विभीषण n. रावण का कनिष्ठ भाई, जो विश्रवस् ऋषि एवं कैकसी के तीन पुत्रों में से एक था
[वा. रा. उ. ९.७] । भागवत के अनुसार, इसकी माता का नाम केशिनी अथवा मालिनी था
[भा. ४.१.३७] । वाल्मीकि रामायण में वर्णित विभीषण धार्मिक, स्वाध्यायनिरत, नियताहार, एवं जितेंद्रिय है
[वा. रा. उ. ९.३९] । इसी पापभीरुता के कारण, अपने भाई रावण का पक्ष छोड़ कर यह राम के पक्ष में शामिल हुआ, एवं जन्म से असुर होते हुए भी, एक धर्मात्मा के नाते प्राचीन साहित्य में अमर हुआ।
विभीषण n. कैकसी को विश्रवस् ऋषि से उत्पन्न हुए रावण एवं कुंभकर्ण ये दोनों पुत्र दुष्टकर्मा राक्षस थे । किंतु इसी ऋषी के आशीर्वाद के कारण, कैकसी का तृतीय पुत्र विभीषण, विश्रवस् के समान ब्राह्मणवंशीय एवं धर्मात्मा उत्पन्न हुआ
[वा. रा. उ. ९.२७] । भागवत के अनुसार, यह स्वयं धर्म का ही अवतार था
[भा. ३७.१४] ।
विभीषण n. इसने ब्रह्मा की घोर तपस्या की थी, एवं उससे वरस्वरूप धर्मबुद्धि की ही माँग की थी
[वा. रा. उ. १०.३०] । इस वर के अतिरिक्त, ब्रह्मा ने इसे अमरत्व एवं ब्रह्मास्त्र भी प्रदान किया था
[वा. रा. उ. १०.३१-३५] ।
विभीषण n. यह लंका में अपने भाई रावण के साथ रहता था, किंतु स्वभावविरोध के कारण इसका उससे बिल्कुल न जमता था । रावण के द्वारा सीता का हरण किये जाने पर, सीता को राम के पास लौटाने के लिए इसने उसकी बार बार प्रार्थना की थी । किन्तु रावण ने इसके परामर्श की अवज्ञा कर के, सीता को लौटाना अस्वीकार कर दिया
[वा. रा. सुं. ५.३७] । सीता की खोज में आये हुए हनुमत् का वध करने को रावण उद्यत हुआ। उस समय भी, इसने रावण से प्रार्थना की, ‘दूत का वध करना अन्याय्य है । अतः उसका वध न कर, दण्डस्वरूप उसकी पूँछ ही केवल जला दी जाये’। हनुमत् के द्वारा किये गये लंकादहन के समय, उसने इसका भवन सुरक्षित रख कर, संपूर्ण लंका जला दी थी
[वा. रा. सुं. ५४.१६] ।
विभीषण n. राम-रावण युद्ध के पूर्व, रावण ने अपने मंत्रिगणों की एक सभा आयोजित की थी, जिस समय विभिषण भी उपस्थित था । उस सभा में इसने सीताहरण के कारण सारी लंकानगरी का विनाश होने की सूचना स्पष्ट शब्दों में की थी, एवं सीता को लौटाने के लिए रावण से पुनः एक बार अनुरोध किया था
[वा. रा. यु. ९] । उस समय, रावण ने विभीषण की अत्यंत कटु आलोचना की, एवं इसे राक्षसकुल का कलंक बताया (रावण दशग्रीव देखिये) । इस घोर भर्त्सना से घबराकर, अनल, पनस, संपाति, एवं प्रमाति नामक अपने चार राक्षस-मित्रों के साथ यह लंकानगरी से भाग गया एवं राम के पक्ष में जा मिला।
विभीषण n. वानरसेना के शिबिर के पास पहुँच कर अपना परिचय राम से देते हुए इसने कहा, ‘‘में रावण का अनुज हूँ। उसने मेरे सलाह को ठुकरा कर मेरा अपमान किया है । अतः मैं अपना परिवार छोड़ कर, तुम्हारी शरण में आ गया हूँ’’ (त्यक्त्वा पुत्रांश्र्च दारांश्र्च राघवं शरणं गतः)
[वा. रा. यु. १७.१६] । इस अवसर पर विभीषण का वध करने की सलाह सुग्रीव ने राम से दी, किन्तु राम ने शरणागत को अवध्य बता कर इसे अभयदान दिया
[वा. रा. यु. १८.२७] ; राम दशरथि देखिये । अनंतर विभीषण ने रावण की सेना एवं युद्धव्यवस्था की पूरी जानकारी राम को बता दी, एवं युद्ध में राम की सहायता करने की प्रतिज्ञा भी की। तब राम ने विभीषण को लंकानगरी का राजा उद्घोषित कर, इसे राज्याभिषेक किया
[वा. रा. यु. १९.१९] ।
विभीषण n. रामरावण युद्ध में राम का प्रमुख परामर्शदाता विभीषण ही था । इसीके ही परामर्श पर, राम ने समुद्र की शरण ली, एवं वालिपुत्र अंगद को दूत के नाते रावण के पास भेज दिया। रामसेना का निरीक्षण करने आये हुए शुक, सारण, शार्दूल आदि रावण के गुप्तचरों को पहचान कर पकड़वाने का कार्य भी इसीने ही किया था । रावणसेना का समाचार लाने के लिए इसने अपने मंत्रिगण भेज दिये थे । कुंभकर्ण एवं प्रहस्त का परिचय इसीने ही राम को कराया था । मायासीता वे वध के प्रसंग में भी, रावण की माया के रहस्य का उद्घाटन भी इसने ही राम के पास किया था । इंद्रजित् एवं रावण के द्वारा किये जानेवाले ‘आसुरी यज्ञ’ का विध्वंस करने की सलाह भी इसने ही राम को दी थी ।
विभीषण n. रामरावण युद्ध में विभीषण ने स्वयं भाग लिया था, एवं प्रहस्त, धूम्राक्ष आदि राक्षसों का वध किया था
[वा. रा. यु. ४३] ;
[म. व. २७०.४] । मायावी युद्ध में प्रवीण होने के कारण, इसने इंद्रजित से युद्ध करते समय काफ़ी पराक्रम दर्शाया था, एवं उसके सेना में से पर्वण, पूतन, जंभ, खर, क्रोधवल, हरि, प्रसज्ञ, आसज, प्रवस आदि क्षुद्र राक्षसों का वध किया था
[वा. रा. यु. ८९.९०३] ;
[म. व. २६९.२-३] । इंद्रजित के बहुत सारे सैनिक स्वयं अदृश्य रह कर युद्ध करते थे । रामसेना में से केवल विभीषण ही उन अदृश्य सैनिकों को देखने में समर्थ था । अंत में, इसने कुबेर से ऎसा दैवी जल प्राप्त किया, कि जो आँखों में लगाने से अदृश्य प्राणी दृष्टिगोचर हो सके। इसने उस जल से प्रथम सुग्रीव एवं रामलक्ष्मण, तथा अनंतर रामसेना के प्रमुख वानरों के आँखे धोयीं, जिस कारण वे सारे इंद्रजित् की अदृश्य सेना से युद्ध करने में सफल हो गयें
[म. व. २७३.९-११] । युद्ध के अंतिम कालखंड में, इसने लक्ष्मण से युद्ध करनेवाले रावण के रथ के सारे अश्र्व मार डाले
[वा.रा.यु. १००] । इस प्रकार राम को समय-समय पर उचित सलाह एवं सहायता दे कर, इसने उसे युद्ध में विजय पाने के लिए मदद की।
विभीषण n. रावणवध के तश्र्चात्, इसने रावण के दुष्टकर्मो का स्मरण कर, उसका दाहकर्म करना अस्वीकार कर दिया। किन्तु राम ने इसे समझाया, ‘मृत्यु के पश्र्चात् मनुष्यों के वैर समाप्त होते है । इसी कारण उनमा स्मरण रखना उचित नही है (मरणान्तानि वैराणि)’
[वा. रा. यु. १११.१००] । फिर राम की आज्ञा से, इसने रावण का उचित प्रकार से अन्त्यसंस्कार किया। रावण के वध पर विभीषण के द्वारा किये गये विलाप का एक सर्ग वाल्मीकिरामायण के कई संस्करणों में प्राप्त है
[वा. रा. उ. दाक्षिणात्य. १०९] । किन्तु वह सर्ग प्रक्षिप्त प्रतीत होता है ।
विभीषण n. अयोध्या पहुँचने के बाद, श्रीराम ने विभीषण को राज्याभिषेक करने के लिए लक्ष्मण को लंका भेज दिया था
[वा. रा. यु. ११२] । बाद में अपने परिवार के लोगों के साथ विभीषण अयोध्या गया, एवं वहाँ राम के राज्याभिषेकसमारोह में सभ्मिलित हुआ
[वा. रा. यु. १२१,१२८] । राज्याभिषेक के पश्र्चात् राम ने विभीषण को राजकर्तव्य का सुयोग्य उपदेश प्रदान किया, एवं बडे दुःख से इसे विदा किया।
विभीषण n. राम के द्वारा किये गये अश्र्वमेध-यज्ञ के समय विभीषण उपस्थित था । उस समय, ऋषियों की सेवा करने की जबाबदारी इस पर सौंपी गयी थी (पूजा चक्रे ऋषीणाम्)
[वा. रा. उ. ९१.२९] ।
विभीषण n. अपने देहत्याग के समय, राम ने विभीषण को आशीर्वाद दिया थाः-- यावच्चन्द्रश्र्च सूर्यश्र्च यावत्तिष्ठति मेदिनी । यावच्च मत्कथा लोके तावद्राज्यं तवस्त्विह ।।
[वा. रा. उ. १०८.२५] । (जिस समय तक आकाश में चंद्र एवं सूर्य रहेंगे, एवं पृथ्वी का अस्तित्व होगा, एवं जिस समय तक मेरी कथा से लोग परिचित रहेंगे, उस समय तक लंका में तुम्हारा राज्य चिरस्थायी रहेगा) ।
विभीषण n. शैलुष गंधर्व की कन्या सरमा विभीषण की पत्नी थी
[वा. रा. उ. १२.२४-२५] । पुराणों में इसकी पत्नी का नाम महामूर्ति दिया गया है ।
[पद्म. पा. ६७] । अशोकवन में बंदिस्त किये गये सीता के देखभाल की जबाबदारी सरमा पर सौंपी गयी थी, जो सीता के ‘प्रणयिनी सखी’ के नाते उसने निभायी थी
[वा. रा. यु. ३३.३] । सरमा से इसे कला नामक कन्या उत्पन्न हुई थी
[वा. रा. सुं. ३७] । अन्यत्र इसकी कन्या का नाम नंदा दिया गया है
[वा. रा. सुं. गौडीय. ३५.१२] ।
विभीषण II. n. लंकानगरी का एक विभीषणवंशीय राजा, जिसे सहदेव ‘पाण्डव’ ने अपने दक्षिण दिग्विजय के समय जीता था । यह रामकालीन विभीषण से काफ़ी उत्तरकालीन था, एवं इन दोनों में संभवतः ३०-३५ पीढियों का अन्तर था । इस कालविसंगति का स्पष्टीकरण पौराणिक साहित्य में राम-कालीन विभीषण को चिरंजीव मान कर किया गया है । किन्तु संभव यही है कि, यह विभीषण के वंश में ही उत्पन्न कोई अन्य राजा था । इसके राजप्रसाद एवं नगरी का सविस्तृत वर्णन महाभारत में प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, लंका का वैभव इसके राज्यकाल में चरमसीमा पर पहूँच गया था
[म. स. ३१] । सुग्रीव के दूत के नाते घटोत्कच इसके दरबार में आया था । उस समय युधिष्ठिर का परिचय सुन कर, इसने घटोत्कच का उचित आदर-सत्कार किया, एवं उसे युधिष्ठिर के पास पहुँचाने के लिए निम्नलिखित ‘उपयन’ वस्तुएँ प्रदान कीः- हाथी के पीठ पर बिछाने योग्य स्वर्ण से बने हुए आसन, बहुमूल्य आभूषण, सुंदर मूँगे, स्वर्ण एवं रत्न से बने हुए अनेकानेक कलश, जलपात्र, चौदह सुवर्णमय ताड़ वृक्ष, मणिजडित शिबिकाएँ, बहुमूल्य मुकुट, चंद्रमा के समीन उज्वल शतावर्त शंख, श्रेष्ठचंदन से बनी हुयी अनेकानेक वस्तुएँ आदि
[म. स. २८.५०-५३, परि. १.१५. पंक्ति २३५-२५३] ।
विभीषण III. n. एक यक्ष
[म. स. १०.१३] ।