शंख n. एक पराक्रमी असुर, जो समुद्र का पुत्र होने के कारण, समुद्र में ही निवास करता था
[म. स. ९.१३] । अपने बल एवं पराक्रम से, इसने समस्त दवे एवं लोकपालों को सुवर्ण-पर्वत की गुफा में भगा दिया था ।
शंख n. आगे चर कर, देवपक्ष के देव वेदों के बल से पुनः सामर्थ्यशाली न हो जायें, इस हेतु से इसनें चारों वेदों को नष्ट करना चाहा । एक बार विष्णु जब गहरी निद्रा में सो रहे थे, तब इसने वेदों पर आक्रमण किया । इसके भय से चारों वेद भाग कर समुद्र में छिप गये। वेदों के लुप्त हो जाने से, पृथ्वी की सारी जनता संत्रस्त हुई। पश्चात् ब्रह्मा ने विष्णु के पास जा कर उन्हें जगाया, एवं शंख का वध करने की प्रार्थना की ।
शंख n. तदुपरांत विष्णु ने मत्स्य का रूप धारण कर समुद्र में प्रवेश किया, एवं कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन इसका वध किया । इसके वध के पश्चात्, विष्णु ने चारो वेदों को विमुक्त किया । इसी कारण कार्तिक माह, एवं विशेषतः कार्तिक शुक्ल एकादशी विष्णुभक्तों में अत्यंत पवित्र मानी जाती है
[पद्म. सृ. १] ;
[पद्म. उ. ९०-९१] । स्कंद के अनुसार, इसका वध कार्तिक एकादशी के दिन नहीं, बल्कि आषाढ शुक्ल एकादशी के दिन हुआ था
[स्कंद. ४.२.३३] ।
शंख (कौष्य) n. एक आचार्य, जो यज्ञकर्म से संबंधित अनेकानेक नये मतों का प्रवर्तक था । यह जात शाकायन्य नामक आचार्य का समकालीन था
[का. सं. २२.७] ।
शंख (ब्राभ्रव्य) n. एक आचार्य, जो राम क्रातुजातेय वैय्याघ्रपद्य नामक आचार्य का शिष्य था
[जै. उ. ब्रा. ३.४१.१, ४.१७.१] ।
शंख (यामायन) n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा
[ऋ. १०.१५] ।
शंख II. n. पाताल में रहनेवाला एक सहस्त्रशीर्ष नाग, जो कश्यप एवं कद्रू के पुत्रों में से एक था
[म. आ. ३१.८] ;
[भा. ५.२४.३१] । नारद ने इंद्रसारथि मातलि से इसका परिचय कराया था
[म. उ. १०१.१२] । बलराम के निर्वाण के समय, यह उनके स्वागतार्थ उपस्थित हुआ था
[म. मौ. ५.१४] ।
शंख III. n. उत्तम मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक ।
शंख IV. n. एक मत्स्यदेशीय महारथ राजकुमार
[म. उ. ५६९*] , जो विराट एवं सुरथा का पुत्र, तथा उत्तर एवं उत्तरा का भाई था । भारतीय युद्ध में, यह द्रोण के द्वारा मारा गया
[म. भी. ७८.२१] ।
शंख IX. n. एक केकयराजकुमार, जो भारतीय युद्ध में पांडवों के पक्ष में शामिल था, एवं जिसकी श्रेणी ‘रथी’ थी
[म. उ. १६८.१४] ।
शंख V. n. एक यक्ष, जो मणिभद्र एवं पुण्यजनी के पुत्रों में से एक था
[ब्रह्मांड. ३.७.१२३] ।
शंख VI. n. एक ऋषि, जो जैगीषव्य एवं एकपर्णा (एकपाटाला) का पुत्र, एवं लिखित ऋषि का भाई था
[ब्रह्मांड. २.३०.४०] ;
[वायु ७२.१९] ।
शंख VI. n. इसकी एवं इसके भाई लिखित की कथा महाभारत में विस्तृत रूप में प्राप्त है, जो व्यास के द्वारा युधिष्ठिर को कथन की गयी थी । भारतीय युद्ध के पश्चात्, युधिष्ठिर विरागी बन कर राज्यत्याग करने के लिए प्रवृत्त हुआ। उस समय, व्यास ने उसे राजधर्म का उपदेश करते समय कहा--दण्ड एवं ही राजेंद्र क्षत्रधर्मों न मुण्डनम्। (क्षत्रिय का प्रथम कर्तव्य राज्य करना है, संन्यास लेना नहीं है) । अपने उपर्युक्त कथन के पुष्ट्यर्थ, व्यास ने शंख एवं लिखित नामक ऋषियों में संघर्ष होने पर, सुद्युम्न राजा ने किस प्रकार व्यक्तिनिरपेक्ष न्याय दिया, इस संबंध में एक प्राचीन कथा का निवेदन किया
[म. शां. २४] ; लिखित देखिये ।
शंख VI. n. इसके नाम पर निम्नलिखित तीन स्मृतिग्रंथ उपलब्ध हैः-- १. लघुशंखस्मृति, जिसमें ७१ श्र्लोक हैं, एवं जो आनंदाश्रम, पूना के ‘स्मृतिसमुच्चय’ में प्रकाशित की गयी है; २. बृहत्शंखस्मृति, जिसमें अठारह अध्याय हैं, एवं जो वेंकटेश्र्वर प्रेस, बंबई के द्वारा प्रकाशित हो चुकी है; ३. शंख-लिखितस्मृति, जो इसने अपने भाई लिखित के सहयोग से लिखी थी । इस स्मृति में कुल ३४ श्र्लोक हैं, एवं उसमें परान्नभोजन, अतिथिपूजन आदि विषयों की चर्चा की गयी है । आनंदाश्रम, पूना के द्वारा वह प्रकाशित की गयी है ।
शंख VII. n. (सो. पूरू.) एक राजा, जो जनमेजय परिक्षित राजा एवं वपुष्टमा का पुत्र, एवं शतानीक राजा का भाई था
[म. आ. ९०.९४] ।
शंख VIII. n. एक ऋषि, जिसे ब्रह्मदत्त राजा ने अपना सारा धन दान के रूप में प्रदान किया था
[म. शां. २२६.२९] ;
[म. अनु. १३७.१७] ।
शंख X. n. ०. कुबेरसभा का एक यक्ष
[म. स. ९.१३] ।
शंख XI. n. १. एक जगन्नाथभक्त राजा, जो हैहयवंशीय भूत राजा का पुत्र था । जगन्नाथ ने दर्शन दे कर, इसे मुक्ति प्रदान की
[स्कंद. २.१.३८] । हैहय राजाओं के वंशावलि में इसका नाम अप्राप्य है ।
शंख XII. n. २. एक राजा, जिसे सत्पुरुषों के पदधूलि से मुक्ति प्राप्त हुई
[पद्म. क्रि. २१] ।
शंख XIII. n. ३. एक ब्राह्मण, जिसने स्वयं की चोरी करने आये व्याध को ‘वैशाख-माहात्म्य’ सुना कर उसका उद्धार किया
[स्कंद. २.७.१७-३१] ।