सकने के कारण, मॉं ने उस भिक्षा को आपस में बॉंट लेने को कहा । इस प्रकार द्रौपदी अर्जुन के साथ भीमादि की भी पत्नी हुयी
[म.आ.१८०-१८१] ।
भीमसेन (पांडव) n. धर्मराज ने राजसूय यज्ञ किया, जिसमें कृष्ण की सलाह से युधिष्ठिर ने अर्जुन तथा भीम को जरासंध पर आक्रमण करने को कहा । वहॉं भीम एवं जरासंध में दस दिन युद्ध चलता रहा, और जब जरासंध लडते लडते थक सा गया, तब कृष्ण के संकेत पर, इसने उसे खडा चीर कर फेंक दिया । किन्तु वह फिर जुड गया । तब कृष्ण के द्वारा पुनः संकेत पा कर, इसने उसे फिर चीर डाला, तथा दाहिने भाग को अपनी दाहिनी ओर, तथा बायें भग को अपने बायों ओर फेंक दिया, जिससे दोनों शरीर के भाग जुड न सकें
[म.स.१८] ।
भीमसेन (पांडव) n. फिर भीम को धर्मराज ने पूर्व दिशा की ओर विजय प्राप्त करने के लिए भेजा, जिसमें राजा भद्रक इसके साथ था
[भा.१०.७२.४४] । इसने क्रमशः पांचाल, विदेह, गण्डक, दशार्ण तथा अश्वमेध इत्यादि पूर्ववती देशों को जीत कर, दक्षिण के पुलिन्द नगर पर धावा बोल दिया । वहॉं के राजा को जीत कर, यह चेदिराज शिशुपाल के पास गया; तथ वहॉं एक माह रह कर, इसने कुमार देश का श्रेणिमन्त को जीता । फिर ‘गोपालकच्छदेश’, उत्तरकोसल, मल्लधिप, हिमालय के समीपवर्ती जलोदभव देश, भल्लाट, शुक्रिमान्पर्वत, काशिराज सुबाहु, सुपार्श्व, राजपति क्रथ, मत्स्यदेश, मलद, अभयदेश, पशुभूमि, मदधार पर्वत तथा सोमधेयों को जीत कर, यह उत्तर की ओर मुडा । बाद में भीम ने वत्सभूमि, भर्गाधिप, निषादाधिपति, मणिमत् आदि प्रमुख राजाओं के साथ साथ, दक्षिणमल्ल, भोगवान्पर्वत, शर्मक, वर्मक, वैदेहक जनक आदि को सुलभता के साथ जीत लिया । शक तथा बर्बरों को जीतने के लिये, इसने उन्हें कूटनीति से जीता । इनके अतिरिक्त इंद्रपर्वत के समीप के किराताधिपति, सुह्य्र, प्रसुह्य, मागध, राज दण्ड, राजा दण्डधार, तथा जरासंध के गिरिव्रज नगर आदि को अपने पौरुष के बल जीत लिया । फिर इन्ही लोगों की सहायता ले कर, कर्ण तथा पर्वतवासी राजाओं को जीत कर, मोदागिरी के राजा का वध कर, इसने पुंड्राधिप वासुदेव पर आक्रमण बोल दिया । पश्चात् कौशिकी कच्छ के महौजस राजा को जीत कर, इसने वंगराज पर आक्रमण कर दिया । इसकी विजय यही समाप्त न हुयी । इसके उपरांत समुद्रसेन, चन्द्रसेन, ताम्रलिप्त, कर्वटाधिपति, सुह्यधिपति सागरवासी म्लेच्छों, लोहित्यों आदि को जीत कर, यह इंद्रप्रस्थ को वापस आया
[म.स.२६-२७] ।
भीमसेन (पांडव) n. चारों भाई जब चारों दिशाओं से दिग्विजय कर के, अतुल धनाराशि के साथ वापस लौटे, तब धर्मराज ने राजसूययज्ञ आरंभ किया । इस यज्ञ में हर भाई को भिन्न भिन्न कार्य सौंपे गये, जिसमें भीम को पाकशाला का अधिपति बनाया गया
[भा.१०.७५.४] । यह राजसूर्ययज्ञ मयसभा में हुआ, जिसकी रचना बडी चतुरता के साथ की गयी थी । जो कोई उसे देखता, वह उसकी विचित्रता देख कर चकित रहा जाता । इस सभा में पाण्डवों ने अपने बल ऐश्वर्य की ऐसी झॉंकी प्रस्तुत की, कि दुर्योधन ईर्ष्या से जला जा रहा था । इसके सिवाय इसे कई जगह मूर्ख बनना पडा, तथा जहॉं कहीं दुर्योधन को नीचा देखना पडता, वहीं भीम अट्टाहास करता हुआ उसकी हँसी उडाता । इसका यह परिणाम हुआ कि, दुर्योधन ने पाण्डवों के समस्त ऐश्वर्य को कुचल कर मिटा देन के लिए, एक योजना बनाई ।
भीमसेन (पांडव) n. दुर्योधन ने धर्मराज को द्यूतक्रीडा के लिए बुलाया । दुर्योधन ने अपने स्थान पर शकुनि को आसन दे कर, कपटतापूर्ण ढंग से धर्मराज की समस्त धनसंपत्ति का ही हरण न किया, बल्कि द्रौपदी को भी जीत कर, उसे भरी सभा में बुलाकर, उसका अपमान किया । दुःशासन उसका वस्त्र खींचने लगा, एवं दुर्योधन अपने बायें अंग को नग्न कर के द्रौपदी के सामने खडा हो गया । दुःशासन की इस धृष्टता को देख कर, भीम उबल पडा, एवं इसने उसकी बॉंयी जॉंघ तोड देने की, एवं उसके छाती फाड कर उसका रक्त पीने की भीषण प्रतिज्ञा की
[म.स.५३.६३] । अपने भाई युधिष्ठिर के ही कारण, द्यूतक्रीडा का भयानक संकट आ गया, यह सोचकर भीम युधिष्ठिर से अत्यधिक क्रोधित हुआ इसने उससे कहा, ‘जो कुछ हुआ है, उसके जिम्मेदार तुम ही हो । तुम्हारे ही हाथों का दोष है, जिन्होंने द्यूत खेल कर धनलक्ष्मी, ऐश्वर्य सब कुछ मिट्टी में मिला दिया’ इतना कहा कर इसने अपने भाई सहदेव से कहाः--- अस्याः कृते मन्युरयं त्वयि राजन्निपात्यते । बाहू ते संप्रधक्ष्यामि, सहदेवाग्निमानय ॥”
[म.स.६१.६] । (तुम मुझे अग्नि ल अकर दो, मेरी इच्छा है कि, युधिष्ठिर के द्यूत खेलनेवाले हाथों को जला दूँ) । दुःशासन के द्वारा किये गये उपहास पर क्रोधित होकर, इसने प्रण किया कि, यह दुर्योधन के साथ धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों का वध करेगा
[म.स.६८.२०-२२] ।
भीमसेन (पांडव) n. वनवासगमन का निश्चय हो जाने के उपरांत भीम समस्त भाइयों के साथ बन की और चल पडा । वहँ वक के भाई किमीर के साथ युधिष्ठिर की ऐसी बातें हुई कि, स्थिति युद्ध तक आ पहुँची । तब भीम ने उसे परास्त कर उसका वध किया
[म.व.१२.२२-६७] । वनवासकाल में जब द्रौपदी ने युधिष्ठिर से सन्यासवृत्ति को त्याग कर, राज्यप्राप्ति के लिए प्रयत्न करने को कहा, तब भीम ने भी धर्मराज के पुरुषार्थ की प्रशंसा करते हुए, उसे युद्ध के लिए उत्साहित किया था । इसने युधिष्ठिर से कहा, ‘तुम्हे धर्माचरण ही करना हो तो तुम संन्यास ले कर तपस्या करने वन में चल जाना’
[म.व.३४] । किन्तु धर्मराज के युक्तिपूर्ण वचनों के आगे यह चुप हो गया
[म.व.३४-३६] ।
भीमसेन (पांडव) n. एक बार, जब यह द्रौपदे से प्रेमालाप करता हुआ बातों में विभोर था, तब हवा में उडता हुआ एक हजार पंखुडियोंवाला (सहस्त्रदल) कमल इनके सामने आ गिरा । तब द्रौपदी ने उसे प्रकार के कई कमल इससे लाने को कहे । अपनी प्रियतमा की इच्छा पूर्ण करने के लिए भीम वैसे ही पुष्प लाने के लिए गंधमादन पर्वत पर आ पहुँचा
[म.व.१४६.१९] । इसके चलते समय होनेवाली गर्जना से हनुमान् ने इसे पहचान लिया, तथा आगे जाने पर कोई इसे शाप न दे, इस भय से वह मार्ग में अपनी पूँछे फैला कर बैठ गया । वहॉं आ कर इसने हनुमान को मार्ग से हटने लिए कहा, तथा उसके न हटने पर, इसने उसकी पूँछ पकड कर फेंक देने का प्रयत्न किया । किन्तु जब यह पूँछ तक न उठा सका, तब यह उसकी शरण में गया । हनुमान ने इस प्रकार इसके अभिमान को नीचा दिखा कर, इसे सदुपदेश दिए । समुद्रोल्लंघन काल में धारण किये गये अपने विराटरुप को दिखा कर, हनुमान् ने भीम को आशीष दे कर वर दिया, ‘जिस समय तुम रण में सिंहनाद करोगे, इस समय मै अपनी आवाज से तुम्हारी आवाज दीर्घकाल तक निनादित करुँगा, तथा अर्जुन के रथ पर बैठ कर तुम्हारी रक्षा करँगा’
[म.व.१५०.१३-१५] । इतना कह कर परिस्थिति समझाते हुए हनुमान् ने इसे आगे जाने के लिए कहा । उसने इसे सौगंधिक सरोवर का मार्ग बता कर कमलों के प्राप्त करने की विधि भी बताई
[म.व.१४६-१५०] ।
भीमसेन (पांडव) n. यह सरोवरों से कमल प्राप्त करने के लिए सौगन्धिकवन पहुँचा । वहीं कैलास की तलहटी में स्थित कुबेर का सौगन्धिक सरोवर था, जिसकी रक्षा के लिए उसने क्रोधवश नामक राक्षस रख छोडे थे । इसका क्रोधवश नामक राक्षसों के साथ युद्ध हुआ, तथा इसने इन्हे परास्त कर भगा दिया, तथाकमल तोडने लगा
[म.व.१५२.१६-२३] राक्षस भाग कर कुबेर के पास गए, तथा कुबेर ने इसे यथेच्छ विहार करने, एवं कमलों के तोडने की अनुमती प्रदान की
[म.व.१५२.२४] उधर धर्मराज को कुछ अपशकुन दृष्टिगोचर होने लगे, जिससे शंकित होकर घटोत्कच के साथ वह भीम के पास आ पहुँचा । कुबेर ने उसका स्वागत किया, तथा धर्मराज एवं भीम को अतिथि के रुप में ठहरा कर उनका खूब आदरसत्कार किया । इस प्रकार भीम एवं कुबेर में मित्रता स्थापित हो गयी । एक बार द्रौपदी ने भीम से क्रोधवध राक्षसों र्को मारकर सम्पूर्ण प्रदेश को भयरहित करने के लिए प्रार्थना की । भीम तत्काल राक्षसों के उत्पात को दमन करने के लिए निकला पडा, एवं अनेकानेक क्रोधवश राक्षसों को मार कर यमपुरी पहुँचा दिया । उनमें कुबेर का मित्र मणिमान् भी मारा गया
[म.व.१५८] । जो बचे, वे फरियाद लेकर कुबेर के पास जा पहुँचे । पहले तो कुबेर क्रोध से लाल हो उठा, किन्तु बाद को उसे स्मरण हो आया कि, ‘यह भीम की गलती नहीं, बल्कि अगस्त्य मुनि के द्वारा दिये गये शाप का परिणाम है, जीसे मुझे भुगतना पड रहा है’। ऐसा समझकर वह भीम के पास आया, तथा इससे सन्धि कर, कुछ दिनों तक अपने यहॉं रखकर, खूब आदरसत्कार किया
[म.व.१५७-१५८] । पश्चात् धर्म के साथ इसने मेरु पर्वत के दर्शन लिए, तथा पूर्ववत् गंधमादन पर्वत पर रहकर वनवास की अवधि पूरी करने लगा ।
भीमसेन (पांडव) n. एक बार अरण्य में प्रवेश करते समय अजगार रुपधारी राजा नहुष ने भीम को निगल लिया । पश्चात् उसके द्वारा पूँछे गये प्रश्नों के उचित उत्तर देकर युधिष्ठिर ने भीम के उसके चंगुल से बचाया, तथा नहुष राजा भी अजगरयोनि से मुक्त हुआ
[म.व.१७३,१७८] ; नहुष २. देखिये
भीमसेन (पांडव) n. $दुर्योधन-चित्रसेन युद्ध-- एक बार पाण्डवों को अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए, कौरव अपनी पत्नियों को लेकर द्वैतवन में आ पहुँचे । वहॉं इन्द्र की आज्ञा से, चित्रसेन गन्धर्व ने उनको बन्दी बनाकर इन्द्र के पास ले जाने लगा । तब युधिष्ठिर ने भीम से कहा कि, यह अपने भाइयों को कष्ट से मुक्त कराये । भीम ने दुर्योधन के पकडे जाने पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए, उसकी कटु आलोचना की । किन्तु युधिष्ठिर के समझाये जाने पर यह कौरवों को चित्रसेन से मुक्त करा कर वापस लाया, एवं युधिष्ठिर के सामने पेश किया । युधिष्ठिर ने सब को मुक्त किया
[म.व.२३४-२३५] ।
भीमसेन (पांडव) n. एक बार पाण्डव मृगया को गये थे, इसी बीच अवसर को देखकर, राज जयद्रथ ने द्रौपदी एवं कुलोपाध्याय धौम्य ऋषि का हरण किया । परिस्थिति का ज्ञान होते ही, पाण्डवों ने जयद्रथ पर धावा बोल दिया । भीम ने बडी वीरता के साथ जयद्रथ से युद्ध किया, एवं उसे नीचे गिराकर अपने पैरों के ठोकर से उसके मस्तक को चूर कर, उसके बाल को काट कर, घसीटता हुआ युधिष्ठिर के सामने हाजिर किया । किन्तु धर्मराज ने उसे छोड किया
[म.व.२५४-२५५] ।
भीमसेन (पांडव) n. एक बार धर्मादि के लिए पानी लाने के लिए नकुल गया । वहॉं पर यक्षरुप यमधर्म ने उसे पानी लेने के पूर्व अपने प्रश्नों के उत्तर मॉंगे, किन्तु वह न माना, तथा पानी पिया, जिस कारण वह मृत हो कर गिर पडा । धर्म की आज्ञानुसार गये हुए सहदेव, अर्जुन, तथा भीम की यही स्थिति हुयी । अन्त में युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का तर्कपूर्ण उचित उत्तर देकर वर प्राप्त कर, सभी भाइयों को पुनः जीवित कराया
[म.व.२९७] ; युधिष्ठिर देखिये ।
भीमसेन (पांडव) n. वनवास की अवधि समाप्त होने के बाद, अज्ञातवास का समय आ पहुँचा । द्रौपदी के साथ सारे पाण्डवों ने अपने वेश बदल कर, विराट राजा के यहॉं गुप्तरुप से रहने का निश्चय किया । उस समय भीम ने वहॉं पर बल्लव नाम धारण कर, रसोइये एवं पहलवान की जिम्मेदारी सँमाली । महाभारत की कई प्रतियों मे, इसक नाम ‘पौरोगव बल्लव’ दिया गया है (बल्लव देखिये) । पाण्डवों के बीच इसका सांकेतिक नाम ‘जवेश’ था
[म.वि.५.३०, २२.१२] । बल्लव का रुप धारण कर यह, विराट के दरबार में प्रविष्ट हुआ, एवं इसने यह सूचित किया कि, यह इससे पूर्व युधिष्ठिर के यहॉं का रसोइया था । इस कारण विराट ने इसे अपनी पाकशाला का अधिपति बनाया
[म.वि.७] । एकबार विराट की सभा में शंकरोत्सव में मल्लयुद्ध का आयोजन किया गया, उसमें जीभोत नामक मल्ल के द्वारा दी गयी चुनौती किसीने स्वीकार न की । यह डरता था कि कहीं लोग इसे पहचान न लें, फिर भे इसे मल्लयुद्ध में उतरना ही पडा, जिसमें भीम ने जीमूत को कुश्ती में हराकर उसका वध किया
[म.व.१२] ।
भीमसेन (पांडव) n. राजा विराट का साला कीचक, द्रौपदी पर मोहित होकर उस पर बलात्कार का प्रयत्न करने लगा । द्रौपदी ने उसी रात को पाकशाला में जा कर भीम को जगाया, तथा कीचक के वध की प्रार्थना की । भीम के द्वारा बताये हुए तरीके के अनुसार, द्रौपदी ने कीचक को नृत्यागार में बुलाया । वहॉं उसका एवं भीम का भयंकर युद्ध हुआ, जिससें इसने उसका वध किया
[म.वि.२१.६२] । सुबह कीचक के अनेकानेक बन्धुओं ने आ कर सैरन्ध्री (द्रौपदी) पर यह आरोप लगाया कि, उसके कारण ही यह सब कुछ हुआ । अतएव उसे पकड कर मृत कीचक के साथ जलाने की नियोजना की । वे उसे जलाने जा रहे थे, कि भीम विरुप वेशभूषा धारण कर, एक वृक्ष उखाद कर उनको मारने की ओर दौडा । उपकीचकों ने इसे इसप्रकार अपनी ओर आता हुआ देखकर समझ गये किं यह सैरन्ध्री का गंधर्वपति आ टपका, अतएव वे अपनी जान छोड कर भागने लगे । किन्तु भीम से भाग कर कहॉं जाते? इसने एक सौ पॉंच उपकीचकों का वध कर द्रौपदी को बन्धनमुक्त किया । पश्चात् यह एवं द्रौपदी भिन्नभिन्न मार्गो से नगर में व वापस आये
[म.वि.२२-२७] ।
भीमसेन (पांडव) n. भारतीय युद्ध के पूर्व, पाण्डवों की ओर से कृष्ण कौरवों के दरबार में गया था, एवं निवेदन किया था कि, पांडवों के उचित मॉंगों को ध्यान में रख कर उनके प्रति न्याय किया गया । जाते समय भीम ने कृष्ण से कहा था, सामनीति के द्वारा यदि आपसी सम्बन्ध न टूटे, तो अच्छा है । इस पर कृष्ण ने इससे कहा था, ‘वह स्वभाव के विरुद्ध तुम क्या कह रहे हों? तब इसने कृष्ण को तर्कपूर्ण उत्तर देते हुए कहा था, ‘आपने मुझे सही नहीं पहचाना । मैं पराक्रमी एवं बलशाली जरुर हूँ; किन्तु मैनें यहीं देखा है कि, युद्धलिप्सा से राजकुल नष्ट हो जाते है । इतिहास साक्षी है कि, अभी तक भारत में अठारह कुलघातक (कुलपांसक) राजा ऐसे हुए, जिन्होंने अपनी युद्धलिप्सा के कारण, अपने समस्त कुलों को जडमूल से समात्प कर दिया । इसी कारण मैं यही चाहता हूँ कि, जहॉं तक हो युद्ध से अलग रहकर कुरुकुल को नष्ट होने से बचायें’ (‘मा स्य नो भरत नशन्) भीम के चरित्र की यह उदत्त प्रवृत्ति, एवं समझदारी को देख कर कृष्ण चकित हो गया
[म.उ.७२-७४] ।
भीमसेन (पांडव) n. जिस युद्ध को टालने के लिए लाखों प्रयत्न किये गये वह भारतीय युद्ध शुरु हुआ, जिसमें कौरवों एवं पांण्डवों के साथ अनेकानेक वीर योद्धाओं ने भाग लिया ।
भीमसेन (पांडव) n. प्रथम दिन के युद्धारम्भ में दुर्योधन के साथ इसका द्वन्द्वयुद्ध हुआ
[म.भी.४३.१७-१८] । युद्ध प्रारम्भ होते ही, कलिंग देश के राज भानुमान्, निषध देश के राजा केतुमान् तथा श्रुतायु ने भीम पर आक्रमण बोल दिया । भीम ने भी चेदि, मत्स्य तथा करुष को साथ ले कर उनपर आक्रमण किया । किन्तु उन सब के विरुद्ध कोई ठहर न सका, केवल भीम ही मैदान में डटा रहा । इसने कलिंगों के साथ युद्ध करते हुए भानुकुल के शक्रदेव का वध किया
[म.भी.५०.२१-२२] । पश्चात् इसने कलिंग राजा भानुमान् एवं उसके बाद चक्ररक्षक सत्य एवं सत्यदेव का वध किया । इसके बाद इसने निषध देश के राजा केतृमान का भी वध किया । कलिंग देश की गजसेना को ध्वस्त कर के खून की नदियों बहा दी
[म.भी.५०.७७-८३] । इतने कुचले जाने पर भी कलिंग ने पुनः तैयारी कर के, इस पर फिर चढाई कर दी । उस समय शिखंडी, धृष्टद्युम्न तथा सात्यक इसकी सहायता के लिए आगे आये । ऐसी स्थिति देख कर, भीष्म ने कौरवसेना को व्यवस्थित कर के भीम पर धावा बोल दिया । उस समय भीम की ओर से सात्यकि ने भीष्म के सारथि को मार डाला, जिस कारण भीष्म के रथ के अश्व इधरउधर भागने लगे
[म.भी.५०, ५१.१] ।
भीमसेन (पांडव) n. भारतीय युद्ध के चौर्थे दिन, शल्य एवं धृष्टद्युम्न का घमासान युद्ध हुआ, जिसमें उन दोनों की सहायता करने के लिए उनके दस दस सहायक थे । उन सहायकों में शल्य के पक्ष में दुर्योधन, एवं द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न के पक्ष में भीम प्रमुख था । युद्ध के प्रारम्भ होते ही, भीम ने दुर्योधन पर आक्रमण किया, एवं दुर्योधन की समस्त गजसेना का संहार किया । दुर्योधन की आज्ञा से उसकी सारी सेना ने पुनः भीम पर धावा बोल दिया, किन्तु भीम ने उस सारी सेन का संहार किया । कौरवसेना की यह दुरवस्था देखकर उनके सेनापति भीष्म ने स्वयं भीम पर आक्रमण किया
[म.भी.५९.२१] । उसी समय सात्यकि ने भीष्म पर हमला किया, एवं यह सुअवसर देखकर भीम पुनः एक बार दुर्योधन से भिड गया । इस युद्ध में दुर्योधन ने एक बाण भीम के छाती में मारकर इसे घायल कर दिया । मूर्च्छा से उठते ही, भीम ने अद्भुत पराक्रम दिखाकर निम्नलिखित धृतराश्ट्रपुत्रों का वध किया---सेनापति, जलसंध, सुषेण, उग्र, वीरबाहु, भीम, भीमरथ एवं सुलोचन
[म.भी.५८.६०] ।
भीमसेन (पांडव) n. भारतीय युद्ध के छठवे दिन, भीम ने अत्यधिक पराक्रम दिखा कर शत्रुओं का अपने गदा से इस प्रकार विनाश किया, जैसे कोई हँसिये से घास काटता है, अथवा कोई डंडे से मिट्टी के ढेले फोडता है । किंन्तु इस युद्ध में यह असंख्य बाणों से घायल होकर इतना विंध गया, कि द्रुपदपुत्र ने इस अपने रथ में उठाकर शिबिर में वापस लाया
[म.भी.७३.३६-३७] ।
भीमसेन (पांडव) n. युद्ध के आठवे दिन, भीष्म अत्यधिक संतप्त हो कर युद्धभूमि में आया, किन्तु रणांगण में प्रवेश करते ही भीम ने उसके सारथी को मार डाला, जिस कारण भीष्म का रथ इधर उधर भागने लगा । पश्चात्, धृतराष्ट्रपुत्र सुनाम का भीष्म ने वध किया, जिस कारण संतप्त होकर धृतराष्ट्र के सात पुत्रों ने भीम पर आक्रमण किया, जिनके नाम इस प्रकार थेः---आदित्यकेतु, बह्राशी, कुंडधार, महोदर, अपराजित्, पंडितक, एवं विशालाक्ष । किंतु भीम ने इन धृतराष्ट्रपुत्रों का वध किया
[म.भी.८४.१४-२८] । इसी दिन संध्या के समय भीम ने निम्नलिखित धृतराष्ट्रपुत्रों का वध कियाः---अनादृष्टि, कुंडभेदिन्, वैराट, कुंडलिन्, दीर्घलोचन, (विराज, दीप्तलोचन, दीर्घबाहु, मुबाहु, एवं कनकध्वज (मकरध्वज)
[म.भी.९२.२६] ।
भीमसेन (पांडव) n. युद्ध के नौर्वें दिन कौरवपक्षीय भगदत्त एवं श्रुतायु राजा ने अपने गजदल की सहायता से भीम को घेर कर वध करने का प्रयत्न किया । किन्तु भीम ने सारे गजदल के साथ उन्हें परास्त किया
[म.भी.९८] ।
भीमसेन (पांडव) n. युद्ध के दसवें दिन, भीम को एक साथ ही दस राजाओं के साथ युद्ध करना पडा, जिनके नाम इस प्रकार थेः---भगदत्त,कृप,शल्य,कृतवर्मा,आवंत्य बंधु,जयद्रथ,चित्रसेन,विकर्ण एवं दुर्मर्षण । किन्तु यह इस युद्ध में अजेय रहा । उसी समय शिखण्डी को आगे कर, अर्जुन भीष्म पर आक्रमण कर रहा था कि, यह दूसरी ओर से हट कर अर्जुन की सहायता के लिए आ पहुँचा । दोनो ने मिल कर भीष्म पर जोर शोर के साथ युद्ध करना आरम्भ किया । इस युद्ध में अर्जुन ने अपने भीषण बाणों से भीष्म के सारे शरीर को बोंधा दिया
[म.भी.१०९.७] ।
भीमसेन (पांडव) n. युद्ध के ग्यारहवें दिन, अभिमन्यु ने शल्य के सारथि का वध किया, जिससे क्रोधित हो कर शल्य ने उसे गदायुद्ध के लिए चुनौती दी । किन्तु अभिमन्यु को हटा कर भीम स्वयं उससे गदायुद्ध करने लगा । इस युद्ध में भीम ने शल्य को युद्ध में मूर्च्छित किया
[म.द्रो.१३] ।
भीमसेन (पांडव) n. युद्ध के चौदहवें दिन, अर्जुन जयद्रथ का वध करने के लिए गया । किन्तु उसे काफी समय लग जाने के कारण, युधिष्ठिर ने अर्जुन की रक्षा के लिए भीम को भेजा । अर्जुन की सहायता के लिए जब यह आगे बढा, तब इसे सत्रह राजाओं ने उस तफ पहुँचने में बाधा डाली । इसने उन सभीको परास्त किया, जिनके नाम निम्नलिखित थेः---दुःशल, चित्रसेन, कंडभेदिन, विविंशति, दुर्मुख, दुःसह, विकर्ण, शल, विंद, अनुविंद, सुमुख, दीर्घबाहु, सुदर्शन, वृंदारक, सुहस्त, सुषेण, दीर्घलोचन, अभय, रौद्रकर्मन्, सुवर्मन् एवं दुर्विमोचन । आगे चल्र कर, कौरवसेनापति द्रोण स्वयं इसके मार्ग में बाधक बन कर उपस्थित हुआ । इसका एवं द्रोण का उग्र वादविवाद हुआ, एवं बाद को द्रोण से चिढ कर इसने उनका रथ भग्न किया । आगे चल कर, इसने दुःशासन को पराजित किया, एवं कुंडभेदी, अभय एवं रौद्रकर्मन आदि राजाओं को पुनः एक बार परास्त कर, यह आगे बडा ।
भीमसेन (पांडव) n. इसे अर्जुन के समीप आता हुआ देख कर, कर्ण ने इस पर आक्रपण किया । फिर भीम ने कर्ण के रथ के अश्वों को मार कर, उसे रथविहीन कर दिया, जिस कारण कर्ण वृषसेन के रथ में बैठ कर वापस चला गया । इसी युद्ध में भीम ने दुःशल का वध किया
[म.द्रो.१०४] । अपने नये रथ में बैठ कर कर्ण युद्धभूमि में प्रविष्ट हुआ, एवं भीम को पुनः युद्ध के लिए आवाहन किया । भीम ने आवाहन स्वीकार कर, उसे दो बार मूर्च्छित एवं रथविहीन कर के, युद्धभूमि से भाग जाने के लिए विवश किया । इस युद्ध में भीम ने दुर्मुख का वध किया
[म.द्रो.१०९.२०] । कर्ण को परास्त होता देख कर, दुर्मर्षण, दुःसह, दुर्मद, दुर्धर तथा जय नामक योद्धाओं ने भीम पर आक्रमण किया । किन्तु भीम ने उन सबका वध किया । फिर दुर्योधन ने अपने भाइयों में से शत्रुंजय, शत्रुसह, चित्र, चित्रायुध, दृष्ट, चित्रसेन एवं विकर्ण को कर्ण की सहायता के लिए भेजा । किन्तु भीम के द्वारा ये सभी लोग मारे गये । इन सभी दुर्योधन के भाइयों में भीम विकर्ण को अत्यधिक चाहता था । इसलिए उसकी मृत्यु पर भीम को काफी दुःख हुआ । इसी युद्ध में भीम ने चित्रवर्मा, चित्राक्ष एवं शरासन का मी वध किया
[म.द्रो.११०-११२] । इसके उपरांत भीम एवं कर्ण का पुनः एकबार युद्ध हुआ, जिसमें कर्ण को फिर एकबार हारना पडा । इस प्रकार कई बार भीम से हार खाने के उपरांत, कर्ण ने भीम से युद्ध करने का हठ छोड दिया
[म.द्रो.११४] । इसी युद्ध में कर्ण ने एक बार इसे, ‘अत्यधिक भोजन भक्षण करनेवाल रसोइया’ कह कर चिढाया, जिससे चिढ कर इसने अर्जुन से अनुरोध किया कि, कर्ण को शीघ्रतिशीघ्र मार कर वह कर्णवध की अपनी प्रतिज्ञा पूरी करें
[म.द्रो.११४] ।
भीमसेन (पांडव) n. उसी दिन हुए रात्रि युद्ध के समय, अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए, भानुमान् कलिंग के पुत्र ने भीम पर आक्रमण किया, जिसका इसने एक घूँसे का प्रहार मार कर वध किया । बाद को इसने कौरवपक्षीय ध्रुव राजा एवं जयरात के रथों पर कूद कर, उन्हें अपने धूँसे एवं थप्पडों से मार कर, काम तमाम किया । इसी प्रकार दुष्कर्षण को भी रौंद कर उसका वध किया
[म.द्रो.१३०] । पश्चात् इसका वाह्रीक राजा से युद्ध हुआ, जिस में इसने उसके पुत्र को मूर्छित किया । वाह्रीक ने स्वयं भीम को भी मूर्च्छित किया । मूर्च्छा हटते ही, इसने फिर कौरवसेना का संहार शुरु कर दिया, तथ दृढरथ, नागदत्त, विरजा एवं सुहस्त नामक योद्धाओं का वध किया
[म.द्रो.१३२] । इसी संहार में इसने दुर्योधन एवं कर्ण को पुनः एक बार पराजित किया, जिसमें कर्ण के रथ, धनुषादि को कुचल दिया । कर्ण ने भी इसका रथ भग्न कर दिया, जिसके कारण इसे नकुल के रथ का सहारा लेना पडा
[म.द्रो.१६१] । इसी दिन कौरव सेनापति द्रोण ने द्रुपद एवं विराट राजा का वध किया, जिसका बदला लेने के लिए द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न को साथ ले कर भीम ने द्रोण पर हमला कर दिया । किन्तु उसका कुछ फयदा न हुआ । द्रोण के द्वारा दिखाई गई वीरता, एवं उसके परिणाम से सभे पाण्डवों के पक्ष के लोग भयभीत एवं त्रस्त हो उठे ।
भीमसेन (पांडव) n. पंद्रहवें दिन, कृष्ण ने पाण्डवों के बीच बैठ कर, द्रोणाचार्य के मारने की योजना को समझाते हुए कहा, ‘द्रोणाचार्य को खुले मैदान में जीतना असम्भव है, उसे किसी चालाकी के साथ ही जीता जा सकता है । मेरा यह प्रस्ताव है कि, उसे विश्वास दिला दिया जाये कि, उसका पुत्र अश्वत्थामा मर गया है । इसका परिणाम यह होगा क्लि, वह पुत्रशोक में विह्रल हो कर अस्त्र नीचे रख देगा । फिर उसे मारना कठिन नहीं ।’ कृष्ण की सलाह के अनुसार, भीम ने अपनी सेना में से किसी इंद्रवर्मा नामक योद्धा के अश्वत्थामा नामक हाथी को गदाप्रहार से मार दिया । पश्चात् यह द्रोण के रथ के पास जा कर चिल्लाने लगा, ‘अश्वत्थामा मर गया’।
भीमसेन (पांडव) n. यह बात सुनते ही, पुत्रशोक से विह्रल द्रोण ने अपने शस्त्रादि नीचे रख दिये, एवं इस प्रकार असहाय स्थिती में द्रोण को देख कर, द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न ने क्रूरता के साथ इसका वध किया
[म.,द्रो.१६४] । अपने गुरु की इस प्रकार घुष्णित हत्या को देख कर, अर्जुन शोकाकुल हो उठा, एवं उसे युद्ध के प्रति ऐसी विरक्ति उत्पन्न हो गयी, जैसे उसे युद्ध के प्रारम्भ में हुयी थी । अर्जुन ने कहा, ‘जिस युद्ध में इस प्रकार की अधार्मिक कार्यप्रणालियों का प्रयोग करना पडता है, वह युद्ध मैं नही करुँगा’। इस पर भीम ने अर्जुन की बडी कटु आलोचना करते हुए कहा, ‘गुरु द्रोणाचार्य ब्राह्मण थे, और फिर भी क्षत्रियों की भॉंति युद्धभूमि में उतरे । इससे बडा अधर्म क्या हो सकता हैं? रही बात कि, तुम युद्धभूमि को छोड कर जा रहे हो, तो जा सकते हो । तुम्हे घमण्ड है अपने शस्त्रशक्ति की, पर तुम नहीं जानते कि, अकेला भीम कौरवसेना के संहार करने में समर्थ हैं’
[म.द्रो.१६८] । अपने पिता के शोक में संतप्त अश्वत्थामा ने क्रोधाग्नि में उबल कर भीम के ऊपर ‘नारायण अस्त्र’ का प्रयोग किया, जिससे त्रस्त होकर भीम तथा इसका सेना शस्त्रादि छोड कर हतबुद्द हो कर भागने लगी । अश्वत्थामा के नारायण अस्त्र को समेट लेने के लिए, अर्जुन ने वारुणि अस्त्र का प्रयोग कर, अश्वत्थामा को रथ के नीचे खींच कर उसे शस्त्रविहीन कर दिया । नारायण अस्त्र के शमन के उपरांत, भीम पुनः ससैन्य आया । किन्तु अश्वत्थामा के द्वारा इसका सारथी घायल हुआ, जिससे इसे युद्धभूमी से हटना पडा
[म.द्रो.१७०-१७१] ।
भीमसेन (पांडव) n. युद्ध के सोलहवें दिन कर्णार्जुनों के द्वारा व्यूहरचना होने के उपरांत भीम तथा क्षेमधूर्ति का हाथी पर से युद्ध हुआ । भीम ने क्षेमधूर्ति को पराजित कर, हाथी मार कर उसे नीचे उतरने के लिए मजबूर किया, एवं बाद में उसका वध किया
[म.क.८] । कुछ देर के उपरांत, अश्वत्थामा एवं भीम के बीच में घोर संग्राम हुआ, जिसमें दोनों एक दूसरे के शरों से घायल हो कर मूर्छित हुए, तथा अपने अपने सारथियों के द्वारा युद्धभूमि से हटाये गये
[म.क.११] ।
भीमसेन (पांडव) n. सत्रहवें दिन दुर्योधन ने जब देखा कि, उसकी समस्त सेना बुरी तरह ध्वस्त होता जा रही है, तब उसने अपना सेन का सुसंगठन कर के, भीम को समाप्त करने के लिए, स्वयं युद्धभूमि में उतर कर उस पर धावा बोल दिया । किन्तु भीम ने उसको पराजित कर उसकी समस्त गजसेना को पराजित किया
[म.क.परि.१. क्र.१४-१५] ।
भीमसेन (पांडव) n. कुछ देर के बाद कर्ण तथा भीम का युद्ध हुआ । कर्ण भीम से लडाई में परास्त हो कर युद्धभूमि से विमुख हो कर भाग जाने ही वाला था, कि दुर्योधन ने अपने भाइयों को युद्ध के लिए उत्तेजित करते हुए, भीम के विरुद्ध लडने के लिए प्रोत्साहित किया । उन सब के साथ भीम का घोर युद्ध हुआ, जिसमें इसने विवित्सु, विकट, सह, क्रोथ, नंद तथा उपनंद आदि धृतराष्ट्रपुत्रों का वध कर, श्रुतर्वा, दुर्धर, सम निषंगी ,कवची, पाशी, दुष्प्र, धर्ष, सुबाहु, वातवेग, सुवर्चस्, धनुर्ग्रह तथा शल आदि को युद्ध में परास्त किया । तब तक कर्ण पुनः तैयार हो कर युद्ध भूमि में आ पहुँचा । लेकिन भीम ने उसे एक ही बार में वेध दिया । इससे कर्ण क्रोध में पागल हो उठा, और उसने भीम का ध्वज अपने बाण से उखाड कर, इसके सारथी को काट कर इसे रथविहीन कर दिया
[म.क.३५] । कर्ण के बाणों से बिंध कर युधिष्ठिर बिल्कुल त्रस्त हो गया । भीम को, जिसे ही यह पता चला, वैसे ही इसने अर्जुन को उसके समाचार जानने के लिए भेज दिया
[म.क.४५] । कुछ समय के उपरांत, भीम दत्तचित्त हो कर दुर्योधन की सेना के संहार करने में जुट गया । दुर्योधन की आज्ञा से शकुनि ने भीम पर आक्रमण किया, किन्तु इसने उसे भूमि पर गिरा दिया, और वह बाद में दुर्योधन के रथ के द्वारा बाहर लाया गया
[म.क.४५] ।
भीमसेन (पांडव) n. शकुनि को परास्त हुआ देख कर दुःशासन आगे आया, एवं भीम पर आक्रमण बोल दिया । उसे देखते हे भीम ने उसके सारथी एवं घोडे मार डाले, एवं उसे जमीन पर गिरा कर, स्वयं रथ ने उतर कर, उसके हाथ को तोड डाला । पश्चात् उसकी छाती फोड कर, इसने उसके रक्त का प्राशन किया, तथा उसके रक्त के सने हाथों से द्रौपदी की वह वेणी गूँथी, जो दुःशासन द्वारा मुक्त के गयी थी
[पद्म.उ.१४९] । इस प्रकार भीम ने दुःशासन को मार कर अपना प्रण पूरा किया । इसी समय इसने अलंबु, कवची, खडिगन, दण्डधार, निषंधी, वातवेग, सुवर्चस् पाशी, धनुर्ग्रह अलोलुप, शल, संध (सत्यसंध) आदि धृतराष्ट्रपुत्रों का वध किया
[म.क.६१-६२] ।
भीमसेन (पांडव) n. अठारहवें दिन के युद्ध में कृतवर्मा ने भीम के घोडे मार डाला, तथा भीम द्वारा नये घोडो के प्रयोग किये जाने पर, अश्वत्थामा ने उन्हें भी मार डाला । भीम से यह देख कर कृतवर्मा का रथ विध्वंस कर, शल्य से युद्ध कर, उसके सारथी को मार डाला । यह देखकर, वह इससे गदायुद्ध करने लगा, जिसमें इसने उसे मूर्च्छित कर पराजित किया
[म.श.१२] । इसने इक्कीस हजार पैदल सेना एवं न जाने कितनी गजसेना का विनाश किया । इससे लडने के लिए निम्नलिखित धृतराष्ट्रपुत्र आये । किन्तु इसने सब का वध कियाः---दुर्मुर्षण, श्रुतान्त (चित्राङ्ग) जैत्र, भूरिबल (भीमबल), रवि, जयत्सेन, सुजात, दुर्विषह (दुर्विषाह), दुरिविमोचन, द्रुष्प्रधर्ष (दुष्प्रधर्षण) श्रुतर्वान
[म.श.२५.४-१९] । इसके बाद धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का भी इसने वध किया
[म.श.२६] ।
भीमसेन (पांडव) n. दुर्योधन को ‘जलस्तंभन विद्या’ अती थी, अतएव वह जलाशय के अंअदर, पानी में छिपकर बैठ गया । पाण्डवों को इसका पता चला, एवं वे जलाशय के निकट आकर उसे युद्ध के लिए आह्रान करने लगे । युधिष्ठिर ने सहजभाव से कहा, ‘हम सब से एक साथ तुम युद्ध न करो । हम पॉंचो में जिअसे चाहो युद्ध कर सकते हो, और उस युद्ध यें यदि तुम उसे हर दोगे, तो हम पूरा राज्य तुम्ह दे देंगे । यह सुन कर कृष्ण आगे आया, और भीम को आगे करते हुए कहा, ‘किसी और को नहीं, भीम को ही जीत लो समस्त राज्य तुम्हारा है’। इस प्रकार दुर्योधन को भीम से भिड दिया गया । कारण, कृष्ण जानता था कि, दुर्योधन गदायुद्ध में प्रवीण है; उसका जवाब केवल भीम ही है, और कोई नहीं । इस प्रकार दुर्योधन एवं भीम की लढाई टक्कर के साथ होने लगी । अर्जुन ने कृष्ण की सलाह से अपनी बायी जॉघ ठोंक कर भीम को संकेत दिया कि, इसने क्या पण किया था । अपनी प्रतिज्ञा का ध्यान आते ही, भीम ने भीषण गदाप्रहार से दुर्योधनकी जॉंघ तोड दी एवं उसे नीचे गिरा दिया । इसने दुर्योधन का तिरस्कार करते हुए एक लाथ कस कर उसके मस्तक पर ऐसी मारी कि, तत्काल उसकी मृत्यु हो गया
[म.श.५८.१२] । बलराम क्रोधित हो कर भीम पर आक्रमण करने के लिए दौडा, तथा कहा ‘यह अधर्म युद्ध है’। किन्तु, कृष्ण ने उसे तत्काल समझा कर रो लिया
[म.श.५९.२०-२१] ।
भीमसेन (पांडव) n. द्रौपदी शोक में संतप्त युधिष्ठिर से कहने लगी कि, वह अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुनाना चाहती हैं, जिसने उसके पुत्रों का वध किया है । युधिष्ठिर उसको समझना लगा । तब वह भीम के पास आया तथा कहा ‘अश्वत्थामा को मार कर उसका मणि ले आओ, तभी मुझे शांति मिलेगी’। यह अश्वत्थामा से युद्ध करने के लिए चल पडा, तथा साथ में अर्जुन भी इसकी रक्षार्थ गया । भीम ने अश्वत्थामा के साथ घोर युद्ध किया, जिसमें वह इसकी शरण में आया तथा अपना मणि निकाल कर दे दिया
[म.सौ.११-१६] ।
भीमसेन (पांडव) n. भारतीय युद्ध के उपरांत, सभी लोग हस्तिनापुर पहुँचे । वहॉं आपस के वैमनस्य को भूल कर एकता के साथ रहने की बात धृतराष्ट्र ने रक्खी, तथा पाण्डवों के साथ आलिंगन कर गले मिलने की अभिलाषा प्रकट की । युधिष्ठिर से गले मिलने के बाद, जिसे उसने भीम को बुलाया, वैसे ही उसकी मुखमुद्रा भाप कर, कृष्ण ने भीम को हटा कर अन्धे धृतराष्ट्र के आगे भीम के कद की लौहप्रतिमा खडी की । धृतराष्ट्र भीम का नाम सुनते ही खौल उठता था । अतएव उस लौहप्रतिमा को भीम समझ कर इतनी जोर से आलिंगन किया कि, मूर्ति चूर चूर होकर ध्वस्त हो गयी । बाद को जब उसे पता चला कि, वह मूर्ती थी, तो मन में बडा लज्जित हुआ । यह देख कर कृष्ण ने धृतराष्ट्र को बहुत बुराभला कहा
[म.स्त्री.१२-१३] । भीम गांधारी से भी मिलने गया, एवं उसे अपनी सफाई देते हुए क्षमा मॉंगी, जिससे सुन कर गांधारी शांत हुई
[म.स्त्री.१४] ।
भीमसेन (पांडव) n. धर्मराज युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए भीम ने संन्यास का विरोध किया, एवं कर्तव्यपालन पर जोर देते हुए कहा कि, वह दुःखों की स्मृति एवं मोह को त्याग कर, मन को काबू में रख कर राज्यशासन करे, एवं पाप के नाश के लिए अश्वमेध यज्ञ कर धर्म की स्थापना करे । धर्मराज ने भीम की सलाह मान कर इसे युवराज के रुप में अभिषेक किया
[म.शां.४१.८] । बाद में सारे पाण्डवो धृतराष्ट्र से प्रेम व्यवहार रखने लगे, किन्तु भीम धृतराष्ट्र को फूटी ऑखों न देख सकता था । जब धृतराष्ट्र ने वह जाने के लिए इच्छा प्रकट की, एवं राजकोष से धन की मॉंग की, तब भीम ने उसका विरोध किया । तब युधिष्ठिर तथा अर्जुनादि ने अपने कोषों से उसे द्रव्य दिया
[म.आश्र.१७] ।
भीमसेन (पांडव) n. एक बार व्यास ने इसे निर्जला एकादशी के माहात्म्य को बताया । उसे करने को यह तैयार तो हुआ, किन्तु भोजनभक्त होने के कारण, यह सोच में पडा गया कि, मुझे इस व्रत को हर माह पडेगा । किन्तु जब इसे पता चला कि, पिता किसी गांजन तथा जलग्रहण किये हुए केवल एक बार इसे व्रत को कर लेने से, सब एकादशियों का फल प्राप्त होता है, तो यह तत्काल तैयार हो गया । तब से ज्येष्ठ माह की शुद्ध एकादशी व्रत को ‘भीमजलाकी एकादशी’, एवं उसके दूसरे दिन को ‘पाण्डव द्वादशी’ कहते हैं
[पद्म. उ.५१] ।
भीमसेन (पांडव) n. स्कंदपुराण में भीम के अहंकारनाश की एक कथा दी गई है । एकबार युद्ध समाप्ति के उपरांत, सभी पाण्डवों के साथ कृष्ण उपस्थित था । बातचीत के बीच सब ने युद्धविजय का श्रेय कृष्ण को देना आरम्भ किया, जिसे सुनकर भीम अहंकार के साथ कहने लगा, ‘यह मैं हूँ, जिसने अपने बल से कौरवों का नाश किया है । श्रेय का अधिकारी मै हूँ’। तब गरुड पर बैठकर कृष्ण भीम को अपने साथ लेकर आकाशमार्ग से दक्षिण दिशा की ओर उडा । समुद्र तथा सुवेल पर्वत लॉंघ कर लंका के पास बारह योजन व्यास के सरोवर को दिखा कर, कृष्ण ने भीम से कहा कि, यह उसके तल का पता लगा कर आये । चार कोस जाने पर भी भीम को उसके तल का पता न चला । वहॉं के तमाम योद्धाओं उसके ऊपर आक्रमण करने लगे । तब यह हॉंफता हुआ ऊपर आया, एवं अपनी असमर्थता बताते हुए सारा वृत्तांत कह सुनाया । कृष्ण ने अपने अंगूठे के झठके से उस सरोवर को फेंक दिया, एवं इससे कहा, ‘यह राम द्वारा मारे गये कुंभकर्ण की खोपडी है, तथा तुम पर आक्रमण करने वाले योद्धा, सरोगेय नामक असुर हैं । यह चमत्कार देखक भीम का अहंकार शमित हुआ, एवं लज्जित होकर इसने कृष्ण से माफी मॉंगी
[स्कंद.१.२.६६] ।
भीमसेन (पांडव) n. काफी वर्षो तक राज्यभोग करने के उपरांत, अग्नि के कथानुसार, पाण्डवों ने शस्त्रसंन्यास एवं राज्य संन्यास लिया, एवं वे उत्तर दिशा की ओर मेरु पर्वत पर की ओर अग्रेसर हुए । मेरु पर्वत पर जाते समय युधिष्ठिर को छोड कर द्रौपद्री सहित सारे पाण्डव इस क्रम से गल गयेः---द्रौपदी, सहदेव, नकुल, अर्जुन एवं भीम । स्वर्गरोहण के पूर्व हे अपना पतन देखते हुए, इसने युधिष्ठिर से उसका कारण पूछॉं । युधिष्ठिर ने कारण बताते हुए कहा, ‘तुम अपने को बलशाली तथा दूसरे के तुच्छ मानते थे, तथा अत्यधिक भोजनप्रिय थे । इसी लिए तुम्हारा पतन हो रहा है’
[म.महा.२] । मृत्यु के समय इसकी आयु एक सौ सात साल की थी (युधिष्ठिर देखिये) ।
भीमसेन (पांडव) n. भीम की कुल तीन पत्नियॉं थीः---हिडिंबा, दौपदी एवं काशिराज की कन्या बलधरा । उनमें से द्रौपदी से इसे सुतसोम नामक पुत्र हुआ
[म.आ.५७.९१] । हिंडिबा से इसे घटोत्कच नामक पुत्र हुआ । भागवत में द्रौपदी से उत्पन्न इसके पुत्र का नाम श्रुतसेन दिया गया है । काशिराज कन्या को स्वयंवर में जीत कर प्राप्त किया था । उससे इसे शर्वत्रात नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था
[म.आ.९०.८४] । भागवत में इसकी तीसरी पत्नी का नाम ‘काली’ दिया गया है, एवं उससे उत्पन्न पुत्र का नाम ‘सर्वतत’ बताया गया है काली देखिये;
[भा. ९.२२.२७-३१] । महाभारत के अनुसार, इसकी पत्नी काली चेदि देश के सुविख्यात राजा शिशुपाल की बहन थी, जो भीम का कट्टर शत्रु था
[म.आश्र.३२.११] ।
भीमसेन (पारिक्षित) n. सुविख्यात पूरुवंशीय सम्राट परिक्षित् का पुत्र, जो जनमेजय पारिक्षित का बन्धु था
[श.ब्रा.१३.५.४३] । शौनक नामक आचार्य ने इससे एक यज्ञ करवाया था
[सां.श्रौ.१६.९.३] ;
[विष्णु.४.२०.१] ;
[म.आ.३१२] । कुरुक्षेत्र में किये यज्ञ में देवताओं की कुत्तियॉं सरमा के बेटे को पीटा था ।
भीमसेन (पारिक्षित) II. n. (सो.पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा, जो अरुग्वत् पुत्र परिक्षित् (द्वितीय) का पुत्र था । इसकी माता का नाम सुयथा था । इसकी पत्नी का नाम सुकुमारी था, जो केकय देश की राजकुमारी थी । सुकुमारी इसे पर्यश्रवस् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ
[म.आ.९०-४५] ।
भीमसेन II. n. (सो. ऋक्ष.) एक राजा, जो विष्णु एवं वायु के अनुसार, ऋक्ष राजा का पुत्र था । मत्स्य के अनुसार, यह दक्ष राजा का पुत्र था ।
भीमसेन III. n. (सो. क्षत्र.) एक राजा, जिसका निर्देश पुराणों में ‘भीमरथ’ नाम से प्राप्त है (भीमरथ २. देखिये) । इसके पुत्र दिवोदास को गालव ऋषि ने अपनी कन्या माधवी विवाह में दी थी । इसका पुत्र होने के कारण, दिवोदास को ‘भैमसेनि’ पैतृकनाम प्राप्त था
[म.उ.११७.१] ;
[क.सं.७.२] ।