जह्रु n. (सो.आमा.) भागवत के मत में होत्रकपुत्र, एवं विष्णु तथा वायु के मत में सुहोत्रपुत्र । जह्रु तथा वृचीवत् में विरोध था । विश्वामित्र जाह्रव ने वृचीवतों को परास्त किया । राष्ट्र का स्वामित्व विश्वामित्र जाह्रव ने प्राप्त किया
[तां.ब्रा.२१.१२.२] । विश्वामित्र को सौ पुत्र थे । फिर भी विश्वामित्र ने शुनःशेप को अपना पुत्र माना । शुनःशेप का देवरात नाम रख दिया । पहले पचास पुत्रों ने देवरात को ज्येष्ठ मानना अमान्य किया । दूसरे पचास पुत्रों का मुखिया मधुच्छंदस् था । उन्होंने देवरात का ज्येष्ठत्व मान लिया । विश्वामित्र ने देवरात को जह्रु तथा गाथिन् का आधिपत्य दिया । यज्ञ, वीद, तथा धन का उसे अधिकारी बनाया
[ऐ. ब्रा. ७.१८] । इससे पता चलता है कि, शुनःशेप का कुलनाम जह्रु था, तथा विश्वामित्र का कुलनाम गाथिन् वा गाधि था । दोनो कुलों का उत्तराधिकारी शुनःशेप (देवरात) था । अत एव, उसको व्द्यामुष्यायण कहते है । जह्रु शब्द से जह्रावी शब्द हुआ । जह्रावी शब्द ऋग्वेद में दो बार आया है । ‘जह्रु की प्रजा,’ यो उस शब्द का अर्थ है
[ऋ.१.११६.१९,३.५८.६] । अमावसुवंश के जह्रु तथा पूरुवंश के जह्रु दोनों बिलकूल भिन्न थे । नामसाम्य से, कई पुराणो में अमावसुवंश के विश्वामित्रादि लोक, पूरुवंश के जह्रु के वंश में दिये गये हैं । वसुतः विश्वामित्रादि लोग अमावसुवंश में उत्पन्न हुए है । जह्रुवंश से उनका कोई संबंध नहीं है (भरत एवं विश्वामित्र देखिये) ।
जह्रु II. n. (सो. पूरु.) अजमीढपुत्र । इसकी माता का नाम केशिनी था
[म.आ.८९.२८] ;
[अग्नि. २७८.१६] । अजमीढ का पिता हस्तिन् ने हस्तिनापुर की स्थापना की । भगीरथ ने लायी हुयी गंगा इसने रोकी थी । भगीरथ ने उसे फिर मुक्त किया
[वा.रा.बा.४३] ;
[वायु.९१] । गंगा को जाह्रवी कहने का यही कारण है ।
जह्रु III. n. (सो पूरु.) मिथिल का पुत्र । इसका पुत्र सिंधुद्वीप
[म.अनु.७.३. कुं.] । जह्रु आदि विश्वामित्रकुल के लोग, महाभारत में कई जगह पूरुवंश में दिये हैं । दूसरे स्थल में भिन्न प्रतिपादन है
[म.शां. ४९] ।
जह्रु IV. n. (सो. पूरु. कुरु.) भागवत, विष्णु, मत्स्य, तथा वायु के मत में कुरु के पॉंच पुत्रों में तीसरा । इसका पुत्र सुरथ । उस से हस्तिनापुर में कुरुवंश का विस्तार हुआ ।
जह्रु V. n. तामस मन्वन्तर का एक ऋषि ।