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ऋषि वंश n. पुराणों में निर्दिष्ट ऋषियों के वंश, प्राचीन राजाओं की तरह, प्राचीन ऋषियों के वंश भी पौराणिक साहित्य में उपलब्ध हैं । किन्तु जहाँ राजवंश राजाओं के कुलों का अनुसरण कर तैयार किये गये हैं, वहाँ ऋषियों के वंश प्रायः सर्वत्र शिष्यपरंपरा के रुप में हैं, जो सही रुप में ‘ विद्यावंश ’ कहे जा सकते हैं । पौराणिक साहित्य में प्राप्त ऋषियों के वंश राजाओं के वंशों जैसे परिपूर्ण नहीं हैं, एवं उनमें काफी त्रुटियाँ भी हैं । इसी कारण ऐतिहासिक दृष्टि से ऋषियों के वंश इतने महत्त्वपूर्ण प्रतीत नहीं होते हैं, जितने राजाओं के वंश माने जाते हैं । ऋषि वंश n. जिस प्रकार प्राचीन सभी राजवंश वैवस्वत मनु से उत्पन्न माने जाते हैं, उसी प्रकार सभी प्राचीन ऋषि वंश आठ ब्रह्ममानसपुत्र ऋषियों से उत्पन्न माने जाते हैं । इन ब्रह्ममानसपुत्रों के नाम पौराणिक साहित्य में निम्नप्रकार दिये गये हैं : - १. भृगु; २. आंगिरस्; ३. मरीचि; ४. अत्रि; ५. वसिष्ठ; ६. पुलस्त्य; ७. पुलह; ८. क्रतु । इन आठ ब्रह्ममानसपुत्रों में से पुलस्त्य, पुलह एवं क्रतु की संतान मानवेतर जाति हुई, एवं उनसे कोई भी ब्राह्मण वंश उत्पन्न नहीं हुआ । बाकी बचे हुए पाँच ब्रह्ममानस पुत्रों में से अंगिरस्, वसिष्ठ एवं भृगु इन तीन ऋषियों के द्वारा ही प्राचीन ऋषिवंशों ( मूलगोत्र ) का निर्माण हुआ । पुराणों में प्राप्त चार मूल गोत्रकार ऋषियों में अत्रि एवं कश्यप ऋषियों का नाम अप्राप्य है, जिससे प्रतीत होता है कि, अत्रि एवं कश्यप कुलोत्पन्न ब्राह्मण अन्य मूलगोत्रकार ऋषियों से काफी उत्तरकालीन थे । उपर्युक्त पाँच प्रमुख ब्राह्मण वंशों की जानकारी नीचे दी गयी है : -
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