वसुदेव n. (सो. वृष्णि.) एक यादव राजा, जो श्रीकृष्ण का पिता था । यह मथुरा के उग्रसेन राजा का मंत्री, एवं (पांडुपत्नी) कुंती का बन्धु था । इसके पिता का नाम शूर (देवमीढ) एवं माता का नाम मारिषा था । इसके जन्म के समय देवताओं ने आनक वं दुंदुभियो का घोष किया, जिस कारण इसे ‘आनकदुंदुभि’ नामान्तर भी प्राप्त था
[भा. ९.२४.२८] ;
[वायु. ९६.१४४] ;
[ब्रह्म. १४] ।
वसुदेव n. उग्रसेन के भाई देवक के सात कन्याओ के साथ इसका विवाह हुआ था, जिसमें देवकी प्रमुख थी । इस विवाह के समय, देवकी का चचेरा भाई एवं उग्रसेन राजा का पुत्र कंस, स्वयं रथ का सारथ्य करने बैठा था । बारात के समय, देवकी के आठवें पुत्र के द्वारा कंस का वध होने की आकाशवाणी उसने सुनी, जिस कारण कंस ने इसे एवं देवकी को कारागृह में रख दिया। किन्तु इसके आठवे पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म होते ही, यह रात्री में ही व्रज में नंद गोप के घर गया, एवं वहॉं श्रीकृष्ण को छोड़ कर उसके बदले नंद गोप एवं यशोदा की नवजात कन्या ले आया। यशोदा एवं देवकी सहेलियॉं थी, जिन्होंनें यह संकेत पहले से ही निश्र्चित किया था
[दे. भा. ४.२३] । पश्र्चात् कंस ने इसे मुक्त किया, एवं इसने गर्ग ऋषि के द्वारा नंद गोप के घर में रहनेवाले अपने बलराम एवं कृष्ण इन दो पुत्रों के जातकर्मादि संस्कार किये
[भा. १०.५.२०-२१] । भागवत के अनुसार, स्वयं श्रीकृष्ण ने इसकी कंस के कारागृह से मुक्तता की थी
[भा. १०.३६.१७-२४] ।
वसुदेव n. पौण्ड्रक वासुदेव राजा के साथ यादवों का युद्ध हुआ था, जिस समय यह भी उपस्थित था । नारद ने इसे भागवतधर्म का उपदेश किया था, जिसमें उसने इसे निमि जनक एवं नौ योगेश्र्वरो के बीच हुआ तत्त्वज्ञान पर उपदेश कथन किया था
[भा. ११.२-५] ।
वसुदेव n. इसने स्यमन्तपंचकक्षेत्र में अश्र्वमेध यज्ञ किया था, जिस समय इसके अश्र्वमेधीय अश्र्व का जरासंध ने हरण किया था
[म. स. ४२.९] । किन्तु श्रीकृष्ण ने वह अश्र्व लौट लाया, एवं इसका यज्ञ भलीभॉंति समाप्त हुआ। इस यज्ञ के समय इसने नंद गोप का विपुल भेटवस्तुएँ दे कर सत्कार किया था
[भा. १०.६६] ।
वसुदेव n. कृष्ण की मृत्यु की वार्ता सुन कर, यह अत्यंत उद्विग्न हुआ
[म. मौ. ५] । इसने अपने पुत्रो में से सौमी एवं कौशिक को अपने भाई वृक के गोद में दिया, एवं प्रभासक्षेत्र में देहत्याग किया। पश्र्चात् अर्जुन की नेतृत्व में, एक अत्यंत मौल्यवान् मनुष्यवाहक यान से इसका शव स्मशान में ले जाया गया। इसकी स्मशान यात्रा के अग्रभाग में इसका आश्र्वमेधिक छत्र था, एवं पीछे इसके स्त्रियों का परिवार था । इसके अत्यंत प्रिय थान पर इसका दाहकर्म किया गया
[म. मौ. ८.१९-२३] । इसकी पत्नियों में से देवकी, भद्रा, रोहिणी एवं मदिरा आदि स्त्रिया इसके शव के साथ सती हो गयीं।
वसुदेव n. इसकी पत्नियों की संख्या वायु एवं हरिवंश में क्रमशः १३ एवं १४ दी गयी हैं
[वायु. ९६.१५०-१६१] ;
[ह. वं. १.३५.१] । मत्स्य एवं भागवत में पत्नियों की कुल संख्या अप्राप्य हैं, किंतु भागवत में इसके १३ पत्नियाँ का अपत्यपरिवार दिया गया है ।
वसुदेव n. इसकी पत्नियों में निम्नलिखित स्त्रिया प्रमुख थी ---(१) देवकन्याएँ---१. देवकी; २. सहदेवा; ३. शांतिदेवा, जिसे वायु एवं मत्स्य में क्रमशः ‘शार्ङ्गदेवा’ एवं ‘श्राद्धदेवा’ कहा गया है; ४. श्रीदेवा; ५. देव रक्षिता; ६. वृकदेवा (धृतदेवा); ७. उपदेवा। (२) पूरुकुलोत्पन्न स्त्रियाँ---१. रोहिणी, जिसे हरिवंश एवं ब्रह्मांड में बाह्लीक राजा की, एवं वायु में वाल्मीक राजा की कन्या कहा गया है; २. मदिरा (इंदिरा - ह. व.); ३. भद्रा; ४. वैशाखी (वैशाली - विष्णु.); ५. सुनाम्नी। उपर्युक्त पत्नियों में से वैशाखी वं सुनाम्नी का निर्देश भागवत में अप्राप्य हैं, जहॉं उनके स्थान पर ‘रोचना’ एवं ‘इला’ नाम प्राप्त हैं । (३) भोगांगना---१. सुगंधा (सुतनु-ह. व.); २. वनराजी (रथराजी-मत्स्य.; वडवा-ह. वं.) । भागवत एवं विष्णु में इनके निर्देश अप्राप्य है । (४) अन्य पत्नियाँ---१. वैश्या; २. कौसल्या।
वसुदेव n. (१) रोहिणीपुत्र---१. राम; २. सारण; ३. दुर्दम (दुर्मद); ४. शठ (गद-भा., निशव-वायु.); ५. दमन (विपुल-भा., भद्राश्र्व-विष्णु); ६. शुभ्र (सुभ्र-मत्स्य.; श्र्वभ्र-ह. वं., कृत-भा., भद्रबाहु-विष्णु.); ७. पिंडारक (कृत-भा., दुर्गमंभूत-विष्णु.); ८. कुशीतक (उशीगर-ह. वं, महाहन्-मत्स्य., सुभद्र-भा.) । सारे पुराणों में रोहिणी की पुत्रसंख्या आठ बतायी गयी है । केवल भागवत में उसके बारह पुत्र दिये गयें है, जिनमें से उर्वरीत चार निम्नप्रकार हैः - १. भद्रवाह; २. दुर्मद, ३. भद्र, ४. भूत। इनके अतिरिक्त रोहिणी को दो निम्नलिखित कन्याएँ भी थी, जिनका उल्लेख हरिवंश में प्राप्त हैः- १. चित्रा (चित्राक्षी-मत्स्य.), २. सुभद्रा (चित्राक्षी-मत्स्य.) । (२) मदिरापुत्र---१. नंद, २. उपनंद; ३. कृतक (स्थित-वायु.); ४. कुक्षिमित्र; ५. मित्र; ६. पुष्टि; ७. चित्र; ८. उपचित्र; ९. वेल; १०. तुष्टि। इनमें से पहले तीन पुत्रों का निर्देश हरिवंश एवं मत्स्य के अतिरिक्त बाकी सारे पुराणों में प्राप्त है । ४.८ पुत्रों के नाम केवल वायु एवं विष्णु में प्रापत है । ९-१० पुत्रों के नाम केवल विष्णु में प्राप्त है । वायु में इन दो पुत्रों के स्थान पर ‘चित्रा’ एवं ‘उपचित्रा’ नामक दो कन्याओं का निर्देश प्राप्त है । भागवत में ४-१० पुत्रों के नाम अप्राप्य हैं, किंतु वहॉं ‘शूर’ आदि बिल्कुल नये नाम दिये गये है । (३) भद्रापुत्र---(अ) वायु एवं ब्रह्मांड में ---१. बिंब; २. उपबिंब; ३. सत्वदंत; ४. महौजस्। (ब) विष्णु में---१. उपनिधि; २. गद। (४) वैशाखी (वैश्या) पुत्र---कौशिक, जिसे भागवत में कौसल्यापुत्र कहा गया है । (५) सुनाम्नीपुत्र---१. वृक; २. गद (ह. व.) । (६) सहदेवापुत्र---(अ) ब्रह्मांड में---१. पूर्व। (ब) भागवत में---१. पुरु; २. विश्रुत आदि (क) वायु में---1. भयासख । (7) शांतिदेवापुत्र (अ) ब्रह्मांड में - १. जनस्तंभ। (ब) भागवत में---१. श्रम; २. प्रतिश्रुत आदि। (क) हरिवंश में---१. भोज; २. विजय। (८) श्रीदेवापुत्र---(अ) भागवत में---१. वसु; २. हंस; ३. सुवंश। (ब) ब्रह्मांड में---१. मंदक। (९) देवरक्षितापुत्र---(अ) भागवत में---१. उपासंग; २. वसु। इन दोनों पुत्रों का कंस ने वध किया (ब) हरिवंश में---१. उपासंगधर। (क) भागवत में---१. गद। (ड) मत्स्य में---एक कन्या, जिसका कंस ने वध किया । (१०) वृकदेवापुत्र---(अ) हरिवंश एवं ब्रह्मांड में---१. अगावह। (ब) वायु में - १. स्वगाहष; २. अगाहिन्। (क) मत्स्य में---१. अवागह; २. नंदक। (ड) भागवत में---विपुष्ठ। (११) उपदेवापुत्र---(अ) वायु एवं मत्स्य में---१. विजय; २. रोचन (रोचमत्); ३. वर्धमत्; ४. देवल। (ब) भागवत में---१. कल्प; २. वृक्ष। (१२) देवकीपुत्र (अ) मत्स्य में---१. सुषेण; २. कीर्तिमत् ; ३. भद्रसेन; ४. भद्रविदेह (भद्रदेव-ब्रह्मांड; भद्रविदेक-वायु; भद्र-भागवत.); ५. ऋषिदास (ऋ.जुकाय - ब्रह्मांड.; यजुदाय-वायु; ऋज-भागवत); ६. दमन (उदर्षि-ब्रह्मांड.; तदय-वायु; संमर्दन-भागवत.); ७. गवेषण। ये सारे पुत्र कंस के द्वारा मारे गये। इनकेअतिरिक्त देवकी के कृष्ण वं सुभद्रा नामक संतानों का निर्देश वायु एवं मत्स्य में, तथा संकर्षण नामक पुत्र का निर्देश भागवत एवं विष्णु में प्राप्त है । (१३) ताम्रापुत्र---सहदेव। (१४) सुगंधपुत्र---१. पुंड्र, जो राजा बन गया; २ कपिल, जों वन में गया। (१५) वनराजीपुत्र---१. जरस्, जो धनुर्विद्याप्रवीण था, किन्तु कालोपरांत निषाद बन गया
[ब्रह्मांड. ३.७१] ;
[वायु. ९६.१५९-२१४] ;
[मत्स्य. ४६] ;
[भा. ९.२४.२७-२८] ;
[विष्णु. ४.१५] ;
[ह. वं. १.३५.१-१०] ।
वसुदेव (काण्व) n. (कण्व. भविष्य.) काण्वायन राजवंश का आद्य राजा, जो शुंग राजा देवभूति (देवभूमि) का अमात्य था । देवभूति का वध कर यह शुंगराज्य का अधिपति बना। इसने पॉंच वर्षों तक राज्य किया। इसके पुत्र का नाम भूमित्र था
[भा. १२.१.१९-२०] ;
[मत्स्य. २७२.३२] ;
[ब्रह्मांड. २.७४.१५६] ।
वसुदेव II. n. (सू. इ.) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो विष्णु के अनुसार चंचु राजा का पुत्र था । वायु एवं भागवत में इसे ‘सुदेव’ कहा गया है ।
वसुदेव III. n. एक दुराचारी ब्राह्मण, जो अपने ईश्र्वरभक्ति के कारण, अगले जन्म में असुरराज प्रल्हाद बना
[पद्म.उ.१७४] ।