मंगल n. बौधायन श्रौतसूत्र में निर्दिष्ट एक आआर्य
[बौ.श्रौ.२६.२] ।
मंगल II. n. एक शिवपुत्र, जो शिव के घर्मबिन्दु से पैदा हुआ था । दक्षयज्ञ में सती की मृत्यु हो जाने के कारण, उसके विरहताप से पीडित हो कर, शंकर उसकी प्राप्ति के लिये तप करने लगा । तप करते समय शंकर के मस्तक से एक घर्मबिंदु पृथ्वी पर गिरा । उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे मंगल नाम प्राप्त हुआ । आगे चल कर शंकर ने नवग्रहों में उसकी स्थापना की । यह समस्त पृथ्वी का पालनकर्ता माना जाता है । ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से, मंगल भूमि एवं भार्या का संरक्षणकर्ता माना जाता है । इसीसे इसे ‘भौम’ भी कहते है
[शिव.रुद्र.२.१०] ;
[स्कंद. ४.१.१७] । अग्नि के संपर्क से उत्पन्न होने के कारण, इसे ‘अंगारक’ नाम भी प्राप्त हुआ था
[विष्णुधर्म.१.१.६] ;
[पद्म. सृ.८१] । स्कंद.के अनुसार, शिव के अश्रुबिंदुओं से इसकी उत्पत्ति हुयी थी
[स्कंद. ७.१.४५] । स्कंद में इसके उत्पत्ति की कथा इस प्रकार दी गयी हैः---शंकर ने हिरण्याक्ष की विकेशी नामक कन्या से विवाह किया था । एक दिन शंकर विकेशी से संभोग करने ही वाला था कि, वहॉं अग्नि आ पहुँचा । उसे देख कर शंकर क्रोध से लाल हो उठा, तथा उसकी ऑखों से अश्रुबिंदु टपकने लगे । उन अश्रुबिंदुओं में से एक तेजोमय अश्रु विकेशी के मुख में जा गिरा, जिससे वह गर्भवती हो गयी । किंतु आगे चले कर शंकर के तेजोमय गर्भ को वह सहन न कर सकी, तथा उसएन उसे बाहर गल दिया । बाद को उस गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे पृथ्वी ने स्तनपान करा कर बडा किया । यही पुत्र मंगल कहलाया । भविष्यपुराण में मंगल की उत्पत्ति कुछ दूसरे प्रकार से दी गयी है । उसमें इसकी उत्पत्ति शिव के रक्तबिन्दु से कही गयी है
[भवि.ब्राह्म.३१] । गणेशपुराण में इसे भारद्वाज का पुत्र कहा गया है, एवं गणेश की कृपा के द्वारा किस प्रकार यह ग्रह बना, उसकी भी कथा दी गयी है ।
मंगल III. n. एक देव, जो स्वायंभुव मन्वंतर के जित देवों में से एक था ।