नरोत्तम n. एक ब्राह्मण । यह अपने मातापितरों का अनादर करता था । फिर भी तीर्थयात्रादिकों के योग से काफी पुण्य संपादन किया था । इसके गोले वस्त्र आकाश में अधर सूखते थे । एक बार एक बगुले को शाप देने के कारण, इसका काफी पुण्य तथा दैवी सामर्थ्य नष्ट हो गया । इसे काफी दुख हुआ । इतने में इसने आकाशवाणी सुनी, ‘तुम मूक नामक धार्मिक चांडाल के पास जाओ । वह तुम्हें धर्म का उपदेश करेगा’। यह उस चांडाल के पास गया । उस समय मूक अपने मातापितरों की सेवा कर रहा था । उसने इसे रुकने के लिये कहा । फिर भी यह नहीं रुका । फिर मूक ने इसे एक पतिव्रता के पास जाने के लिये कहा । इतने में ब्राह्मण रुपधारी विष्णु अपने घर से बाहर निकला तथा उसने इसे पतिव्रता के घर पहुचा दिया । वह पतिसेवा करने में मग्न होने के कारण, उसने भी इसे रुकने के लिये कहा । इसे रुकने के लिये समय न होने के कारण, उसने इस धर्म वैश्य के पास जाने लिए कहा । वह ग्राहकों को माल देने में मग्न था, इसलिये उसने इसे धर्माकर के पास जाने के लिये कहा । उसने इसे एक वैष्णव के पास भेजा । वैष्णव के पास जाने पर उसने कहा, कि‘ अवश्य ही तुम्हें विष्णु का दर्शन हुआ है । अब तुम्हारे वस्त्र अधर सूखगे’। परंतु इस पर नरोत्तम ने कहा, मुझे अब तक विष्णु का दर्शन नहीं हुआ है । फिर वह वैष्णव इसे पूजागृह में ले गया । पूजागृह में इसे पतिव्रता का घर दिखानेवाला ब्राह्मण कमलासन पर बैठा हुआ दिखा । फिर नरोत्तम उसकी शरण में गया । पश्चात् विष्णु ने इसे मातापिता की सेवा करने के लिये कहा । उस सेवाधर्म के कारण, यह स्वर्लोक पहुँच गया
[पद्म. सृ.४७] ।