रजि n. (सो. पुरुरवस्.) पुरूरवसवंशीय एक राजा, जो प्रतिष्ठान देश के आयु राजा के पँच पुत्रों में से एक था । इसकी माता का नाम प्रभा था, जो दानव राजा स्वर्भानु की कन्या थी
[म. आ. ७०.२३] । इसके अन्य चार भाईयों के नाम क्रमश: नहुष. क्षत्रवृद्ध, (वृद्धशर्मन्), रंभ, एवं अनेनस् (विपाप्मन्) थे । यह एवं इसके ‘राजेय क्षत्रिय’ नामक वंशज इन्द्र के साथ स्पर्धा करने से विनष्ट होने की कथा कई पुराणों में प्राप्त है । यह स्वयं अत्यंत पराक्रमी था, एवं युद्ध में जिस पक्ष में रहता था, उसे विजय प्राप्त कराता था । एक बार देवासुर संग्राम में इंद्रपद प्राप्ति की शर्त पर यह देवों के पक्ष में शामिल हुआ । उस समय इन्द्र भी स्वयं दुर्वल वन गया था, एवं स्वर्ग का राज्य सम्हालने की ताकद उसमें नही थी । इस कारण इंद्र ने खुशी से अपना राज्य इसे प्रदान किया । इस तरह यह स्वयं इंद्र वन गया । आगे चल कर इससे सैंकडो पुत्र उत्पन्न हुये, जो ‘राजेय क्षत्रिय’ सामूहिक नाम से सुविख्यात थे । वे सारे पुत्र नादान थे, एवं इंद्रपद सम्हालने की ताकद उनमें से किसी एक में भी न थी । इस कारण, इन्द्र ने देवगुरु वृहस्पति की सलाह से उन पुत्रों को भ्रष्टबुद्धि बना कर उनका नाश किया, एवं उनसे इंद्रपद ले लिया
[भा. ९.१७] ;
[वायु. ९२. ७६-१००] ;
[ब्रहांड. ११] ;
[ह. वं. १.२८] ;
[मत्स्य. २४. ३४-४९] । वायु में इसे विष्णु का अवतार बताया गया है, एवं इसके द्वारा कोलाहल पर्वत पर दानवों के साथ किये गये युद्ध का निर्देश किया गया है । इस युद्ध में देवताओं की सहाय्यता से इसने दावों पर विजय प्राप्त की थी
[वायु. ९९.८६] ।
रजि II. n. एक दानव राजा, जिसका इंद्र ने पिठीनस् नामक राजा के संरक्षण के लिए वध किया था
[ऋ. ६.२६.६] । सायणाचार्य के अनुसार, रजि एक स्त्री का नाम है, जिसे इंद्र ने पिठीनस् राजा को प्रदान किया था ।