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बृसय m. m.
N. of a demon ([Sāy.] = त्वष्टृ), [RV. i, 93, 4]
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बृसय n. ऋग्वेद में निर्दिष्ट एक दानव जाति, जो पणि एवं पारावत् लोगों के साथ संबंधित थी [ऋ.१.९३.४, ६.३१.१] । ये लोक पणि एवं पारावतों के साथ ‘अकोसिया’ अथवा ‘ड्रैन्जियाना’ प्रदेश निवास करते थे । सायण के अनुसार, ऋग्वेद के भारद्वाज रचित सूक्त में इसे ‘त्वष्टावृत्रपिता’ कहा गया है, एवं इसके पुत्र वृत्र का वध करने की प्रार्थना सरस्वती से की गयी है [ऋ.६.३१.३] । ऋग्वेद में अन्यस्थान पर, अग्नि एवं सोम के द्वारा वृसय के वंशजों का वध जोने के कारण, उन देवताओं की स्तुति की गयी है [ऋ.१.९३.४] ।
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बृसय [bṛsaya] (Ved.) a. Mighty, great; यथा सरस्वतीदेवताके निगदे 'सरस्वति देवनिदो निबर्हय प्रजां विश्वस्य बृसयस्य मायिनः' इति बृसयशब्दो बृहच्छब्दार्थं गमयति ŚB. on [MS.1.1.32.] [बृसय according to Śabara brings to our mind the word बृहत् just as गावी etc. remind us of गौः. This would mean that बृसय, according to Śabara, is an अपभ्रंश.]
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prob. ) a sorcerer, conjuror, vi, 61, 3.
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