शंखचूड n. रामसेना का एक वानर। राम के द्वारा प्रशस्ति की जाने के कारण, यह सुग्रीव के कृपापात्र वानरों में से एक बना था
[वा. रा. उ. ४०.७] ।
शंखचूड II. n. एक विष्णुभक्त राक्षस, जो विप्रचित्ति राक्षस का पौत्र, एवं दंभ राक्षस का पुत्र था । इसकी पत्नी का नाम तुलसी था, जिससे इसने गांधर्वविवाह किया था । देवी भागवत में इसकी पत्नी का नाम पद्मिनी अथवा विरजा दिया गया है । अपने पूर्वजन्म में, यह सुदामन् नामक विष्णु-पार्षद था
[दे. भा. ९.१८] ।
शंखचूड II. n. इसकी पत्नी तुलसी के पातिव्रत्य के कारण, एवं विष्णु से प्राप्त किये विष्णुकवच के कारण, यह समस्त पृथ्वी में अजेय बन गया था । इसी कवच के बल से इसने देवों को त्रस्त करना प्रारंभ किया, एवं उनके राज्य यह हस्तगत करने लगा ।
शंखचूड II. n. इसके दुष्कार्यों को देख कर, श्रीविष्णु ने इसका वध करने का निश्र्चय किया । तत्प्रीत्यर्थ उसने इसकी पत्नी तुलसी का पातिव्रत्यप्रभाव नष्ट किया, एवं तत्पश्चात् एक ब्राह्मण का रूप धारण कर, इससे विष्णुकवच भी दान के रूप में प्राप्त किया । तदुपरांत शिव ने काली के समवेत इस पर आक्रमण किया, एवं विष्णु के द्वारा दिये गये शूल की सहायता से इसका वध किया । इस युद्ध में शिव की ओर से काली, एवं इसकी ओर से तमाम राक्षसियों ने भाग लिया था ।
शंखचूड II. n. इसकी मृत्यु के पश्चात्, इसके हड्डियों से शंख बने, जिन्हें विष्णुपूजा में अग्रमान प्राप्त हुआ । शंकर को छोड़ कर अन्य देवताओं पर डाला गया जल तीर्थजल के समान पवित्र माना जाता है । इसका शब्द भी शुभ माना जाता है, किंतु इसके ऊपर तुलसीदल चढ़ाना निषिद्ध एवं अशुभ माना गया है
[दे. भा. ९.१७.२५] ;
[ब्रह्मवै. २.१६-२०] ;
[शिव. रुद्र. यु. २७-४०] ,
शंखचूड III. n. पाताल में रहनेवाला एक प्रमुख नाग
[भा. ५.२४.३१] ।
शंखचूड IV. n. एक यक्ष, जो कुबेर का अनुचर था । एक बार इसने गोकुल में रहनेवाली कई गोपियों का हरण किया, जिस कारण कृष्ण ने इसका वध किया, एवं इसके सिर का मणि बलराम को अर्पण किया
[भा. १०.३४.२५-३२] ।