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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास आठवां - तत्त्वनिरूपणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास नववां- तनुचतुष्टयनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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प्रकृतिपुरुष का - ॥ समास दसवां - टोणपसिद्धलक्षणनाम ॥
यह ग्रंथ श्रवण करने का फल, मनुष्य के अंतरंग में आमूलाग्र परिवर्तन होता है, सहजगुण जाकर क्रिया पलट होता है ।
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दशक अठारहवां - बहुजिनसी
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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बहुजिनसी - ॥ समास पहला - बहुदेवस्थाननिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास दूसरा - सर्वज्ञसंगनिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास तीसरा - निस्पृहसिकवणनिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास चौथा - देहदुर्लभनिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास पांचवां - करंटेपरीक्षानिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास छठवां - उत्तमपुरुषनिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास सातवां - जनस्वभावनिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास आठवां - अंतरदेवनिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास नववां - निद्रानिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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बहुजिनसी - ॥ समास दसवां - श्रोताअवलक्षणनिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
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दशक उन्नीसवां - शिकवणनाम
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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शिकवणनाम - ॥ समास पहला - लेखनक्रियानिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास दूसरा - विवरणनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास तीसरा - करंटलक्षणनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास चौथा - सदेवलक्षणनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास पांचवां - देहमान्यनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास छठवां - बुद्धिवादनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास सातवां - यत्ननिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास आठवां - उपाधिलक्षणनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास नववां - राजकारणनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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शिकवणनाम - ॥ समास दसवां - विवेकलक्षणनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
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दशक बीसवां - पूर्णदशक
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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पूर्णदशक - ॥ समास पहला - पूर्णापूर्णनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास दूसरा - सृष्टित्रिविधलक्षणनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास तीसरा - सूक्ष्मनामाभिधानाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास चौथा - आत्मनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास पांचवां - चत्वारजिनसनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास छठवां - आत्मागुणनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास सातवां - आत्मनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास आठवां - देहक्षेत्रनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास नववां - सूक्ष्मनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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पूर्णदशक - ॥ समास दसवां - विमलब्रह्मनिरूपणनाम ॥
इस ग्रंथके पठनसे ‘‘उपासना का श्रेष्ठ आश्रय’ लाखों लोगों को प्राप्त हुआ है ।
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रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक
'ऐसी इसकी फलश्रुति' डॉ. श्री. नारायण विष्णु धर्माधिकारी कृत.
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श्रीरामदासस्वामींची आरती - ओंवाळू आरती सद्गुरु रामदा...
आरती श्रीरामदासस्वामींची.Prayer to Swami Ramdas.
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आरती रामदासाची - आरती रामदासा नित्यानंद वि...
निरंजनस्वामीकृत आरती
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रामदासांची आरती - आरती रामदासा । भक्त विरक्...
रामदासांची आरती
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आरती रामदास - साक्षात शंकराचा । अवतार म...
ऐतिहासिक पुराव्यांनुसार, समर्थ रामदासांनी रचलेल्या दासबोध या ग्रंथाचे लेखनिक कल्याणस्वामी होते.
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दासबोध
Dasbodh is a religious book written by Samarth Ramdas Swami, a Hindu saint during 17th century AD.
As per Hindu spirituality, one gets a human life after going through many incarnations of various other creatures, and possibly after hundreds of years. Dasbodh guides one to utilise the rare opportunity of the human life to live life meaningfully and pursue the purpose of human life. It explains multiple facets of this world and the variety of life in it. The scripture guides man to follow the path of devotion to God. The path prescribed by the author is called bhakti marg, meaning devotional way to reach God. It is claimed that, this path is the sure method to achieve true self-realisation.Dasbodh is a guide for meaningful living by human form of life.lt guides one to utilise this rare opportunity to employ his living between birth and death meaningfully and achieve the mission of human life. It explains multiple facets of this world and variety of creatures and guides the man to follow the path of Devotion to the God which is called as BHAKTI MARG . a sure method to achieve self realisation and realisation of True Self.It answers fundamental question WHO AM I / by demonstrating that HE IS I and advises the man to enjoy the bliss of Great Joy of experiencing the meeting of "human life ' and universal life. the life force "within" and "life force " every where. Shri Samarth Ramdas Swami, opened up the revelation , he got by self experience for benefit of Devotees! It gives full guidance to achieve salvation and liberation. It propogates the concept of Unity of Man and God and teaches the way for "incomplete man and to travel towards Complete whole Supreme Being and eventually merge with Supreme.
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दशक पहिला - स्तवनांचा
दशक पहिला - स्तवनांचा
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दशक दुसरा - मूर्खलक्षणांचा
दशक दुसरा - मूर्खलक्षणांचा
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दशक तिसरा - सगुणपरीक्षा
दशक तिसरा - सगुणपरीक्षा
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दशक चौथा - नवविधाभक्तीचा
दशक चौथा - नवविधाभक्तीचा
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दशक पांचवा - मंत्रांचा
दशक पांचवा - मंत्रांचा
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दशक सहावा - देवशोधनाचा
दशक सहावा - देवशोधनाचा
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दशक सातवा - चौदा ब्रह्मांचा
दशक सातवा - चौदा ब्रह्मांचा
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दशक आठवा - मायोद्भवाचा
दशक आठवा - मायोद्भवाचा
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दशक नववा - गुणरूपाचा
दशक नववा - गुणरूपाचा
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दशक दहावा - जगज्योतीचा
दशक दहावा - जगज्योतीचा
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दशक अकरावा - भीमदशक
दशक अकरावा - भीमदशक दशक अकरावा : भीमदशक समास पहिला : सिद्धांतनिरूपण
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दशक बारावा - विवेकवैराग्यनाम
दशक बारावा - विवेकवैराग्यनामदशक बारावा : विवेकवैराग्य समास पहिला : विमळ लक्षण
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दशक तेरावा - नामरूप
दशक तेरावा - नामरूपसमास पहिला : आत्मानात्मविवेक
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दशक चौदावा - अखंडध्याननाम
दशक चौदावा - अखंडध्याननाम
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दशक पंधरावा - आत्मदशक
दशक पंधरावा - आत्मदशक
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दशक सोळावा - सप्ततिन्वयाचा
दशक सोळावा - सप्ततिन्वयाचा
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दशक सतरावा - प्रकृतिपुरुषाचा
दशक सतरावा - प्रकृतिपुरुषाचा
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दशक अठरावा - बहुजिनसी
दशक अठरावा - बहुजिनसी
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दशक एकोणिसावा - शिकवणनाम
दशक एकोणिसावा - शिकवणनाम
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दशक विसावा - पूर्णदशक
दशक विसावा - पूर्णदशक
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गीत दासायन
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रस्तावना
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग २
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग ३
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग ४
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग ५
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग ६
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग ७
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग ८
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग ९
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १०
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग ११
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १२
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १३
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १४
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १५
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १६
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १७
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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गीत दासायन - प्रसंग १८
गीत दासायन हे गीत रामायण प्रमाणेच मधुर काव्य आहे.
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श्री रामदासस्वामीं विरचित - स्फुट अभंग
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - बाळक्रीडा
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - वैराग्यशतक
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - ज्ञानशतक
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - सगुणनिर्गुणसंवादशतक
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - १ ते ५
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - ६ ते १०
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - ११ ते १५
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - १६ ते २०
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - २१ ते २३
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - २४
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - २५
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - २६
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - २७
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - २८
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - २९
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - ३०
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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स्फुट अभंग - ३१
समर्थ रामदास स्वामींचा जन्म औरंगाबाद जिल्ह्यात सन १६०८, शके १५३० रोजी झाला.
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