माल्यवत् n. एक राक्षस, जो सुकेश राक्षस का ज्येष्ठ पुत्र था । इसकी माता का नाम देववती था । इसके दो छोटे भाइयों के नाम सुमालि एवं मालि थे । यह रावण का मातामह था । आगे चल कर सुकेश के तीनों पुत्रों की शादियॉं नर्मदा नामक गंधर्वी की तीन कन्याओं से हुयी । उनमें से सुन्दरी नामक कन्या की शादी माल्यवत् से हुयी थी ।
माल्यवत् n. अपने पिता के तपःसामर्थ्य एवं ऐश्वर्य को प्राप्त कर, यह अपने भाइयों के साथ घोर तपस्या करने लगा । शीघ्र ही इसने अपनी तपस्या से ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर उससे वर प्राप्त किया, एवं त्रिकूट पर्वत के शिखर पर, सौ योजन लम्बी एवं बीस योजन चौडी सुवर्णमंडित लंका नामक नगरी प्राप्त की । पश्चात् यह सपरिवार वहॉं जा कर रहने लगा ।
माल्यवत् n. कालोपरांत यह तथा इसके भाई गर्व में उन्मत्त हो कर देवादि को विभिन्न प्रकार से कष्ट देने लगे । उन कष्टों से ऊब कर सारे देव शंकर के निर्देश पर विष्णु के पास गये । तब इन राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा कर के विष्णु ने देवों को भय से मुक्त किया । जैसे ही माल्यवत् को विष्णु की यह प्रतिज्ञा ज्ञात हुयी, यह बहुत घबराया, एवं विष्णु के द्वारा की गयी प्रतिज्ञा इसने अपने भाइयों से कह सुनायी । भाइयों ने इसको धीरज धराया, एवं देवों से युद्ध करने का निश्चय किया । इस युद्ध में विष्णु ने अन्य देवों के साथ इससे घोर संग्राम करते हुए, इसके भाई मालि का वध किया । तब विष्णु के पराक्रम से डर कर, यह अपने भाई सुमाली के साथ पाताल लोक में जाकर रहने लगा ।
माल्यवत् n. इधर लंका में वैश्रवण नामक कुबेर निवास करता रहा । कुछ समयोपरांत एक दिन यह अपने पातालपुरी से निकल कर मृत्युलोक जा रहा था कि, इसने वैश्रवण एवं उसके पिता विश्रवस को पुष्पक विमान में बैठ क जाते हुए देखा । उसके वैभव को देख कर यह आश्चर्यचकित हो उठा, एवं उस प्रकार के ऐश्वर्य के भोगलालसा की कामना से इसने अपनी कन्या कैकसी वैश्रवण को दी । कालोपरांत इसी कैकसी से रावण इत्यादि पुत्र हुए (सुमालि देखिये) । बाद, में जब रावण लंका का राजा हुआ, तब माल्यवत् अपने भाई सुमालि तथा अपने परिवार के अन्य राक्षसों के साथ, लंकापुरी में आकर रहने लगा
[वा.रा.उ.११] । बाद में रावण के द्वारा सीता का हरण किया जाने पर, इसने उसे सीता को तुरन्त राम के पास लौटा देने के लिए कहा था
[वा.रा.यु.३५.९-१०] । उस समय इसने व्याकुलता से परिपूरित हो कर भावनापूर्ण उपदेश रावण को दिया था ।
माल्यवत् n. इसे अपनी पत्नी सुन्दरी से वज्रमुष्टि, विरुपाक्ष, दुर्मुख, सुप्तघ्न, यज्ञकोप, मत्त, तथा, उन्मत्त नामक पुत्र, तथा अनला नामक पुत्री उत्पन्न हुयी थी
[वा.रा.उ.५.२५-३६] ।
माल्यवत् II. n. पुष्पदंत नामक गंधर्व का पुत्र । एक बार इन्द्रसभा में जब अनेक गंधर्व नृत्यगायन के लिए एकत्र हुए थे, तब उनमें माल्यवत तथा चित्रसेन की नातिन पुष्पदंती उपस्थित थी । ये दोनों अत्यंत सुंदर थे, अतएव आपसी प्रेमभावना में अनुरक्त हो गये । इससे ये तालस्वर से अलग गाने लगे । इन्द्र ने इन्हें वेसुरा गाते हुए देख कर, राक्षस होने का शाप दिया । फिर ये दोनों पिशाच हो गये । काफी समय बीत जाने के उपरांत, एक बार माघ माह की दशमी के दिन इनका आपस में झगडा हो गया, तथा पिशाचयोनि प्राप्त होने के कारण, ये दोनों आपस में एक दूसरे को सताने लगे । बाद को इन्होंने निश्चय किया कि, इस योनि से मुक्ति प्राप्त करने के लिए, कोई भी पापाचरण से ये दूर रहेंगे । दूसरे दिन उपवास कर के, इन लोगों ने एक पीपल के वृक्ष के नीच बैठ कर ‘रात्रिजागरण’ किया, जिसके फलस्वरुप इन्हे ‘जया एकादशी’ का पुण्य प्राप्त हुआ । इस पुण्य के बल पर ही ये शाप से मुक्त हो सके । बाद में इन्द्र की आज्ञा से, ये दोनों पतिपत्नी बन कर सुख से रहने लगे
[पद्म.उ.४३] ।