मार्कंडेय n. भृगुवंश में उत्पन्न एक महामुनि, जो मृकंड अथवा मृंकड ऋषि का पुत्र था
[अग्नि.२०.१०] ;
[विष्णु.१.१०.३] ;
[नारद.१.४, ४.१-४५] । मृकंड का पुत्र होने से इसे ‘मार्कडेय’ अथवा ‘मार्कड’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ था
[मत्स्य.१०३.१३-१५] ।
मार्कंडेय n. पार्गिटर के अनुसार, उषनस् शुक्र का पुत्र मर्क इसका पिता था । उषनस् शुक के सारे वंश्ज दान एवं अनार्य लोगों के सात संबंध प्रस्थापित करने के कारण विनष्ट हुए । उनमें से केवल मर्क एवं शंड इन दो पुत्रों ने आर्य लोगों से संबंध प्रस्थापित किया, जिस कारण उनकी परंपरा अबाधित रही । मर्क का पुत्र मार्कडेय तो भृगुकुल का सुविख्यात गोत्रकार बना
[मत्स्य.१९५.२०] ।
मार्कंडेय n. दीर्घायु प्राप्त करनेवाले ऋषि के रुप में मार्कडेय का निर्देश अनेक ग्रंथों में प्राप्त है
[म.व.८६.५,१८०.३९] । कहीं कहीं इसके अमर होने का उल्लेख भी मिलता है
[म.व.१८०.४] । संभव यही है कि, अपने मार्कडेय नामक वंशजों के कारण इसकी परंपरा अबाधित रही हो, एवं उसीका संकेत इसे अमर कह कर किया गया हो । मार्कडेय दसवें त्रेयायुग में उत्पन्न हुआ था । इसकी पत्नी का नाम धूमोणा था
[म.अनु.१४६.४] । प्रारम्भ में इसकी आयु कम थी, किन्तु बाद में यह दीर्घायु हुआ । पहले इसे केवल छः महीने की आयु प्राप्त हुयी थी । किन्तु पॉंच महीने तथा चौवीस दिन बीतने के बाद, सप्तर्षियों ने इसे दर्शन देकर दीर्घायु प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया । ब्रह्मा ने इसे ऋषिश्रेष्ठत्व तथा कल्पां तक आयु प्रदान की, तथा पुराणों के रचने का वर प्रदान किया । पॉंचवे वर्ष में इसक उपनयन संस्कार हुआ था । सप्तर्षियों ने इसे दण्ड तथा यज्ञोपवीत दिया था
[पद्म.सृ.३३] । इसने अपना एक आश्रम स्थापित किया था, जिसकी पूर्ण जानकरी पुलस्त्य ने राम को बतायी थी
[नारद.१.५] ।
मार्कंडेय n. मार्कडेय ऋषि ने अत्यधिक घोर तप किया था । यह तप छः मन्वन्तरों तक चलता रहा । इसकी तपस्या से घबरा कर, पुरंदर नामक इन्द्र ने इसकी तपस्या में विघ्न उत्पन्न करने के लिए अनेकानेक प्रयत्न किये । पुरंदर ने सर्वप्रथम वसंत का निर्माण किया; बाद में अप्सराओं एवं गंधर्वौ आदि के साथ कामदेव को इसकी तपस्या भंग करने के लिए भेजा, किंतु यह अपनी तपस्या में निमग्न रहा । इसकी तपस्या से प्रसन्न हो कर नरनारायण, बालकुंदरुपी ब्रह्म, तथा स्वयं शंकर भगवान् ने इसे दर्शन दिया । शंकर ने इसे वर प्रदान करते हुए कहा, ‘तुम्हारी सारी इच्छायें पूर्ण होंगी । तुम्हें अविच्छिन्न यश प्राप्त होगा । तुम त्रिकालदर्शी होगे, तुम्हें आत्मनात्मविचार का सम्यक ज्ञान होगा, तथा तुम श्रेष्ठ पुराण के कर्ता हो कर, कल्पसमाप्ति तक अजर एवं अमर होंगे
[भा.१२.८-१०] । इस प्रकार शंकर ने इसे चौदह कल्पों तक की आयु प्रदान की
[भा.४.१.४५] ;
[म.व.१३०.३२] ।
मार्कंडेय n. यह ब्रह्माजी की सभा में रह कर उसकी उपासना करता था
[म.,स.११.१२] । ब्रह्माजी के पुष्कर क्षेत्र में हुए यज्ञ में भी यह उपस्थित था
[पद्म.सृ.३३] । इसने हजार हजार युगों के अंत में होनेवाले अनेक महाप्रलह के दृश्य देखे थे । ब्रह्मा को छोड कर संसार में इससे बडी आयुवाला कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था । प्रलयकाल में जब सारी सृष्टि विनष्ट हो जाती है, तब यह ब्रह्मजी के पास रह कर उनकी आराधना में निमग्न रहता है । प्रलयकाल के उपरांत पुनः रची गयी सारी सृष्टि को सब से पहले यही देखता है । इसने अपनी चित्तवृत्तियों का निरोध कर, लोगगुरु ब्रह्मा की कृपा से मरीचि आदि प्रजापतियों को भी जीत लिया था । यह भगवान् नारायण के समीप रहनेवाले भक्तों में सर्वश्रेष्ठ था । इसने सर्वव्यापक परब्रह्म की उपलब्धि के लिए, स्थानभूत हृदयकमल की कर्णिका का यौगिक-कला से उद्घाटन किया था, एवं वैराग्य तथा अभ्यास से प्राप्त हुयी दिव्यदृष्टि के द्वारा विश्वरचयिता भगवान् का अनेक बार दर्शन किया था । इसलिए सब को मारनेवाली मृत्यु, तथा शरीर कों जर्जर बना देनेवाली जरा इसका स्पर्श नहीं कर सकती थी
[म.व.१८६.२-११] । इसने कल्पांत में वटवृक्ष तथा प्रलय का भी दर्शन किया था
[ब्रह्म.५२.५३] । इसने बालमुकुन्द के उदर में प्रवेश कर वहॉं ब्रह्मांड का दर्शन किया था ।
[म.व.१८८.८८-१२५] । उदर से बाहर निकलने पर, इसने बालमुकुन्द का स्तवन कर उससे वार्तालाप किया था
[ब्रह्म.५४.५६] ;
[म.व.१८६.८१-१२९] । मयसभा में जब पाण्डवों ने प्रवेश किया था, तब यह वहॉं उपस्थित था
[म.स.४.१३] । ब्रह्मसभा में भी जब पाण्डव गये थे, तब यह वहॉं उपस्थित था
[म.स.११.१२५ पंक्ति.१] । युधिष्ठिर जब मार्कडेय के आश्रम में गया था, तब लोमश ऋषि ने उसे मार्कडेय का चरित्र सुनाया था
[म.व.१३०] । युधिष्ठिर वनवास के समय जब यह उससे मिलने गया था, तब वहॉं श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे ।
मार्कंडेय n. इसने पाण्डवों को धर्म का आदेश दिया था । युधिष्ठिर के द्वारा प्रश्न किये जाने पर, इसने उससे महर्षियों तथा राजर्षियों के जीवनसम्बन्धी विविध उपदेशपूर्ण कथायें सुनायी थीं । इसने युधिष्ठिर को विस्तार से बहुविधरुप से धर्मोपदेश दिया था, एवं प्रयागक्षेत्र का माहात्म्य बताया था
[म.व.१७९-२२१] ;
[मत्स्य.१०३-११२] । इसने युधिष्ठिर आदि को श्रीराम का उपाख्यान, तथा सती सावित्री का चरित्र सुनाया था
[म.व.२५७-२८३] । इसने भद्रतनु नामक ब्राह्मण को दान्त से उपदेश प्राप्त करने के लिए कहा था, एवं हेममाली को शाप से विमुक्त किया था
[पद्म.क्रि.१७] ;
[पा.५२] । इसने धृतराष्ट्र को त्रिपुरवध की कथा सुनायी थी
[म.क.२४] । शरशय्या पर पडे हुए भीष्म को देखने के लिए अन्य ऋषियों के साथ यह भी गया था
[म.शां.४७.६६] । यह भीष्म के प्रयाणकाल के समय भी उपस्थित था
[म.अनु.२६.६] । इसने नारद से विभिन्न प्रकार के प्रश्न किये थे
[म.अनु.२२.७] । नारद ने इसे चार युग तथा भार्याधर्म के बारे में बताया था
[म.अनु.५४, ५७] । युधिष्ठिर ने महाप्रस्थान से पूर्व अन्य ऋषियों के साथ इसका भी पूजन किया था
[म.महा.१.३] ।
मार्कंडेय n. महाभारत वनपर्व में ‘मार्कडेयसमस्यापर्व’ नामक एक उपपर्व है, जिसमें मार्कडेय एवं युधिष्ठिर के बीच में हुए तत्त्वज्ञानसम्बन्धी अनेकानेक संवादों का वृत्तान्त प्राप्त है
[म.व.१७९-२२१] । उस पर्व मे निम्नलिखित विषयों पर मार्कडेय ने अपने विचार एवं कथासूत्रों का विवेचन किया हैः---ब्राह्मणामहात्म्य एवं हैहयवृत्तान्तकथन; पृथु वैन्य के यज्ञ में हुआ अत्रि-गौतम संवाद; स्वाध्यय दानवृत्तिमहात्म्य,
[म.व.१८४] ; वैवस्वत मनु का चरित्र एवं मत्स्योपाख्यान
[म.व.१८५] ; प्रलयकालीन भगवत्महात्म्य
[म.व.१८६-१८७] ; वायुप्रोक्त कलिभविष्यकथन
[म.व.१८८-१८९] ; द्वितीय बार ब्राह्मणमहात्म्य
[म.व.१९०] : वृद्धतम इन्द्रद्युम्न कथा
[म.व.१९१] ; धुंधमारआख्यान
[म.व.१९२-१९५] ; पतिव्रताख्यान
[म.व.१९६-१९७] ; ब्राह्मणव्याधसंवाद
[म.व.१९८-२०६] ; अंगिरसोत्पत्ति
[म.व.२०७-२२१] । इन सारे संवादों से प्रतीत होता है कि, महाभारतकाल में इसका अत्यधिक सम्मान था, एवं इसके तत्त्वज्ञान सम्बन्धी विचारधारा से युधिष्ठिर आदि ज्ञानी भी प्रभावित थे ।
मार्कंडेय n. इसके नाम निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त हैः---१. मार्कडेयस्मृति,२. मार्कडेयसंहिता । उसी प्रकार इसने ‘मार्कडेयस्तोत्र’ नामक शिव का स्तोत्र भी किया था (C.C.) । इसने तामस पुराणों में से ‘मार्कडेय;’ तथा ‘वाराह’ नामक पुराणों की रचना की थी
[भवि.प्रति.३.२८.१३] ।
मार्कंडेय n. इसकी धर्मपत्नी का नाम धूमोर्णा था
[म.अनु.१४६.४] । इसके पुत्र का नाम वेदशिरस् था
[विष्णु१.१०.४] ।
मार्कंडेय n. मार्कडेय ऋषि का आश्रम हिमालय के उत्तर भाग में पुष्पभद्रा नदी के तट पर चित्रा नामक शिला के पास था । वहॉं इसने अत्यंत उग्र तपस्या की, जिससे भयभीत हो कर इंद्र ने इसकी तपस्या में बाधा डालने का प्रयत्न किया । किंतु इसकी तपस्या अटूट रही । अंत में नरनारायणों ने प्रसन्न हो कर, इस पर अनुग्रह किया ।
मार्कंडेय II. n. एक ऋषि, जो अयोध्या के दशरथ राजा के उपऋत्विजों में से एक था
[वा.रा.बा.७.५] । राम दाशरथि राजा के आठ धर्मशास्त्रियों में से यह एक था
[वा.रा.उ.७४.४] । सीतास्वयंवर के समय यह राम के साथ मिथिला गया था
[वा.रा.बा.६९.४] । पद्म के अनुसार, इसने राम को ‘अवियोगद कूप’ नमक पवित्र कुऑ दिखाया था
[पद्म.सृ.३३] । वाल्मीकि रामायण में प्रायः सर्वत्र इसका निर्देश ‘दीर्घायु’ नाम से प्राप्त है, जिससें प्रतीत होता है कि, मार्कडेय इसक पैतृक नाम था, एवं मृकंड का पुत्र होने से इसे यह नाम प्राप्त हुआ था ।
मार्कंडेय III. n. एक आचार्य, जो वायु के अनुसार व्यास की ऋक्शिष्यपरंपरा में से इंद्रप्रमति ऋषि का शिष्य था । अन्य पुराणों में इसके नाम के लिए ‘मांडुकेय’ पाठभेद प्राप्त है (व्यास देखिये) ।