अहिरावण-महिरावण n. पाताल में, अहिरावण तथा महिरावण नामक रावण के दो मित्र थे । इन्हें रावण ने राम का नाश करने के लिये कहा । परंतु सुवेल पर्वत पर राम की संपूर्ण सेना अभेद्य दीवार के भीतर होने के कारण, इन्होंने आकाश से शिबिर में छलॉंग लगाई । पश्चात्, शिला पर सुप्त रामलक्ष्मण को यह शिलासहित पाताल में ले गये । परंतु हनुमान इनका पीछा करते निकुंभिला नगर आया । कपोत कपोती के संवाद से हनुमान को पता चला कि, दैत्य रामलक्ष्मण को देवी के सामने बलि देने के लिये रसातल में ले गये हैं । उधर जाते समय, हनुमान को द्वार पर मकरध्वज मिला । प्रश्नोत्तर में, दोनों का पितापुत्र का नाता निकला (मकरध्वज देखिये) । मकरध्वज ने हनुमान को सुझाया कि, कामाक्षी कें मंदिर में जा कर बैठ जावे तथा कार्य किया जावे । सुबह वाद्यों की ध्वनि में राक्षस रामलक्ष्मण को वहॉं ले कर आये । तब देवी का स्वर निकाल कर हनुमान ने उन्हें कहा कि, पूजा झरोखे से की जावे । उसके अनुसार, राक्षसों ने देवी को बहुत से उपचार अर्पण किये, तथा रामलक्ष्मण को भी झरोखे से भीतर छोडा । तदनंतर तीनों ने मिल कर, राक्षसों का संहार शुरु किया । परंतु अहिरावण-महिरावण के लहू से, पुनः वैसे ही राक्षस निर्माण होने लगे । तब हनुमान ने अहिरावण की पत्नी को इसे मारने का उपाय पूछा । वह बोली कि, मैं नागकन्या हूँ । इस दुष्ट ने बलात्कार से मुझे यहॉं लाया । महिरावण भी मुझ पर लुब्ध है । परंतु मैं उसके अनुकूल नही होती । इतना कह कर उसने कहा कि, यदि राम मुझसे विवाह करेगा, तो मैं उपाय बताती हूँ । हनुमान ने कहा कि, राम के भार से अगर तुम्हारा मंचक नहीं टूटा, तो राम तुम से विवाह कर लेंगे । तब उसने बताया कि, पहले जब कुछ लडके भ्रमरी को कॉंटे चुभा रहे थे, तब उन्हें इन दोनों भाईयों ने मुक्त किया । इस लिये प्रत्युपकार करने के हेतु, वे भ्रमर अमृत बिंदुओंसे इन दोनों को जीवित करते रहते हैं । इस लिये तुम भ्रमरों को मार डालो । अभी वे सब राक्षसों के निद्रास्थान में हैं । यह मालूम होते ही, हनुमान ने असंख्य भ्रमर मार डाले । एक भ्रमर उसे शरण आया । उसे प्राणदान दे कर, हनुमान ने उसे अहिरावण की पत्नी का मंचक भीतर से खोखला करने के लिये कहा, तथा स्वयं राम के पास गया । इतने में राम के बाण से सब राक्षसों की मृत्यु हो गई । तदनंतर हनुमान के आग्रह पर, राम नागकन्या के मंदिर में गया, तथा पर्यक को हॉंथ लगाते ही वह टूट जाने के कारण, उसे तीसरे जन्म में पत्नी बनाने का आश्वासन दे कर दोनों सुवेल पर लौट आये । रामवचन पर विश्वास रख कर, अहिरावण की पत्नी ने अग्नी में देहत्याग किया
[आप. आ. सार.११] ।