लिखित n. एक मुनि, जो जैगीष्यव्य के दो पुत्रों में से एक था । इसकी माता का नाम एकपर्णा, एवं भाई का नाम शंख था
[ब्रह्मांड. ३.१०.२१] । यह वाहुदा नदी के तट पर आश्रम बना कर रहता था, जहाँ निकट ही इसके भाई शंख का भी आश्रम था । एक बार शंख के अनुपस्थिति में यह उसके आश्रम में गया, एवं विना पूछे ही आश्रम में से कुछ फल खाने लगा । इतने में शंख वहाँ उपस्थित हुआ, एवं इस पर चोरी का आरोप लगा कर, उसने इसे राजा के पास से इस अपराध की सजा लेने के लिए कहा । तदोपरांत, यह सूद्युम्न राजा के पास गया, एवं अपना अपराध उसे बता कर उसकी सजा पूछने लगा । फिर राजा ने इससे कहा, ‘तुमने स्वयं अपना अपराध कवूल किया है । इसलिए तुम्हे सज्ञा देने की कोई जरुरत नही हैं । इस प्रकार राजा के द्वारा बेगुनाह साबित होने पर भी, इसने आत्मग्लानि को वशीभूत हो कर, खुद के दोनों हाथ कटवाये । पश्वात यह नदी पर स्नान करने के लिए गया, जहाँ शंख ऋषि के तपोबल से इसके दोनों हाथ इसे पुनः प्राप्त हुए
[म. शां. २४] ;
[अनु. १३७.१९] यह एवं इसके भाई शंख के द्वारा लिखित ‘शंख स्मृति’ नामक एक स्मृतिग्रंथ उपलब्ध है (शंख ६. देखिये) ।
लिखित II. n. चंपकापुरी के हंसध्वज राजा का एक दुष्टकर्मा पुरोहित । इसे शंख नामक एक भाई था, जो इसीके ही समान हंसध्वज राजा का पुरोहित था, एवं इसीके ही समान दुष्टबुद्धि था । पाण्डवों का अश्वमेधीय अश्व हंसध्वज राजा के द्वारा रोका गया, जिस कारण उसका अर्जुन के साथ युद्ध हुआ । उस समय हंसध्वज राजा ने अपने सैन्य को ऐसी आज्ञा दी कि, हरएक सैनिक सूर्योदय पूर्व सैन्यसंचलन के लिए उपस्थित हो, एवं जो इस आज्ञा का भंग करेगा उसे उबलते तेल में डाला दिया जाए । दूसरे दिन हंसध्वज राजा के पुत्र सुधन्वन् को ही संचलन के लिए आने में देर हुई, एवं राजा के आज्ञानुसार सजा भुगतने की आपत्ति आई । अपने पुत्र को इतनी कडी सजा देने में राजा का मन हिचकिचाने लगा । किन्तु इस दुष्टबुद्धि पुरोहित ने राजा को यह कार्य करने पर विवश किया । फिर राजा की आज्ञानुसार, सुधन्वन् को उबलते तेल में डाला गया, किन्तु वह सुरक्षित ही रहा । फिर तेल बराबर उबला नहीं है, इस आशंका से इसने एक नारियल तेल में छोड दिया । तत्काल उस नारियल के दो टुकडे हो कर, उनके द्वारा यह एवं उसके भाई शंख का कपालमोक्ष हुआ
[जै. अ. १७] ।