महानंदा n. एक वेश्या, जो परम शिवभक्त थी । इसके पास एक बन्दर तथा एक मुर्गा था, जिन्हे यह रुद्राक्षों से सजाये रहती थी । जब यह शिव की भक्तिभावना में भजन करती हुयी उसीमें तल्लीन रहती, तब बंदर तथा मुर्गा इसके साथ नृत्य किया करते थे ।
महानंदा n. एक बार भगवान् शंकर एक वैश्य का रुप धारण कर, इसकी परीक्षा लेने के लिए स्वयं आये । वैश्यरुपधारी शंकर के पास एक रत्नकंकण था, जिसे देख कर महानंदा की इच्छा उसे प्राप्त करने की हुयी । वैश्य ने इससे कहा कि, वह रत्नकंकण तो दे सकता हैं पर उसकी मूल्य यह क्या देगी? तब महानंदी ने कहा, ‘इस कंकण को प्राप्त करने के लिए, मैं आपके पास तीन दिन पत्नीरुप में रह सकती हूँ’। वैश्यने कंकण और रत्नमय लिंग इसको रखने को दिया, और उसके बदले इसे तीन दिन तक पत्नीरुप में स्वीकार किया । एक रात को आग लगने के कारण, वह रत्नमय लिंग जल गया, जिससे दुखित होकर वैश्य प्राण देने को उद्यत हुआ । महानंदा ने जब देखा कि, वह देहत्याग के लिए उद्यत है, तो यह भी उसके साथ सती होने को तैयार हुई । क्योंकि, इन तीन दिनों में, शर्त के अनुसार यह उसकी पत्नी थी, तथा पत्नी होने के कारण इसे पत्नीधर्म निबाहना जरुरी था । महानंदा की कर्तव्यभावना देखकर शंकर प्रसन्न हुए, एवं दर्शन दे कर इसके समस्त पापों का हरण किया
[शिव.शत.२६] । महानंदा के सम्मुख प्रगट हुए शिव के इस अवतार को ‘वैश्यश्वर’ कहते हैं ।