मैत्रेय n. अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण ।
मैत्रेय (कौशारव) n. एक सुविख्यात आचार्य एवं तत्त्वज्ञानी । ऐतरेय ब्राह्मण में इसे ‘कौशारव’ नामक आचार्य का पैतृक अथवा मातृक नाम बताया गया है, एवं इसके द्वारा सुत्वन् कैरिशय राजा को ‘ब्राह्मण परिमर’ विद्या प्रदान की जाने की कथा दी गयी है
[ऐ.ब्रा.८.२८.१८] ।
मैत्रेय (कौशारव) n. पाणिनि के अनुसार, यह मित्रेयु नामक आचार्य का पुत्र था, जिस कारण इसे ‘मैत्रेय’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ
[पा.सू.६.४.१७४,७.३.२] । छांदोग्य उपनिषद के अनुसार, यह किसी मित्रा नामक स्त्री का पुत्र था, जिस कारण इसे ‘मैत्रेय’ यह मातृक नाम प्राप्त हुआ था
[छां.उ.१.१२.१] । भागवत में इसे कुषारव एवं मित्रा का पुत्र कहा गया हैं, जिस कारण इसे ‘कौषारव’ अथवा ‘कौषरवि’ पैतृक उपाधि प्राप्त हुयी होगी
[भा.३.४.२६, ३६, ५.१७] । युधिष्ठिर की मयसभा में भी यह उपस्थित था
[म.स.४.८] ।
मैत्रेय (कौशारव) n. जिस समय पांडव वनवास में थे, उस समय व्यास के आदेशानुसार, यह धृतराष्ट्र एवं दुर्योधन के पास उन्हें पाण्डवो के बल-पौरुष का ज्ञान कराने के लिए गया था । इसने दुर्योधन को बार बार समझाया, एवं अनुरोध किया, ‘तुम पाण्डवो से द्रोह मत करो’। किन्तु दुर्योधन ने हँसते हुए इसकी खिल्ली उडाई, एवं जॉंघ ठोकते हुए इसके द्वारा दिये गये उपदेश का अनादर किया । तब इसने क्रोधावेश में दुर्योधन को शाप दिया, ‘तुम्हारी यह जंघा भीम की गदा के द्वारा भग्न होगी । यदि अब भी तुम पाण्डवों से मित्रता स्थापित करने को तैयार हो, तो मेरी यह शापवाणी व्यर्थ हो सकती है, अन्यथा नहीं’
[म.व.११.३२] ।
मैत्रेय (कौशारव) n. मैत्रेय धार्मिय प्रवृत्ति का ऋषि था, एवं ऋषि मुनियों के सत्संग के कारण, यह ज्ञानी, दानी एवं वेदमार्ग का अनुसरण करनेवाला हुआ था । यह एकान्त में रहना विशेष पसंद करता था । एक बार वाराणसी में यह गुप्तरुप से एक स्वैरिणी के घर में रहता था । यकायक श्री व्यास ने वहॉं आ कर इसे दर्शन दिया । मैत्रेय व्यास को देख कर अति प्रसन्न हुआ, एवं इसने उसकी विधिवत पूजा की । पश्चात् इसने व्यास से विज्ञान, ज्ञान एवं तप के संबंध नानाविध प्रश्न किये, एवं व्यास ने उन प्रश्नों के यथोचित जवाब दे कर इसे आत्मज्ञान कराया । विद्या, ज्ञान, एवं तप का ज्ञान करानेवाला यह ‘व्यास-मैत्रेय संवाद’ महाभारत में प्राप्त है
[म.अनु.१२०-१२२] ।
मैत्रेय (कौशारव) n. श्रीकृष्ण ने जिस समय उद्धव को उपदेश दिया था, उस समय मैत्रेय भी वहॉं उपस्थित था । श्रीकृष्ण की इच्छा थी कि, इस उपदेश के समय तत्वज्ञानी विदुर भी उपस्थित होता तो अच्छा था । किंतु विदुर उन दिनों तीर्थयात्रा के लिए बाहर गया था । तीर्थयात्रा के उपरांत विदुर ने कृष्ण के उस उपदेश को सुनना चाहा, जिसे उसने उद्धव को दिया था । किन्तु विदुर के लौटने तक कृष्ण का निर्वाण हो चुका था । उस उपदेश को सुनने तथा जानने की इच्छा से, विदुर उद्धव के पास गया, लेकिन उद्धव ने उसे मैत्रेय के पास भेज कर कहा, ‘मैत्रेय परम ज्ञानी हैं । कृष्ण की वाणी का कथन वही कर सकता है’ । तब विदुर मैत्रेय के पास आया । मैत्रेय ने विदुर को कृष्ण का उपदेश सुनाया । इस उपदेश के अन्तर्गत ‘कर्दमदेवहुतिसंवाद.’ ‘ध्रुवचरित्र’ तथा ‘दक्षयज्ञ’ आदि की कथाओं का वर्णन तत्त्वज्ञान के दृष्टि से किया गया था । मैत्रेय के द्वारा कृष्ण का यह उपदेश जो विदुर से कहा गया, वह भागवत के तृतीय तथा चतुर्थ स्कंदों में प्राप्त है, जिसे ‘विदुर-मैत्रेय संवाद’ कहा गया है । अध्यात्म के क्षेत्र में यह अपने किस्म का अनूठा संवाद है । कृष्ण के द्वारा उद्धव को दिया गया संवाद भागवत के एकादश स्कंद में प्राप्त है । महाभारत में जिस प्रकार गीता एवं अनुगीता है, उसी प्रकार भागवत में ‘उद्धवकृष्ण संवाद’ एवं ‘विदुर मैत्रेयसंवाद’ भी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं । भीष्म के देहत्याग के समय, तमाम ऋषियों के साथ यह भी वहॉं उपस्थित था
[म.शां.४७.६५] । यह व्यास की भॉंति चिरंजीव माना जाता है । लोगों का ऐसा विश्वास है कि, आज भी यह अपने भक्तों को दर्शन देता हैं ।
मैत्रेय (ब्राह्मण) n. मैत्रेय राजा से ‘मैत्रेय ब्राह्मण’ नामक ब्राह्मणजाति का निर्माण हुआ । मैत्रेय एवं इसके पूर्वज ‘क्षत्रिय ब्राह्मण’ कहलाते थे । उत्तर पंचाल देश के मुद्नल राजा ज्येष्ठ पुत्र ब्रह्मिष्ठ सर्वप्रथम ब्राह्मण बन गया, जिससे ‘मुद्नल’ अथवा ‘मौद्नत्य’ नाम क्षत्रिय ब्राह्मण उत्पन्न हो गये । ये ब्राह्मण स्वयं को ‘आंगिरस’ कहलाते थे
[मत्स्य.५-७] ;
[वायु.९०.१९८-२०१] । ब्रह्मिष्थ का पुत्र वध्र्यश्व, एवं पौत्र दिवोदास ये दोनो वैदिक सूक्तद्रष्टा थे, एवं भार्गव कुल में शामिल हो गये थे
[ऋ.१०.५९.२, ८.१०३.२] । स्वयं मैत्रेय, एवं इसका पिता मित्रयु ‘भार्गव’ कहलाते थे । पराशर ऋषि ने मैत्रेय को ‘विष्णु पुराण’ का ज्ञान कराया था
[विष्णु.१.१.४-५] । मैत्रेय एवं मौद्नल्य ब्राह्मन कुलों में कोई भी विख्यात ऋषि उत्पन्न न हुआ था, किन्तु मैत्रेय कौशाख नामक एक ऋषि का निर्देश वैदिक ग्रंथों में प्राप्त है (मैत्रेय कौशारव देखिये) ।
मैत्रेय (सोम) n. (सो.नील.) उत्तर पंचाल देश का सुविख्यात ब्रह्मक्षत्रिय राजा, जो ‘मैत्रेय ब्राह्मणशाखा’ का उत्पदन माना जाता है । अपने पितामह दिवोदास, एवं पित मित्रेयु के समान, यह भी भृगुवंशीयों में संमिलित हो गया था, जिस कारण इसे ‘मैत्रेय भार्गव’ भी कहा जाता है
[मत्स्य.५०.१३] ;
[वायु.९९.२०६] ;
[ब्रह्म.१३] ;
[ह.वं. १.३२.७५-७७] । इसके बाद इसका पुत्र सृंजय उत्तर पंचाल देश के राजगद्दी पर बैठा ।
मैत्रेय II. n. ग्लाव एवं बक दाल्भ्य नामक आचार्यो का पैतृक नाभ
[छां.उ.१,१२.१] ;
[गो.ब्रा.१.१.३१] ;
[अ.वे.११०] ।