सावर्णि n. सावर्णि नामक आठवें मन्वन्तर के अधिपति मनु का पैतृक नाम
[ऋ. १०.६२.११] । सवर्णा नामक स्त्री के वंशज होने के कारण उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा (मनु सावर्णि देखिये) । रौथ के अनुसार ‘सवर्णा’ सूर्यपत्नी सरण्यू का ही नामान्तर होगा । इस पैतृक नाम का ‘सावर्ण्य’ एवं ‘सांवरणि’ पाठ भी ऋग्वेद में प्राप्त है
[ऋ. १०.६२.९] । महाभारत में इस पैतृक नाम का ‘सौवर्ण’ नामान्तर प्राप्त है
[म. अनु. १८.४३] । पौराणिक साहित्य में भी ‘सावर्णि’ मनु राजा का मातृक नाम बताया गया है, एवं यह मातृक नाम सवर्णा का पुत्र होने के कारण इसे प्राप्त हुआ था ऐसा भी निर्देश वहाँ प्राप्त है
[विष्णु. ३.२.१३] ;
[ब्रह्म. ६.१९] । किन्तु अन्य पुराणों में इसकी माता का नाम सवर्णा नहीं, बल्कि ‘छाया’ अथवा ‘मृण्मयी’ दिया गया है
[भा. ६.६.४१] ;
[मार्क. ७५.३१] ;
[म. अनु. ५३.२५ कुं.] । इसके बडे भाई का नाम श्राद्धदेव था, जो सातवें मन्वन्तर का अधिपति मनु था । अपने ज्येष्ठ बन्धु के वर्ण के समान होने के कारण इसे सावर्णि उपाधि प्राप्त हुई, ऐसी भी चमत्कृतिपूर्ण कथा कई पुराणों में प्राप्त है, किन्तु वह कल्पनारम्य प्रतीत होती है । वायु में इसका सही नाम ‘श्रुतश्रवस्’ दिया गया है
[वायु. ८४.५१] । मनु सावर्णि राजा पूर्वजन्म में त्रैत्रवंशीय सुरथ नामक राजा था
[दे. भा. १०.१०] ;
[मार्क. ७८.३] ; सुरथ १३. देखिये ।
सावर्णि (सौमदत्ति) n. एक आचार्य, जो वायुं एवं ब्रह्मांड के अनुसार व्यास की पुराणशिष्यपरंपरा में से रोमहर्षण नामक आचार्य का शिष्य था
[वायु. ६१.५६] ।
सावर्णि II. n. सत्ययुग में उत्पन्न एक ऋषि, जिसने छः हजार वर्षों तक शिव की उपासना की थी । इस तपस्या के कारण शिव ने प्रसन्न हो कर इसे विख्यात ग्रंथकार होने का, एवं अजरामर होने का आशीर्वाद प्रदान किया था
[म. अनु. ४५.८७ कुं.] । पश्चात् यह इंद्रसभा का सदस्य भी बन गया था
[म. स. ७.९] ।
सावर्णि III. n. एक ग्रंथकर्ता ऋषि, जो कृतयुग में उत्पन्न हुआ था ।
सावर्णि IV. n. एक आचार्य, जिसका निर्देश उपकर्मागतर्पण में प्राप्त है ।