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महावीर वर्धमान n. जैन धर्म का अंतिम एवं चोवीसवाँ तीर्थंकर, जो उस धर्म का सर्वश्रेष्ठ संवर्धक माना जाता है । अपने से २५० साल पहले उतपन्न हुए पार्श्वनाथ नामक तततवज्ञ के धर्मविषयक ततवज्ञान का परिवर्धन कर, महावीर ने अपने धर्मविषयक ततवज्ञान का निर्माण किया । इसीसे आगेचल कर जैनधर्मियों के प्रातः स्मरणीय माने गये तेइस तीर्थंकरों की कल्पना का विकास हुआ, जिसमें पार्श्वनाथ एवं वर्धमान क्रमशः तेईसवाँ एवं चोवीसवाँ तीर्थंकर माने गये हैं । जैन साहितय में हर एक तीर्थंकर का विशिष्ट शरिरिक चिन्ह (लांछन) वर्णन किया गया है, जहाँ वर्धमान का लांछन ‘ सिंह ’ बताया गया है । इसका एक और भी मंगलचिन्ह प्रचलित है, जो ‘ वर्धमानक्य ’ नाम से सुविख्यात है । विश्व के धार्मिक इतिहास में महावीर एक ऐसी असामान्य विभूति है, जिसने राजाश्रय अथवा किसी भी प्रमुख आधिभौतिक शक्ति का आश्रय न ले कर, केवल अपनी श्रद्धा के बल से जैनधर्म की पुनः - स्थापना की । अपनी सारा आयुष्य एक सामान्य मनुष्य के समान व्यतीत कर, इसने तीर्थंकरों के द्वारा प्रतिपादित आतमकल्याण का मार्ग शुद्धतम एवं श्रेष्ठतम रुप में अंगीकृत किया, एवं अपने सारे आयुष्य में उसी मार्ग का प्रतिपादन किया । अपने इसी द्रष्टेपन के कारण यह जैन धर्म के पच्चीससौ वर्षों के इतिहास में उस धर्म की प्रेरक शक्ति बन कर रह गया । इस धर्म के विद्यमान व्यापक स्वरुप एवं तततवज्ञान का सारा श्रेय इसीको दिया जाता है । इसी कारण इसे ‘ अर्हत ’ (पूज्य,) ‘ जिन ’ (जेता,) ‘ निर्ग्रंथ ’ (बंधनरहित) एवं ‘ महावीर ’ (परम पराक्रमी पुरुष) कहा गया है । जैन वाड्गमय में इसे ‘ वीर ’ , ‘ अतिवीर, ’ ‘ सन्मतिवीर ’ आदि उपाधियाँ भी प्रदान की गयी हैं । इसी ‘ जिन ’ के अनुयायी होने के कारण, इस धर्म के अनुयायी आगे चल कर ‘ जैन ’ नाम से सुविख्यात हुए ।
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महावीर वर्धमान n. गौतम बुद्ध के ज्येष्ठ समवर्ती तततवज्ञ के नाते महावीर का निर्देश ‘ दीघनिकाय ’ आदि बौद्ध ग्रंथों में प्राप्त है । मगध देश के अजातशतरु राजा से मिलने आये छः श्रेष्ठ धार्मिक तततवज्ञों में महावीर एक था, जिसका निर्देश बौद्ध ग्रंथों में ‘ निगंठ नातपुतत ’ नाम से किया गया है । अजातशतरु राजा से मिलने आये अन्य पाँच धार्मिक तततवज्ञों के नाम निम्नप्रकार थें: - १. मक्खली गोसार, जो सर्वप्रथम महावीर का ही शिष्य था, किन्तु उसने आगे चलकर आजीवक नामक स्वतंतर सांप्रदाय की स्थापना की; २. पूरण कस्सप, जो ‘ आक्रियावाद ’ नामक ततवज्ञान का जनक था; ३ अजित केशि कंबलिन्, जो ‘ उच्छेदवाद ’ नामक तततवज्ञान का जनक माना जाता है, ४. पकुध काच्यायन, जो ‘ अशाश्वत ज्ञान ’ नामक तततवज्ञान का जनक माना जाता है, ५. संजय बेलट्टीपुतत, जिसका तततवज्ञान ‘ विक्षेपवाद ’ नाम से प्रसिद्ध है ।
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महावीर वर्धमान n. वृजि नामक संघराज्य में वैशालि नगरी के समीप स्थित कुण्डग्राम में इसका जन्म हुआ । ५९९ ई. पू. इसका जन्मवर्ष माना जाता है । यह ज्ञातृक वंश में उतपन्न हुआ था, एवं इसके पिता का नाम सिद्धार्थ था, जों ‘ वृजिगण ’ में से एक छोटा राजा था । इसकी माता का नाम तरिशला, एवं जन्मनाम वर्धमान था । आधुनिक कालीन बिहार राज्य में मुजफ्फरपुर जिले में स्थित बसाढ ग्राम ही प्राचीन कुण्डग्राम माना जाता है । इसकी माता तरिशला वैशालि के लिच्छवी राजा चेटक की बहन थी । इसी कारण पिता की ओर से इसे ‘ ज्ञातृकपुतर ’ , ‘ नातपुतत ’ , ‘ काश्यप ’ आदि पैतृक नाम, एवं माता की ओर से इसे ‘ लिच्छविक ’ एवं ‘ वेसालिय ’ नाम प्राप्त हुए थे ।
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महावीर वर्धमान n. वैशालि के चेटक नामक राजा के परिवार की सविस्तृत जानकारी जैन साहितय में प्राप्त है, जिससे महावीर के समकालीन राजाओं की पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है । चेटक राजा के कुल दस पुतर, एवं सात कन्याएँ थी, जिनमें से ज्येष्ठ पुतर सिंह अथवा सिंहभद्र वृजिराज्य का ही सेनापति था । चेटक की सात कन्याओं में से चंदना एवं ज्येष्ठा ‘ ब्रह्मचारिणी ’ महावीर की अनुगामिनी थीं । बाकी पाँच कन्याओं का विवाह निम्नलिखित राजाओं से हुआ था : - १. मगधराजा बिंबिसार; २. कौशांबीनरेश शतानीक; ३ दशार्णराज दशरथ; ४. सिंधुसौवीरनरेश उदयन; ५. अवंतीनरेश चण्डप्रद्योत । चेटक राजा के परिवार के ये सारे राजा आगे चल कर महावीर के अनुयायी बन गये । उपर्युक्त राजाओं के अतिरिक्त निम्नलिखित राजा भी महावीर के समकालीन एवं अनुयायी थे: - १. दधिवाहन (चंपादेश); २. जितशतरु (कलिंग); ३. प्रसेनजित (श्रावस्ति); ४. उदितोदय (मथुरा); ५. जीवंधर (हेमांगद); ६. विद्रदाज (पौदन्यपूर); ७. विजयसेन (पलाशपुर); ८. जय (पांचाल); ९. हस्तिनापुरनरेश ।
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