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सत्यकाम

   { satyakāma (satyakāma jābāla) }
Script: Devanagari

सत्यकाम     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
SATYAKĀMA (SATYAKĀMA JĀBĀLA)   A noble hermit. There is a story as given below, in the [Chāndogyopaniṣad] about the greatness of this hermit. As his father died in his boyhood, Satyakāma was brought up by his mother Jābālī. Whan it was time to begin education, the boy told his mother, “Mother, I would like to be educated under a teacher, in the Vedas. But I don's know what clan I belong to. What answer shall I give, when the teacher asks me about my clan?” His mother Jābālī replied. “I also do not know much about the clan of your father who married me when I was a girl. From that day onwards I was engaged in house-keeping. I did not ask your father about the clan. In my younger days I gave birth to you. Shortly after that your father died. Tell your teacher that you are Satyakāma the son of Jābālī.” Having heard this Satyakāma went in search of a teacher. At last he reached the hermitage of the sage Gautama and told him every thing. The hermit was attracted by his truthfulness and behaviour. Believing that Satyakāma was a Brahmin boy, Gautama accepted him as a disciple. The hermit entrusted the boy with four hundred lean cows to look after. The boy accepted the work, and said to the hermit. “When this becomes a group of thousand fat cows, I will bring them back.” He lived in the forest looking after the cows. The Devas sympathised with him. Vāyu (wind), the Sun, Agni (fire) and Prāṇa together gave him divine knowledge and wisdom. After this Satyakāma returned to the hermit Gautama with thousand fat cows. Seeing the boy whose face shone with the light of God, the hermit was amazed. “Who gave you divine knowledge?” asked the hermit. Satyakāma told the hermit all that took place. Fully satisfied with the boy, Gautama imparted to him knowledge about the universal Soul (Paramātmā) and Satyakāma became a noble hermit. Satyakāma got several disciples of whom Upakosala was prominent. He approached Satyakāma as a student. For twelve years he served his teacher and kept up the fire in the firepit for burnt offering, without being extinguished throughout the twelve years, and worshipped the fire god. Yet the teacher did not impart knowledge to him. The teacher's wife recommended to her husband that Upakosala should be given learning. But the teacher was silent. Upakosala took a vow and fast before the burnt-offering fire pit. Agni Deva felt pity for him and informed him that God is all-pervading and that his teacher would show him the way to God. When he came to the teacher, his face was seen shining. Satyakāma asked Upakosala for the reason. Upakosala told the teacher what the fire god had told him. Immediately Satyakāma taught his disciple the path of yoga (union) by knowledge of the Sāṅkhyas.

सत्यकाम     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  एक ऋषि   Ex. सत्यकाम का वर्णन पुराणों में मिलता है ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
सत्यकाम ऋषि
Wordnet:
benসত্যকাম
gujસત્યકામ
kasستیکام , ستیکام ریش
kokसत्यकाम
marसत्यकाम
oriସତ୍ୟକାମ ଋଷି
panਸੱਤਯਕਾਮ
sanसत्यकामः
urdستیہ کام , ستیہ کام رشی

सत्यकाम     

सत्यकाम (जावाल) n.  एक सुविख्यात तत्त्वज्ञ, जो जबाला नामक स्त्री का पुत्र था । मन को ही परब्रह्म माननेवाला यह आचार्य याज्ञवल्क्य वाजसनेय ऋषि का समकालीन था [वृ. उ. ४.१.६. काण्व.]
सत्यकाम (जावाल) n.  जबाला नामक दासी से किसी अज्ञात पुरुष से यह उत्पन्न हुआ था । इसके जन्म से संबंधित एक सविस्तृत कथा छांदोग्य उपनिषद में प्राप्त है, जहाँ उच्च कुल में जन्म होने की अपेक्षा श्रद्धा एवं तप अधिक श्रेष्ठ है, यह तत्त्व प्रतिपादित किया गया है । यह अपनी माता से उस पुरुष के द्वारा उत्पन्न हुआ, जिसका नाम उसे ज्ञात न था । लज्जा के कारण, उसने कभी भी उसका नाम न पूछा था । इसके जन्म के पश्चात् थोडे ही दिनों में इसका पिता मृत हो गया, जिस कारण इसे अपने पिता का नाम सदैव अज्ञात ही रहा। आगे चल कर यह गौतम हरिद्रुमत नामक आचार्य के पास शिक्षा पाने के लिए गया । वहाँ गौतम ऋषि के द्वारा इसका गोत्र आदि पूछे जाने पर इसने उसे अपनी सारी हकीकत कह सुनायी, एवं कहा, ‘मेरा जन्म ऐसे पिता से हुआ है, जिसका नाम मुझसे अज्ञात है । मेरी माता का जबाला नाम ही केवल मुझे ज्ञात है’। इसके सत्यभाषण के कारण गौतम ऋषि अत्यधिक प्रसन्न हुए, एवं उसने इसका उपनयन कर इसे ब्रह्मचर्यव्रत की दीक्षा दी।
सत्यकाम (जावाल) n.  तदुपरान्त यह गौतम ऋषि के आश्रम में ही रह कर अध्ययन करने लगा। इसी कार्य में यह अनेक वर्षों तक अरण्य में रहा। छांदोग्य-उपनिषद में प्राप्त रूपकात्मक निर्देश से प्रतीत होता है कि, यह चारसौं गायें ले कर अरण्य में गया, एवं उनकी संख्या एक सहस्त्र होने के काल तक यह अरण्य में रहा।
सत्यकाम (जावाल) n.  इसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति किस प्रकार हुई, इसकी सविस्तृत जानकारी छांदोग्य-उपनिषद में प्राप्त है । वायु देवता के अंश से उत्पन्न हुए एक वृषभ ने इसे ब्रह्मज्ञान का चौथा हिस्सा सिखाया । आगे चल कर गौतम ऋषि के आश्रम में स्थित अग्नि ने इसे ब्रह्मज्ञान का अन्या चौथा हिस्या सिखाया ब्रह्मज्ञान के बाकी दो हिस्से इसे हंस का रूप धारण करनेवाले आदित्य ने, एवं मद्गु नामक जलचर प्राणि का रूप धारण करनेवाले प्राण ने प्रदान किये। इस प्रकार संपूर्ण ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर यह गौतम ऋषि के आश्रम में लौंट आया । तत्पश्चात् इसका मुखावलोकन कर, गौतम ऋषि ने इससे कहा, ‘संपूर्ण ब्रह्मज्ञान तुझे हो चुका है । जो ज्ञान तुझे हुआ है, उससे बढ़ कर अधिक ज्ञान इस संसार में कहीं भी प्राप्त होना असंभव है’ [छां. उ. ४.४-९]
सत्यकाम (जावाल) n.  आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए सुयोग्य गुरु के उपदेश की अत्यधिक आवश्यकता है, ऐसा इसका मत था । परमार्थ की साधना के लिए नैतिक सद्गुणों की अत्यधिक आवश्यकता रहती है । किन्तु इस सदाचरण के कारण परमार्थ ज्ञान ही केवल पूर्वतैयारी मात्र होती है, इस ज्ञान का उपदेश केवल सुयोग्य गुरु ही कर सकता है, ऐसा इसका अभिमत था [छां. उ. ४.१.९] । इसका यह अभिमत समस्त पौपनिषदिक वाङमय मे पुनः पुनः पाया जाता है । अंतिम सत्य की व्याख्या औपनिषदिक साहित्य में अनेक प्रकार से की गयी है । इस अंतिम तत्त्व का साक्षात्कार मानवी इंदियों के द्वारा नहीं, बल्कि मानवी मन से होता है, ऐसे कथन करनेवाले आचार्यों में सत्यकाम जाबाल प्रमुख माना जाता है । इसके इसी अभिमत का विकास आगे चल कर याज्ञवल्क्य वाजसनेय ने किया, जिसने संसार के अंतिम तत्त्व का साक्षात्कार केवल आत्मा के द्वारा हो सकता है, यह तत्त्व प्रस्थापित किया (याज्ञवल्क्य वाजसनेय देखिये) ।
सत्यकाम (जावाल) n.  सृष्टि का मूल कारण सूर्य, चंद्र, विद्युत आदि पंचमहाभूत न हो कर, आँखों से प्रतीत होनेवाले आद्य पुरुष के दर्शन से ही सृष्टि के मूल कारण का ज्ञान हो सकता है, ऐसा इसका अभिमत था । औपनिषदिक तत्त्वज्ञान की उत्क्रान्ति के इतिहास में पंचमहाभूतों को सृष्टि का आधार मानने की शुरू में प्रवृत्ति थी । इस प्रवृत्ति को हटा कर पंचेंद्रियों को सृष्टि का आद्य अधिष्ठान माननेवाले कई आचार्यों की परंपरा आगे चल कर उत्पन्न हुई, जिसमें सत्यकाम जाबाल प्रमुख था । इसी कल्पना का विकास आगे चल कर याज्ञवल्क्य वाजसनेय ने किया, जिसने सृष्टि के आद्य अधिष्ठान के रूप में मानवी आत्मा को दृढ रूप से प्रतिष्ठापित किया ।
सत्यकाम (जावाल) n.  सत्यकाम के इसी तत्त्वज्ञान का रूपकात्मक चित्रण करनेवाली एक कथा छांदोग्य उपनिषद में प्राप्त है । इसके उपकोसल नामक शिष्य ने बारह वर्षों तक इसके आश्रम में रह कर अध्ययन किया । आगे चल कर सृष्टि के अंतिम सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए उपकोसल अरण्य में गया । वहाँ उसके द्वारा उपासित ‘गार्हपत्य’, ‘अन्वाहार्य’ एवं ‘आहवनीय’ नामक तीन अग्नि मनुष्य रूप धारण कर उसके सम्मुख उपस्थित हुए, एवं उन्होनें सृष्टि का अंतिम तत्त्व क्रमशः सूर्य, चंद्र, एवं विद्युत् में रहने का ज्ञान इसे प्रदान किया । आगे चल कर उपकोसल ने अग्नि देवताओं के द्वारा प्राप्त हुए आत्मज्ञान की कहानी इसे कथन की। उस समय उसे प्राप्त हुए ज्ञान की विफलता बताते हुए इसने उसे कहा, ‘अग्नि देवताओं ने जो ज्ञान तुझे बताया है, वह अपूर्ण है । सृष्टि के अंतिम तत्त्व का दर्शन सूर्य, चंद्र एवं विद्युत् में नहीं, बल्कि मनुष्य के आँखों में दिखाई देनेवाले इस संसार की प्रतिबिंब में ही पाया जाता है । तत्त्वज्ञ जिसे अमृत, अभय, एवं तेजःपुंज आत्मा बताते हैं, वह इस प्रतिबिंब में ही स्थित है’। सत्यकाम के इस तत्त्वज्ञान में आधिभौतिक सृष्टि कनिष्ठ मान कर मानवी देहात्मा उससे अधिक श्रेष्ठ बताया गया है । इस प्रकार बाह्य सृष्टि को छोड़ कर मानवी शरीर की ओर तत्त्वज्ञों की विचारधारा इसने केंद्रित की, यही इसके तत्त्वज्ञान की श्रेष्ठता कही जा सकती है ।
सत्यकाम (जावाल) n.  शतपथ ब्राह्मण, बृहदारण्यक उपनिषद आदि ग्रंथों में इसके अभिमतों के उद्धरण अनेक बार पाये जाते हैं। इनमें से शतपथ ब्राह्मण में यज्ञहोम के संबंध में इसका अभिमत पैंग्य ऋषि के साथ उद्धृत किया गया है [श. ब्रा. १३.५.३.१] । राज्याभिषेक के समय पठन किये जानेवाले मंत्र का इसके द्वारा सूचित किया गया एक विभिन्न पाठ ऐतरेय ब्राह्मण में प्राप्त है [ऐ. ब्रा. ८.७] । मैत्रि उपनिषद में भी इसके नाम का निर्देश प्राप्त है [मै. उ. 6.5] । किन्तु अन्य उपनिषद ग्रंथों में निर्दिष्ट सत्यकाम से यह आचार्य अलग प्रतीत होता है ।
सत्यकाम (जावाल) II. n.  एक आचार्य, जो जानकि आयस्थूण नामक आचार्य का शिष्य था [बृ. उ. ६.३.१२ काण्व.]
सत्यकाम (शैब्य) n.  एक तत्त्वज्ञ आचार्य, जो आत्मज्ञान प्राप्त करने के हेतु पिप्पलाद के पास गये हुए पाँच आचार्यों में से एक था । प्रणव का ध्यान करने से आत्मज्ञान प्राप्त होता है, या नहीं, इस संबंध में इसने पिप्पलाद से प्रश्र्न पूछे थे [प्र. उ. १.१, ५.१]

सत्यकाम     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
noun  एक रुशी   Ex. सत्यकामाचें वर्णन पुराणांत मेळटा
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
सत्यकाम रुशी
Wordnet:
benসত্যকাম
gujસત્યકામ
hinसत्यकाम
kasستیکام , ستیکام ریش
marसत्यकाम
oriସତ୍ୟକାମ ଋଷି
panਸੱਤਯਕਾਮ
sanसत्यकामः
urdستیہ کام , ستیہ کام رشی

सत्यकाम     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  एक ऋषी   Ex. सत्यकामचे वर्णन पुराणांत आढळते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
सत्यकाम ऋषी
Wordnet:
benসত্যকাম
gujસત્યકામ
hinसत्यकाम
kasستیکام , ستیکام ریش
kokसत्यकाम
oriସତ୍ୟକାମ ଋଷି
panਸੱਤਯਕਾਮ
sanसत्यकामः
urdستیہ کام , ستیہ کام رشی

सत्यकाम     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
सत्य—काम  mfn. mfn. (सत्य॑-) truth-loving, lover of truth, [ChUp.]
ROOTS:
सत्य काम
सत्य—काम  m. m.N. of various men, [Br.] ; [Up.] &c.
ROOTS:
सत्य काम

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