वृत्र n. एक अंतरिक्ष दैत्य, जो इंद्र के प्रमुख शत्रु था । यास्क ने इसे ‘मेघ दैत्य’ माना है, जो आकाशस्थ जल का अवरोध करता है । प्रभंजनो के स्वामी इंद्र ने अपने व्रज (विद्युत्) से इस असुर का विच्छेद किया, एवं पृथ्वी पर जल वर्षा की। इसीका वध करने के लिए इंद्र ने जन्म लिया था, जिस कारण उसे ऋग्वेद में ‘वृत्रहन्’ उपाधि दी गयी है
[ऋ. ८.७८] । वृत्र के साथ इंद्र ने किये सघर्ष को ऋग्वेद में ‘वृत्रहत्त्या’ एवं ‘वृत्रतूर्य’ कहा गया है ।
वृत्र n. वृत्र की माता का नाम दानु था, जो शब्द ऋग्वेद में जलधारा के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है
[ऋ. १.३२] । इसी शब्द का पुल्लिंगी रूप ‘दानव’ एक मातृक नाम के नाते वृत्र अथवा सर्प के लिए, और्णवाम नामक दैत्य के लिए, एवं इंद्रद्वारा वधित सात दैत्यों के लिए प्रयुक्त किया गया है
[ऋ. २.११, १२, १०.१२०.६] ।
वृत्र n. वृत्र का रूप सर्पवत् माना गया है, अतः इसके हाथ एवं पैर नहीं है
[ऋ. ३.३०.८] । किंतु इसके सर का एवं जबड़ों का निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है
[ऋ. १.५२.१०, ८.६, ७३.२] । सर्प की भाँति यह फूँफकारता है
[ऋ. ८.८५] ; एवं गर्जन्, विद्युत् एवं झंझावत इसके अधीन है
[ऋ. १.८०] ।
वृत्र n. वृत्र का एक गुप्त (निणय) निवास्थान था, जो एक शिखर (सानु) पर स्थित था
[ऋ. १.३२,८०] । इसी निवासस्थान में इंद्र ने जलधाराएँ छोड़ कर वृत्र का वध किया था, एवं बहुत उँचाई से इसे नीचे गिराया था
[ऋ. ८.३] । इसके निन्यानब्बे दुर्ग थे, जो इन्द्र ने इसकी मृत्यु के समय ध्वस्त किये थे
[ऋ. ७.१९,१०.८९] ।
वृत्र n. वृत्र के निम्नलिखित पराक्रमों का निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त हैः-- १. जलधाराओं को रोकना
[ऋ. २.१५.६] ; २. गायों का हरण करना
[ऋ. २.१९.३] ; ३. सूर्य को ढँकना
[ऋ. २.१९.३] ; ४. सूर्योदय (उषस्) को रोकना
[ऋ. ४.१९.८] । ऋग्वेद में अन्यत्र वृत्र के द्वारा मेघो को अपने उदर में छिपाने का निर्देश भी प्राप्त है
[ऋ. १.५७] । शंबर, बल, अहि आदि दानवों के लिए भी ऋग्वेद में यही पराक्रम वर्णित है ।
वृत्र n. इसका वध करने के लिए देवों ने इंद्र का वध किया
[ऋ. ३.४९.१, ४.१९.१] । इंद्र एवं वृत्र का युद्ध त्रिककुद पर्वत पर हुआ। इंद्र ने इसका वध किया, एवं इसके द्वारा बद्ध किये गये मेघों को मुक्त कर (अपवृ) उसी जल से इसे डुबो दिया वृत्रे अवृणोत;
[ऋ. ३.४३] । इसकी मृत्यु की वार्ता वायु के द्वारा सर्व विश्र्व को ज्ञात हुई। वृत्र-इंद्रयुद्ध की तिथिनिर्ण लो. तिलकजी के द्वारा किया गया है, जो उनके द्वारा १० अक्तुबर के दिन निश्र्चित किया गया है
[लो. तिलक, आर्यों का मूलस्थान पृ. २०८] ।
वृत्र n. ‘वृत्र’ शब्द ‘वृ’ (आवृत्त करना, ढँकना) धातु से व्युत्पन्न हुआ माना जाता है । इसने जलों को आवृत कर दिया था (अप वारिवांसम्) । इस कारण इसे ‘वृत्र’ नाम प्राप्त हुआ था
[ऋ. २.१४] । यास्क के अनुसार, इसे ‘मेघ दैत्य’ कहा गया है, एवंव त्वष्टृ असुर के पुत्र (त्वाष्ट्र असुर) मानने के ऐतिहासिक परंपरा को अयोग्य बताया गया है
[नि. २.१६] ।
वृत्र n. ऋग्वेद में ‘वृत्र’ शब्द का बहुवचनी रूप ‘वृत्राणि’ अनेक स्थान पर प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, एक सामूहिक नाम के नाते वृत्र के अतिरिक्त कई अन्य असुरों के लिए भी यह शब्द प्रयुक्त किया जाता था । ऐसे कई विभिन्न असुरो के नामों का ऋग्वेद में उल्लेख प्राप्त है
[ऋ. ७.१९] । दधीचि ऋषि के अस्थियों से बने हुए अस्त्रों की सहायता से, इंद्र ने न्यानव्वे वृत्रों का वध किया था
[ऋ. १.८४] । ऋग्वेद में जहाँ सामान्य विरोधक अथवा शत्रु को ‘दास’ अथवा ‘दस्यु’ कहा गया है, वहॉं दैत्य शत्रुओं को ‘वृत्र’ कहा गया है । इस प्रकार सामूहिक रूप में ‘वृत्र’ शब्द ‘दानवी अवरोधक’ अर्थ में ही प्रयुक्त किया गया प्रतीत होता है । अवेस्ता में ‘वेरथ्र’ शब्द ‘विजय’ अर्थ में प्रयुक्त किया गया है, जो अवरोध का ही विकसित रूप प्रतीत होता है ।
वृत्र n. इस ग्रंथ में वृत्र को त्वष्टृ का पृत्र कहा गया है, एवं इसकी जन्मकथा निम्नप्रकार दी गयी है । एक बार त्वष्टृ ने यज्ञ किया, जहाँ यज्ञ में सिद्ध किया गया सों उसने समस्त देवताओं को दिया, किन्तु अपने पुत्र विश्र्वरूप का वध करनेवाले इंद्र को नही दिया। इंद्र के हिस्से का सों उसने अग्नि में डाल दिया, जिससे आगे चल कर वृत्र का जन्म हुआ। बड़ा होने पर, इसने समस्त सृष्टि को त्रस्त करना प्रारंभ किया। इसके भय से विष्णु ने स्वयं के तीन भाग किये, एवं उन्हें तीनों लोकों में छिपा दिये। इंद्र ने विष्णु की सहायता से इसे ज्यादा बढ़ने न दिया, एवं आने पेट में समा लिया। किन्तु वहाँ भी इसने भूख का रूप धारण कर सारी सृष्टि को त्रस्त करना पुनः प्रारंभ किया
[तै. सं. २.४.१२] । इंद्र के द्वारा इसके वध के संबंधी एक कथा तैत्तिरीय संहिता में प्राप्त है । वृत्र के द्वारा विदेह देश की गायों का निर्माण हुआ, जिनमें कृष्ण ग्रीवायुक्त एक बैल भी था । इंद्र ने उस बैल का अग्नि में हवन किया, जिससे प्रसन्न हो कर अग्नि ने इंद्र को वृत्र का वध करने के लिए समर्थ किया
[तै. सं. २.१.४] ।
वृत्र n. इन ग्रंथों में वृत्र एवं इंद्र को क्रमशः चंद्र एवं सूर्य की उपमा दी गई है । जिस प्रकार अमावस्या के दिन सूर्य चंद्र को निगल लेता है, उसी प्रकार इंद्र ने वृत्र को डुबो देने का निर्देश वहाँ प्राप्त है । एक बार असुरों ने वेद एवं वेदविद्या हस्तगत की, जिस कारण सारा देव पक्ष हतबल हुआ। आगे चल कर, इंद्र ने विश्र्वकर्मनपुत्र वृत्र नामक ब्राह्मण से तीनों वेद (ऋ.क्, यजुः। साम) जीत लिये, एवं वृत्र का वध किया
[शं. ब्रा. १.१.३.४,३.१.३.१२, ४.१.३.१, ५.५.५.१] ।
वृत्र n. महाभारत में इसे कृतयुग का एक असुर कहा गया है, एवं इसके पिता एवं माता के नाम क्रमशः कश्यप एवं दिति (दनायु) दिये गये है । दिति केबल नामक पुत्र का इंद्र ने वध किया, जिस कारण क्रुद्ध हो कर दिति ने इन्द्र का वध करनेवाला पुत्र निर्माण करने की प्रार्थना कश्यप से की। इस पर कश्यप ने अपनी जटा झटक कर अग्नि में हवन की। इसी अग्नी से अजस्त्रकाय वृत्र का निर्माण हुआ
[पद्म. उ. ९] । भागवत में इसे त्वष्टृ का पुत्र कहा गया है, जो उसने अपने पुत्र विश्र्वरूप का वध करनेवाले इंद्र का बदला लेने के लिए निर्माण किया था
[भा. ६.९-१२] । ब्रह्मांड में इसकी माता का नाम अनायुषा दिया गया है
[ब्रह्मांड. ३.६.३५] ।
वृत्र n. अपने पिता की आज्ञा से इसने ब्रह्मा की अत्यंत कठोर तपस्या की, जिस कारण ब्रह्मा ने प्रसन्न हो कर इसे वर प्रदान किया, ‘आज से तुम अमर होगे, तथा लोह एवं काष्ठ, आर्द्र एवं शुष्क आदि कौनसे भी अस्त्र से दिन में या रात में तुम्हें मृत्यु न आयेगी’
[दे. भा. ६.१.७] । आगे चल कर इसी वर के प्रभाव से, इसने इंद्र को परास्त कर इंद्रपद प्राप्त किया
[वा. रा. उ. ८४-८६] । भागवत में इसे ब्राह्मण एवं श्रीविष्णु का परमभक्त कहा गया है
[भा. ६.९] ;
[पद्म. भू. २५] । इस कारण इंद्रवृत्र युद्ध में श्रीविष्णु ने गुप्त रूप से ही इंद्र की सहायता की थी । यह ब्राह्मण होने के कारण, इसका वध करने से इंद्र को ब्रह्महत्त्या का दोष लग गया था ।
वृत्र n. इंद्र-वृत्र युद्ध की अनेकानेक कथाएँ पुराणों में प्राप्त है, जहाँ युद्धसामर्थ्य से नहीं बल्कि छल कपट से इंद्र के द्वारा इसका वध होने का निर्देश प्राप्त है । इंद्र ने रंभा अप्सरा के द्वारा इसे शराब पिलवायी, एवं शराब की उसी नशीली एवं व्रतहीन अवस्था में जब यह समुद्र किनारे सोया था, उसी समय इससे संधि कर, आधा इंद्रपद पुनः प्राप्त किया
[पद्म. भू. २५] ;
[वा. रा. उ. ८४-८६] ;
[स्कंद. १.१.१६] ।
वृत्र n. आगे चल कर जब यह असावधान अवस्था में था, तब इंद्र ने इस पर हमला किया, एवं दधीचि ऋषि की अस्थियों से बने हुए वज्र पर समुद्र का झाग लपेट कर उससे इसका वध किया
[दे. भा. ६.१.६] ;
[पद्म. भू. २४] ;
[भा. ६.९] ;
[म.व. १००] ; उ. १० । इंद्र ने इसका वध संध्यासमय किया, एवं इस प्रकार ब्रह्मा के द्वारा इसे प्राप्त हुए वर के शर्तों की पूर्ति करते हुए ही, इंद्र ने इसका वध किया। भागवत के अनुसार, वृत्रवध के समय इंद्र ने सर्वप्रथम इसका एक हाथ काट दिया। इतने में इंद्र का वज्र नीचे गिर गया। इसने इंद्र को अपना वज्र उठाने के लिए कहा, जब उसने इसका दूसरा हात काट दिया। पश्र्चात् यह इंद्र के उदर में प्रविष्ट हुआ, जहाँ से बाहर आने पर इंद्र ने इसका शिरच्छेद किया
[भा. ६.१२] । इंद्र-वृत्रयुद्ध में निम्नलिखित असुर इसके पक्ष में शामिल थेः-- अनर्वन्, अंबर, अयोमुख, उत्कल, ऋषभ, नमुचि, पुलोमत्, प्रहेति, विप्रचित्ति, वृषपर्वन्, शंकुशिरस्, शंबर, हयग्रीव, हेति एवं पाताल में रहनेवाले कालेय अथवा कालकेय राक्षस
[भा. ६.१०] ;
[स्कंद. १.१.१६] ;
[पद्म. पा. १९] ।
वृत्र n. पूर्वजन्म में यह चित्रकेतु नामक विष्णुभक्त राजा था
[भा. ६.१४] । मृत्यु के पूर्व इसने इंद्र को भागवतधर्म का उपदेश करना प्रदान किया था । सनत्कुमारों से इसे योगज्ञान की प्राप्ति हुई थी, जिस कारण इसे मृत्यु के पश्र्चात् सद्गति प्राप्त हुई
[म. शां. २८१] । महाभारत में उशनस् ऋषि के साथ इसका किया ‘वृत्र-उशनस् संवाद’ प्राप्त है, जहॉं ज्ञान से मोक्षप्राप्ति किस तरह हो सकती है, इसकी चर्चा प्राप्त है । उसी ग्रंथ में ‘वृत्र-गीता’ का निर्देश भी मिलता है ।
वृत्र n. इसके पुत्र का नाम मधुर था
[वा. रा. उ. ८४.१०] । ब्रह्मांड में इसे अनायुषा का पुत्र कहा गया है, एवं इसका वंश विस्तृत रूप में दिया गया है । अनायुषा के कुल पाँच पुत्र थेः-- १. अररु; २. बल; ३. वृत्र; ४. विज्वर; ५. वृप। ये पाँच ही भाईयों को महेंद्रानुचर एवं ब्रह्मवेत्ता पुत्र उत्पन्न हुए, जो निम्न प्रकार थेः-- १. वृत्रपुत्र---बक आदि सहस्त्र पुत्र; २. बलपुत्र---निकुंभ एवं चक्रवर्मन्; ३.विज्वरपुत्र-कालक एवं खरं; ४. वृषपुत्र---श्राद्धाह, यज्ञह ब्रह्म एवं पशुह; ५. अररुपुत्र---धुंध, जो कुवलाश्र्व ऐक्ष्वाक के द्वारा मारा गया
[ब्रह्मांड. ३.६.३५-३७] ।
वृत्र II. n. एक असुर, जो हिरण्याक्ष का सेनापति था । इंद्र-हिरण्याक्ष युद्ध में, इंद्र ने इसकी शिखा पकड़ कर खङ्ग से इसका वध किया था
[पद्म. भू. ७३] ।