मेधातिथि n. (स्वा.प्रिय.) शाकद्वीप का एक सुविख्यात राजा, जों प्रियवत एवं बर्हिष्मती के पुत्रों में से एक था । इसे निम्नलिखित सात पुत्र थेः
मेधातिथि (काण्व) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ.१.१२.२३, ८.१.३-२९, २.४१-४२, ९२] । ऋग्वेद में अन्यत्र इसका निर्देश ‘मेध्यातिथि काण्व’ नाम से प्राप्त है
[ऋ.१.३६.१०] । इसने स्वयं को ‘काण्व मेधातिथि’ कहलाया है
[ऋ.८.२०.४०] ।
मेधातिथि (काण्व) n. यह कण्व का वंशज, एवं प्रसिद्ध वैदिक ऋषि था । ऋग्वेद के अनुसार, इन्द्र इसके पास एक मेष के रुप में आया था
[ऋ.८.२.४०] । यही पुराण कथा सुविख्यात ‘सुब्रह्मण्य मंत्र’ में भी निहित है, जिसमें इन्द्र को ‘मेधातिथि का मेष’ कहा गया है, एवं जिसका पाठन यज्ञमंडप में सोम को ले आते समय पुरोहित करते है
[जै.ब्रा.२.७९] ;
[श.ब्रा.३.३.४.१८] । पंचविंश ब्राह्मण में, इसके एवं वत्स ऋषि के दरम्यान हुए वादसंवाद का निर्देश प्राप्त है, जहॉं इसने उसे हीनकुलत्व का लाच्छन लगाया था । किन्तु वत्स ने अग्निपरीक्षा के द्वारा, अपने कुल की श्रेष्ठता साबित की थी
[पं.ब्रा.१४.६.६] । यह विभिन्दुकियों के यज्ञ का बृहस्पति था, जिन्होने इसे विपुल गायें प्रदान की थी
[जै.ब्रा.३.२३३] । आसंग राजा ने भी इसे विपुल धन प्रदान किया था । अतः इसने उसकी स्तुति की थी
[ऋ.८.२.४१-४२] । अथर्ववेद में इसका उल्लेख अनेक ऋषियों के साथ प्राप्त हैं
[अ.वे.४.२९.६] ।
मेधातिथि (काण्व) n. आंगिरस गोत्र के लोगों में से ‘काण्व’ अथवा ‘काण्वायन’ गोत्र के आदिपुरुष मेधातिथि, एवं इसके पिता कण्व माने जाते है । वायु,मत्स्य, विष्णु एवं गरुड के अनुसार, सुविख्यात पौरव राजा अजमीढ को कण्वनामक एक पुत्र था, जिसका पुत्र मेधातिथि था । आगे चल कर, इसी मेधातिथि से काण्वायन ब्राह्मण उत्पन्न हुए
[मत्स्य.४९.४६-४७] ;
[वायु.९९.१६९-१७०] । इसी ‘काण्वायन’ गोत्र में निम्नलिखित वैदिक सूक्तद्रष्ट आचार्य उत्पन्न हुए थेः---प्रगाथ काण्व
[ऋ.८.६५.१२ बृहद्दे.६.३५-३९] ; पृषध्र काण्व, जो दस्यवेवृक का समकालीन था
[ऋ.८.५६.१-२] ; देवातिथि काण्व
[ऋ.८.४.१७] ; वत्स काण्व
[ऋ.८.६.४७] ; सध्वंस काण्व
[ऋ.८.८.४] ।
मेधातिथि II. n. एक ऋषि, जो वसिष्ठ की अरुन्धती नामक पत्नी का पिता था । इसका आश्रम चन्द्रभागा नदी के तट पर था । इसने ज्योतिष्टोम नामक यज्ञ किया था
[कालि.२२] ।
मेधातिथि III. n. वैवस्वत मन्वन्तर का सत्रहवॉं व्यास ।
मेधातिथि IV. n. एक प्राचीन महर्षि, जिसका पिता कण्व पूरब के सप्तर्षियों में से एक था
[म.शां.२०१.२६] । महाभारत के अनुसार, यह एक दिव्य महर्षि था, एवं इसने वानप्रस्थाश्रम का स्वीकार कर, स्वर्ग-प्राति की थी
[म.शां.२३६.१५] । उपरिचर वसु राजा यज्ञ का यह एक सदस्य था
[म.शां.३२३.७] । यह इंद्रसभा का भी सदस्य था
[म.स.७.१५] । शरशय्या पर पडे हुए भीष्म से यह मिलने के लिये आया था, एवं युधिष्ठिर के द्वारा यह पूजित हुआ था
[म.अनु.२६.३-९] ।
मेधातिथि V. n. सुमेधस् देवों में से एक ।
मेधातिथि VI. n. एक ऋषि, जो परिक्षित राजा की मृत्यु के समय उपस्थित था
[भा.१.१९.१००] |
मेधातिथि VII. n. दक्षसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ।