ऋषि वंश II. - आंगिरस वंश n. अंगिरस ऋषि के द्वारा स्थापित किये गये इस वंश की जानकारी ब्रह्मांड, वायु एवं मत्स्य में प्राप्त है
[ब्रह्मांड. ३.१.१०१ - ११३] ;
[वायु. ६५.९७ - १०८] ;
[मत्स्य. १९६] । इनमे से पहले दो ग्रंथों में इस वंशों की जानकारी दी गयी है, एवं अंतिम ग्रंथ में इस वंश के ऋषियों की एवं गोत्रकारों की नामावलि दी गयी है । इस जानकारी के अनुसार, इस वंश की स्थापना अथर्वन अंगिरस् के द्वारा की गयी थी । इस वंश के निम्नलिखित ऋषियों का निर्देश प्राप्त हैं : - १. अयास्य आंगिरस, जो हरिश्चंद्र के द्वारा किये गये शुन : - शेप के बलिदान के यज्ञ में उपस्थित था; २. उशिज आंगिरस एवं उसक तीन पुत्र उचथ्य, बृहस्पति एवं संवर्त, जो वैशाली के करंधम, अविक्षित् एवं मरुत्त आविक्षित राजाओं के पुरोहित थे; ३. दीर्घतमस् एवं भारद्वाज, जो क्रमशः उचथ्य एवं बृहस्पति के पुत्र थे । इनमें से भरद्वाज ऋषि काशि के दिवोदास ( द्वितीय ) राजा का राजपुरोहित था । दीर्घतमस् ऋषि ने अंग देश में गौतम शाखा की स्थापना की थी; ४. वामदेव गौतम; ५. शरद्वत् गौतम, जो उत्तरपांचाल के दिवोदास राजा के अहल्या नामक बहन का पति था; ६. कक्षीवत् दैर्घतमस औशिज; ७. भरद्वाज, जो उत्तरपंचाल के पृषत् राजा का समकालीन था ।