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आश्वलायन n. एक शाखाप्रवर्तक आचार्य । आश्वलायन शाखा महाराष्ट्र में प्रसिद्ध है, परंतु इस शाखा के संहिता ब्राह्मणादि वैदिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं हैं । इसके प्रसिद्ध ग्रंथ निम्न लिहित है १. आश्ललायनगृह्यसूत्र, २. अश्वलायनश्रौतसूत्र, ३. आश्वलायन स्मृति । यह शौनक का शिष्य था । इसके सूत्र के अंत में ‘नमःशौनकाय’ कहकर शौनक को प्रणाम किया है । शौनक ने स्वतः १००० भागों का एक सूत्र रचा था । किन्तु आश्वलायन का सूत्र, संक्षेप में एवं अच्छा होने के कारण उसने अपना सूत्र फाड डाला । इसका श्रोतसूत्र बारह अध्यायों का तथा गृह्यसूत्र चार अध्यायों का है । श्रौतसूत्रों में हौत्रकर्म में मंत्र का विनियोग बताया है । दर्शपूर्णमास, अग्न्याधान, पुनराधान, आग्रयण, अनेक काम्येष्टि, चातुर्मास्य, पशु, सौत्रामणी, अग्निष्टोमादि सप्त सोम संस्था, सत्रोम के हौत्र तथा अंत में गोत्रप्रवरोम का संक्षिप्त संग्रह है । अग्निहोमसमान कर्म का भी कहीं कहीं उल्लेख किया है । गृहसूत्रों में निम्नलिखित विषय प्रमुख वर्णित है । गृह्यसूत्रों में निम्नलिखित विषय प्रमुख वर्णित है- संस्कार, नित्यकर्म, वास्तु, उत्सर्जन, उपाकर्म, युद्धार्थसज्जता तथा शूलगव ।गृह्यसूत्र में दिये गये तर्पण में ऋग्वेद के ऋषि मंडलानुसार लिये हैं, एवं जहां ऋषि लेना असंभव लगा वहां प्रगाथ क्षुद्रसूक्त, महासूक्त तथा मध्यम ऐसा उल्लेख किया है । उसी तरह व्यास के शिष्य सुमंतु वगैरह बता कर सूत्र, भाष्य, भारत एवं महाभारत का भी उल्लेख किया है । आचार्य तथा अपितर इस प्रकार है आश्वलायन II. n. अथर्ववेदीय कैवल्योपनिषद् परमेष्ठी ने आश्वलायन का बताया हैं । ऊपर उल्लेखित तथा यह संभवतः एक ही हो सकते हैं । आश्वलायन III. n. कौसल्य का पैतृक नाम । आश्वलायन IV. n. शिवावतार में सहिष्णु का शिष्य ।
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