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आदित्य n. वैवस्वत मन्वंतर में देवताओं के समूह का नाम । ऋग्वेद में इसके लिये छः सूक्त है । एक स्थान में केवल अदित्यसंघ में छः देवता हैं [ऋ.२.२७.१] । वे इस प्रकार हैं-१.अंश,२. भग,३. धातृ, ४. इन्द्र,५. विवस्वत्, ६. मित्र, ७. वरुण तथा ८. अर्यमन् [तै. ब्रा. १.१.११.३.८] । वेदोत्तर वाङ्मय में बारह माहों के बारह आदित्य या सूर्य प्रसिद्ध हैं (कश्यप देखिये) । उन में विष्णु सर्वश्रेष्ठ माना गया है । ऋग्वेद में सूर्य को आदित्य कहा गया है । इसलिये सूर्य सातवां और मार्ताण्ड आठवां आदित्य होगा । गाय आदित्य की बहन हैं [ऋ.८.१०१.१५] । इन्द्र यह अदिति का पुत्र अर्थात् आदित्यों में से एक है [ऋ.७.८५.४] ;[मै. सं. २.१.१२] । परंतु बारह आदित्यों से इन्द्र अलग है [श. ब्रा.११.६.३.५] । आदित्य का उल्लेख वसु, रुद्र, मरुत, अंगिरस्, ऋभु तथा विश्वदेव इन देवताओं के साथ कई स्थानों पर आया है फिर भी वह सब देवताओं का सामान्य नाम है । आदित्यों का वर्णन सब देवताओं के सामान्य वर्णनों से मिलताजुलता होते हुए भी आदित्यों में प्रमुख मित्रावरुणा से नही मिलता । सर्वाधार, सर्वपालक, मन के विचार जाननेवाले, पापी जनों को सजा देनेवाले तथा रोग दूर कर दीर्घायु देनेवाले ऐसा इनका वर्णन है । ब्रह्मदेव को उद्देशित कर, अदिति ने चांवल पकाया, ताकि, उसकी कोख से साध्य देव उत्पन्न हो । आहुति दे कर बचा हुआ चांवल उसने खाया जिससे धाता एवं अर्यमा दो जुडवें पुत्र हुए । दुसरी बार मित्र तथा वरुण तीसरी बार अंश एवं भग तथा चौथे बार इन्द्र एवं विवस्वान हुए । अदिति के बारह पुत्र ही द्वादशादित्य या साध्य नामक देव है [तै. ब्रा.१.१.९.१] । आदित्य से सामवेद हुआ [ऐ.ब्रा.२५.७] ;[सां. ब्रा.६.१०] ;[श. ब्रा.११.५.८] ;[छां. उ.४.१७.२] ;[जै. उ. ब्रा.३.१५.७] ];[पं. ब्रा. ४.१] ;[छां. उ.१७.२] ;[जै. उ. ब्रा.३.१५.७] ;[पं. ब्रा. ४. १] ; [गो. ब्रा.१.६] । पुराणों में आदित्य , कश्यप तथा अदिति के पुत्र है (कश्यप देखिये) । १. अंशुमान (आषाढ माह, किरण १५००), २. अर्यमन् [वैशाख, १३००] . ३. इंद्र (आश्विन, १२००), ४. त्वष्ट्ट (फाल्गुन, ११००), ५. धातृ [कार्तिक, ११००] , ६. पर्जन्य [श्रावण, १४००] , ७. पूषन्. (पौष), ८. भग [माघ, ११००] , ९. मित्र [मार्गशीर्ष, ११००] , १०. वरुण [भाद्रपद, १३००] , ११. विवस्वत् (ज्येष्ठ, १४००), १२. विष्णु [चैत्र, १२००] । इनके कार्य भी बताये है [भवि. ब्रह्म. ६५, ७४,७८] ; [विष्णु. १.१५.३२] । अंशुमान के लिये अंश या अंशु ऐसा पाठ है । विष्णु के लिये उरुक्रम पाठ है । परंतु स्कंदपुराण में बिलकुल भिन्न सूची दी गयी है । १. लोलार्क, २. उत्तरार्क, ३. सांबादित्य, ४. द्रुपदादित्य, ५. मयूखादित्य, ६. अरुणादित्य, ७. वृद्धादित्य, ८. केशवादित्य, ९. विमलादित्य, १०. गंगादित्य, ११. यमादित्य, १२. सकोलकादित्य [स्कंद. २.४.४६.] ।
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