शमीक n. अंगिरस् कुलोत्पन्न एक ऋषि, जिसकी पत्नी का नाम गौ, एवं पुत्र का नाम शृंगी था । यह आजन्म मौनव्रत का पालन करता था । यह गौओं के रहने के स्थान में रहता था, एवं गौओं का दूध पीते समय बछडों के मुख से जो फेन निकलता था, उसीको खा-पी कर तपस्या करता था ।
शमीक n. एक बार परिक्षित् राजा मृगया करता हुआ इसके आश्रम में आ पहुँचा। किन्तु इसका मौनव्रत होने के कारण, इसने उससे कोई भी भाषण नहीं किया । यह इसका औद्धत्य समझ कर, परिक्षित् इससे अत्यंत क्रुद्ध हुआ, एवं उसने इसकी अवहेलना करने के हेतु, इसके गले में एक मृतसर्प डाल दिया । कृश नामक इसके शिष्य ने यह घटना इसके पुत्र शृंगी को बतायी। अपने पिता के अपमान की यह कहानी सुन कर, शृंगी अत्यंत क्रुद्ध हुआ, एवं उसने शापवाणी कह दी, ‘सात दिन के अंदर नागराज तक्षक के दंश से परिक्षित् राजा की मृत्यु हो जायेगी’।
शमीक n. अपने पुत्र के द्वारा, परिक्षित् राजा को दिये गये शाप का वृत्तांत ज्ञात होते ही, इसने अपने पुत्र की अत्यंत कटु आलोचना की। पश्चात् अपने गौरमुख नामक शिष्य के द्वारा परिक्षित् राजा को शृंगी के इस शाप का समाचार भेजा, एवं उसे सावधान रहने के लिए कहा। किन्तु अंत में यह चेतावनी विफल हो कर, तक्षकदंश से परिक्षित् राजा की मृत्यु हो ही गयी
[म. आ. ३६.३८] ;
[भा. १.१८] ।
शमीक n. भारतीय युद्ध के समय गरुड़वंश में उत्पन्न पिंगाक्ष, विबोध, सुपुत्र, एवं सुमुख नामक पक्षी सुप्रतीक नामक हाथी के घंटा के नीचे छिप कर बच गये। आगे चल कर इसने उन्हें अपने आश्रम में ला कर, एवं उनका धीरज बँधा कर, उन्हें सुरक्षित स्थल पर पहुँचाया
[मार्क. २.४४, ३.८६] ।
शमीक II. n. (सो. क्रोष्टु.) एक राजा, जो वायु एवं विष्णु के अनुसार शूर राजा का पुत्र था । विष्णु, भागवत एवं मत्स्य में, इसे ‘सत्यप्रिय’ कहा गया है । इसकी माता का नाम मारिषा, एवं पत्नी का नाम सुदामिनी था, जिससे इसे प्रतिक्षत्र नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था
[वायु. ९६.१३७] ;
[विष्णु. ४.१४.२३] । ब्रह्मा के द्वारा पुष्कर क्षेत्र में किये गये यज्ञ में यह उपस्थित था
[पद्म. सृ. २३] ।