धर्मगुप्त n. सोमवंशीय नंद राजा का पुत्र । एक बार यह अरण्य में गया था । संध्यासमय होने के कारण, उसी अरण्य के एक वृक्ष का इसने रातभर के लिये सहारा लिया । रात के समय, उसी वृक्ष का सहारा लेने एक रीछ आया । उसके पीछे एक सिंह लगा हुआ था । रीछ ने राजा ने कहा, ‘मित्र, तुम घबराना नहीं । सिंह के डर से मैं यहॉं आया हूँ । हम दोनों इस वृक्ष के सहारे रात बिता लेंगे । आधी रात तक तुम जागो । आधी रात तक मैं जाग कर तुम्हें सम्हालूँगा’। राजा निश्चिंत मन से सो गया । नीचे खडा सिंह, रीछ से बोला, ‘तुम राजा को नीचे फेंक दो’। रीछ ने यह अमान्य कर कहा, ‘विश्वसघात करना बहुत ही बडा पाप हैं’। बाद में राजा को जागृत कर वह स्वयं सो गया । सिंह ने राजा से कहा, ‘तुम रीछ को नीचे ढकेल दो’। दुर्बुद्धि सूझ कर राजा ने रीछ को नीचे ढकेल दिया, परंतु सावधानी से रीछ वृक्षों के डालो में अपने आप को फँसा दिया । पश्चात् इसने क्रोधवश राजा को शाप दिया, ‘तुम पागल हो जाओगे’। रीछ आगे बोला, ‘मैं भृगुकुल क ध्यानकाष्ट नामक ऋषि हूँ । मन चाहा रुप मैं ले सकता हूँ । तुम विश्वास घात से मुझे नीचे ढकेल रहे थे, इसलिये मैंने तुम्हें शाप दिया है’। सिंह से भी उसने कहा, ‘तुम भद्र नामक यक्ष तथा कुबेर के सचिव थे । गौतम ऋषि के आश्रम में दोषहर में निर्लज्जता से स्त्री के साथ क्रीडा करने के कारण, गौतम ने तुम्हें सिंह बनने का शाप दिया था । मेरे साथ संवाद करने पर पुनः यक्षरुप प्राप्त होने का उःशाप भी, तुम्हे मिला था’। ध्यानकाष्ट का यह भाषण सुन कर, सिंह पुनः यक्ष बना एवं विमान में बैठ कर अलकापुरी चला गया । धर्मगुप्त के पागल होने की वार्ता सुन कर, नंद राजा राजाधानी में वापस आया । उसने जैमिनि ऋषि को, अपने पुत्र के पागलपन का उपाय पूछा । उसने राजा को पुष्करिणी तीर्थ पर, स्नान करने के लिये कहा । नंद ने वैसा करने पर, उसके पुत्र धर्मगुप्त का पागलपन निकल गया । पश्चात् नंद राजा पुनः तप करने के लिये वन में गया
[स्कंद.२.१.१३] ।