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सत्राजित् , सत्राजित

   
Script: Devanagari

सत्राजित् , सत्राजित

सत्राजित् , सत्राजित n.  (सो. वृष्णि.) एक सुविख्यात यादव राजा, जो निम्न राजा का पुत्र था [भा. ९.२४] । ब्रह्मांड एवं विष्णु में इसे विघ्न राजा का पुत्र कहा गया है [विष्णु. ५.१३.१०] ;[ब्रह्मांड. ३.७१.२१] । इसे शक्तिसेन नामांतर भी प्राप्त था [मत्स्य. ४५.३] ;[पद्म. सृ. १३] । इसके जुड़वे भाई का नाम प्रसेन था [भा. ९.२४.१३] । सत्यभामा के पिता, एवं स्यमंतक मणि के स्वामी के नाते यादव वंश के इतिहास में इसका नाम अत्यधिक प्रसिद्ध था ।
सत्राजित् , सत्राजित n.  पूर्वजन्म में यह मायापुरी में रहनेवाला देवशर्मन् नामक ब्राह्मण था, एवं इसकी कन्या का नाम गुणवती था, जो इस जन्म में इसकी सत्यभामा नामक कन्या बनी थी ।
सत्राजित् , सत्राजित n.  सूर्य के प्रसाद से इसे स्यमंतक नामक एक अत्यंत तेजस्वी मणि प्राप्त हुई थी [भा. १०.५५.३] । इस मणि में रोगनाशक एवं समृद्धि वर्धक अनेकानेक दैवी गुण थे । यही नहीं, यह मणि प्रतिदिन आठ भार स्वर्ण देती थी । यह मणि सूर्य के समान तेजस्वी थी, एवं इसे धारण करनेवाला व्यक्ति, साक्षात् सूर्य ही प्रतीत होता था । एक बार कृष्ण ने इसके पास स्यमंतक मणि देखा, जिसे देखकर उसने चाहा कि, मथुरा के राजा उग्रसेन के पास यह मणि रहे तो अच्छा होगा । इस हेतु कृष्ण स्वयं इसके प्रासाद में आया, एवं किसी भी शर्त पर यह मणि उग्रसेन राजा को देने के लिए इससे प्रार्थना की। किन्तु इसने कृष्ण के इस माँग को साफ इन्कार कर दिया । तदुपरांत एक दिन इसका भाई प्रसेन स्यमंतक मणि गले में पहन कर शिकार करने गया । वहाँ एक सिंह ने उसका वध किया, एवं वह दैवी मणि ले कर अपनी गुहा की ओर जाने लगा। इतने में जांबवत् नामक राक्षस ने मणि की प्राप्ति की इच्छा से उस सिंह का वध किया, एवं वह मणि छीन लिया ।
सत्राजित् , सत्राजित n.  बहुत समय तक प्रसेन वापस न आने पर, इसके मन में संशय उत्पन्न हुआ कि, श्रीकृष्ण के द्वारा ही प्रसेन का वध हुआ है, एवं यह क्रूरकर्म करने में उसका हेतु स्यमंतक मणि की प्राप्ति के सिवा और कुछ नहीं है । इस कारण प्रसेन का खूनी एवं स्यमंतक मणि के अपहर्ता के नाते, यह श्रीकृष्ण पर प्रकट रूप में दोषारोप करने लगा। इस कारण यादव राजसमूह में श्रीकृष्ण की काफी बेइज्जती होने लगी।
सत्राजित् , सत्राजित n.  इस कारण श्रीकृष्ण ने उपर्युक्त दोषारोप से छुटकारा पाने के लिए, स्यमंतक मणि की खोज़ शुरू की। खोज़ते खोज़ते कृष्ण जांबवत् की गुंफा में पहुँच गया, जहाँ जांबवत् से अठ्ठाईस दिनों तक युद्ध कर उसे परास्त किया, एवं उससे स्यमंतक मणि पुनः प्राप्त किया । पश्चात् कृष्ण ने वह मणि इसे वापस दिया, एवं उसकी चोरी के संबंध में सारी घटनाएँ इससे कह सुनायीं।
सत्राजित् , सत्राजित n.  स्यमंतक मणि के संबंध में सत्य हकीकत ज्ञात होते ही, इसने कृष्ण से क्षमा माँगी, एवं अपनी कन्या सत्यभामा का उससे विवाह कर दिया । विवाह के समय, इसने कृष्ण को वरदक्षिणा के रूप में स्यमंतक देना चाहा, किंतु श्रीकृष्ण ने उसे लेने से इन्कार किया, एवं उसे इसके पास ही रख दिया ।
सत्राजित् , सत्राजित n.  आगे चल कर, कृष्ण जब हस्तिनापुर में पांडवों से मिलने गया था, यही सुअवसर समझ कर, अक्रूर एवं कृतवर्मन् आदि यादव राजाओं ने इसका वध करने का षड्यंत्र रचा। ये दोनों यादव राजा सत्यभामा से विवाह करना चाहते थे, एवं उन्हें टाल कर कृष्ण को जमाई बनानेवाले सत्राजित् से अत्यधिक रुष्ट थे । इसी कारण उन्होंनें शतधन्वन् नामक अपने कनिष्ठ भाई को इसका वध कर, स्यमंतक मणि की चोरी करने की आज्ञा दी। तदनुसार शतधन्वन् ने इसका निद्रित अवस्था में ही वध किया, एवं स्यमंतक मणि चुरा लिया [भा. १०.५७.५] । अपने मृत्यु के पश्चात्, सूर्योपासना के पुण्य के कारण इसे मुक्ति प्राप्त हुई [भवि. ब्राह्म. ११६-११७] । अपने पिता के निर्घुण वध की वार्ता सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से कथन की, एवं किसी भी प्रकार शतधन्वन् का वध करने की इसे प्रार्थना की।
सत्राजित् , सत्राजित n.  पश्चात् शतधन्वन् का पीछा करता श्रीकृष्ण आनर्त देश पहुँच गया । यह ज्ञात होते ही शतधन्वन् ने स्यमंतक मणि अक्रूर के पास दिया, एवं वह स्वयं विदेह देश भाग गया । वहाँ मिथिलानगरी के समीप स्थित जंगल में श्रीकृष्ण ने उसका वध किया, किंतु फिर भी स्यमंतक मणि की प्राप्ति न होने के कारण, निराश हो कर वह द्वारकानगरी पहुँच गया । पश्चात् मणि अक्रूर के पास ही है, एवं उससे वह प्राप्त करना मुश्किल है, यह जान कर कृष्ण ने उससे संधि की, एवं सारे निकटवर्ती लोगों को इकठ्ठा कर वह मणि अक्रूर को दे दिया ।
सत्राजित् , सत्राजित n.  स्यमंतक मणि से संबंधित उपर्युक्त कथा का निर्देश यास्क के निरुक्त में प्राप्त है, जहाँ अक्रूर मणि धारण करता है (अक्रूरो ददते मणिम्), इस वाक्यप्रयोग का निर्देश एक कहावत के नाते दिया गया है [नि. २.२.११] । इस निर्देश से स्यमंतक मणि के संबंधित उपर्युक्त कथा की प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता स्पष्टरूप से प्रतीत होती है । कई अभ्यासकों के अनुसार, मृगल राज्य में सुविख्यात कोहिनूर ही प्राचीन स्यमंतक मणि है ।
सत्राजित् , सत्राजित n.  इसकी कुल दस पत्‍नियाँ थी, जो कैकयराज की कन्याएँ थी । इनमें से वीरवती (द्वारवती) इसकी पटरानी थी [ब्रह्मांड. ३.७१.५६] ;[मत्स्य. ४५.१७-१९] । इसके कुल एक सौ एक पुत्र थे, जिनमें से प्रमुख पुत्रों की नामावलि विभिन्न पुराणों में विभिन्न दी गयी हैः-- १. ब्रह्मांड में---भङ्गकार, वातपति, एवं तपस्वी नामक तीन पुत्र, एवं सत्यभामा, व्रतिनी एवं दृढव्रता नामक तीन कन्याएँ [ब्रह्मांड. ३.७१.५४-५७] ; २. वायु में---भङ्गकार,, व्रतपति, एवं तपस्वांत [वायु. ३४.५३] ; ३. ब्रह्म में---वसुमेध, भङ्गकार एवं वातपति [ब्रह्म. १६.४६]

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