शिबि n. एक लोकसमूह, जो आधुनिक पंजाब प्रदेश में इरावती, एवं चंद्रभागा (असिक्नी) नदीयों के बीच प्रदेश में स्थित था ।
शिबि n. ऋग्वेद में इन लोगों का निर्देश ‘शिव’ नाम से प्राप्त है, जहाँ, अलिन, पक्थ, भलानस्, एवं विषणिन् लोगों के साथ, इनके सुदास राजा के द्वारा पराजित होने का निर्देश प्राप्त है
[ऋ. ७.१८.७] । बौधायन के श्रौतसूत्र में, इन लोगों के शिबि ओशीनर राजा का निर्देश प्राप्त है
[वौ. श्रौ. ३.५३.२२] । इन लोगों के अमित्रतपन नामक राजा का निर्देश भी ऐतरेय ब्राह्मण में प्राप्त है
[ऐ. ब्रा. ८.२३.१०] ।
शिबि n. पाणिनी के अष्टाध्यायी, में, इन लोगों के शिविपुर, (शिवपुर) नामक नगर का निर्देश प्राप्त है, जो उत्तर प्रदेश में स्थित था
[महा. २.२८२, २९३-२९४] । आधुनिक पंजाब के झंग प्रदेश में स्थित शोरकोट प्रदेश में शिबि लोग रहते थे, ऐसा माना जाता है । सिंकदर के आक्रमण के समय भी ये लोग पंजाब प्रदेश में रहते थे, एवं ‘सिबै’ अथवा ‘सीबोइ’ नाम से सुविख्यात थे
[अरियन इंडिका ५.१२] ; शिव २. देखिये ।
शिबि n. इस ग्रंथ में इन लोगों का निर्देश शक, किरात, यवन, एवं वसाति आदि विदेशीय जातियों के साथ प्राप्त है । उशीनर लोगों से ये लोग शुरू से ही संबंधित थे, एवं शिबि औशीनर राजा के वृषदर्भ, सुवीर, केकय, एवं मद्रक इन चारों पुत्रों के कारण, समस्त पंजाब देश में इन्होंने अपना राज्य स्थापित किया था (शिबि औशीनर देखिये) । शांतनु राजा की माता सुनंदा, एवं युधिष्ठिर का श्र्वशुर गोवासन इसी प्रदेश के रहनेवाले थे
[म. आ. ९०.४६, ९०.९३] । भारतीय युद्ध में, ये लोग सौवीर देश के राजा जयद्रथ के साथ कौरवपक्ष में शामिल थे
[म. उ. १९६. ७-८] ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. एक सुविख्यात दानशूर राजा, जो शिबि लोगों का सब से अधिक ख्यातनाम राजा था (शिबि. १. देखिये) । उशीनर राजा का पुत्र होने के कारण इसे ‘औशीनर’ अथवा ‘औशीनरि’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ था । इसकी राजधानी शिवपुर में थी
[ब्रह्मांड. ३.७४.२०-२३] ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. एक वैदिक मंत्रद्रष्टा के नाते इसका निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है
[ऋ. १०.१७९.१] यह इंद्र के कृपापात्र व्यक्तियों में से एक था, जिसने इसके लिए ‘वर्शिष्ठिय’ के मैदान में यज्ञ किया था, एवं इसे विदेशियों के आक्रमण से बचाया था
[बौ. श्रौ. २१.१८] ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. इस ग्रंथ में इसे उशीनर राजा एवं माधवी का पुत्र कहा गया है, एवं इसके औदार्य की अनेकानेक कथाएँ वहाँ प्राप्त हैं
[म. उ. ११७.२०] । पौराणिकसाहित्य में इसकी माता का नाम दृषद्वती दिया गया है
[वायु. ९९.२१-२३] ;
[ब्रह्मांड. ३.७४.२०-२३] ;
[मत्स्य. ४८.१८] ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. इसके औदार्य की निम्नलिखित कथा सब से अधिक सुविख्यात है । एक बार इसकी सत्त्वपरिक्षा लेने के लिए अग्नि ने कपोत का, एवं इन्द्र ने बाज (श्येन) पक्षी का रूप धारण किया, एवं श्येन पक्षी कपोत का पीछा करता हुआ इसके संमुख उपस्थित हुआ। उस समय कपोत पक्षी इसकी शरण में आया, एवं उसने इसे श्येन को समझाने के लिए कहा। इसके द्वारा प्रार्थना किये जाने पर श्येन ने इससे कहा, ‘अगर तुम इस कपोत के वजन के बराबर अपना मांस काट कर मुझे दोंगे, तो मैं अपने भक्ष्य, इस कपोत को छोड़ दूंगा’। इसने श्येन पक्षी की यह शर्त मान्य कर दी, एवं अपने शरीर का मांस काट कर तराजु में रखना प्रारंभ किया । पश्चात् शरीर के मांसखंड पूरे न पड़ने पर, यह स्वयं ही तराजु के पलड़े में जा कर बैठ गया । इसका यह आत्मनिरपेक्ष दातृत्त्व देख कर, इंद्र एवं अग्नि इससे अत्यधिक प्रसन्न हुए, एवं उन्होंनें इसे अनेकानेक वर प्रदान किये
[म. व. १३०.१९-२०, १३१. परि. १ क्र. २१ पंक्ति ५] । महाभारत में अन्यत्र उपर्युक्त कथा इसकी न हो कर, इसके पुत्र वृषदर्भ की बतलायी गयी है
[म. अनु. ६७] ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. महाभारत में अन्यत्र इसके औदार्य की एक अन्य कथा दी गयी है, जो उपर्युक्त कथा का ही अन्य रूप प्रतीत होता है । एक बार इसके पास एक ब्राह्मण अतिथि आया, जिसने इसके बृहद्गर्भ नामक पुत्र का मांस भोजनार्थ माँगा। यह उसे पका कर सिद्ध कर ही रहा था, कि इतने में उस ब्राह्मण ने इसके अन्तःपुर, शस्त्रगार, एवं हाथी, एवं अश्वशाला आदि को जलाना प्रारंभ किया । यह ज्ञात होते ही, अपने पुत्र का पका हुआ मांस अपने सर पर रख कर यह ब्राह्मण के पीछे दौडा। उस समय उस ब्राह्मण ने वह मांस इसे ही भक्षण करने की आज्ञा दी। तदनुसार यह उसे भक्षण करनेवाला ही था, कि इतने में ब्राह्मण ने संतुष्ट हो कर इसका पुत्र पुनः जीवित किया, एवं इसे अनेकानेक वर प्रदान कर वह चला गया
[म. शां. २२६.१९] ;
[अनु. १३७.४] ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. महाभारत में इसे ययाति राजा का पौत्र, एवं ययाति कन्या माधवी का पुत्र कहा गया है । एवं प्रतर्दन नामक तीन भाईयों के साथ एक यज्ञ किया, जिसका सारा पुण्य इन्होनें स्वर्ग से अधःपतित हुए अपने पितामह ययाति को प्रदान किया । इस प्रकार इन्होंनें ययाति को पुनः एकबार स्वर्गप्राप्ति करायी (माधवी देखिये) । ययाति के स्वर्गप्राप्ति के लिए इसने अन्तरिक्ष में स्थित अपना सारा राज्य उसे प्रदान किया, ऐसा एक रूपकात्मक निर्देश महाभारत में प्राप्त है, जिसका संकेत भी इसी पुण्यदान के आख्यान की ओर प्रतीत होता है
[म. आ. ८८.८] महाभारत में अन्यत्र नारद का, एवं इसका एक संवाद प्राप्त है, जहाँ उसने इसे अपने से भी अधिक पुण्यवान वर्णन किया है
[म.व. परि. १.२१.५.] । यह अत्यंत संपत्तिमान्, उदार, पराक्रमी, राजनीतिप्रवण एवं यज्ञकर्ता राजा था
[म. द्रो. परि. १.८.४०९-४३६] । यह कुछ काल तक इंद्र बना था, एवं ब्रह्मा के यज्ञ का ‘प्रतिष्ठाता’ भी यही था ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. इसने सुहोत्र राजा को दान का महत्त्व कथन किया था । उस समय उसने इसे कहा, ‘दान यह एक ही संपत्ति ऐसी है कि, जो देने से अधिक बढती है’
[म. व. परि. १.२१.२] । इसका यह उपदेश सुन कर, सुहोत्र ने इसे सम्मानपूर्वक विदा किया ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. मृत्यु के पश्चात् यह यमसभा का सदस्य हुआ
[म. स. ८.९] । मृत्यु के पश्चात्, उत्तर-गोग्रहणयुद्ध के समय पांडवों के पराक्रम को देखने के लिए अन्य देवों के साथ यह उपस्थित हुआ था
[म. वि. ५१.९१७* पंक्ति. ३०] । इसके माहात्म्य की अनेकानेक कथाएँ पद्म में प्राप्त हैं
[पद्म. उ. ८२, ११९] ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) n. इसके निम्नलिखित चार पुत्र थेः-- १. वृषादर्भ, २. सुवीर; ३. मद्र; ४. केकय
[भा. ९.२३.३] । इसके इन पुत्रों ने पंजाब प्रदेश में क्रमशः वृषादर्भ, सौवीर, केकय, एवं मद्र राज्यों की स्थापना की, एवं इस प्रकार वे समस्त पंजाब प्रदेश के स्वामी बन गये। उपर्युक्त पुत्रों के अतिरिक्त, इसके गोपति, एवं बृहद्गर्भ नामक पुत्रों का निर्देश भी महाभारत में प्राप्त है
[म. शां. ४९.७०] ।
शिबि (औशीनर , औशीनरि) II. n. उशीनर देश का एक राजा, जो द्रौपदीस्वयवंर में उपस्थित था
[म. आ. ६०.२१] । भारतीय युद्ध में यह पांडवों के पक्ष में शामिल था । अन्त में यह द्रोण के द्वारा मारा गया
[म. द्रो. १३०.१७] ।
शिबि (सिबोही) (गणराज्य) n. एक गणराज्य (सिकंदर आक्रमणकालीन - उत्तर पश्चिम भारतीय लोकसमूह एवं गणराज्य)
जो दक्षिण पंजाब में वितस्ता एवं चिनाब के संगम के दाये ओर स्थित था । सिकंदर के अपने देश लौटते समय इन लोगों ने बिना लडे ही उसकी अधीनता स्वीकृत की थी ।
शिबि II. n. एक दैत्य, जो हिरण्यकशिपु का पुत्र था
[म. आ. ५९.११] । किंतु पौराणिक साहित्य में इसे प्रह्लाद का पुत्र कहा गया है
[मत्स्य. ६.९] ;
[विष्णु. १.२१.१] । यह द्रुम राजा के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ था
[म. आ. ६१.८] ।
शिबि III. n. तामस मन्वंतर का इन्द्र
[वायु. ६२.४०] ।
शिबि IV. n. (स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो चाक्षुष मनु एवं नड्वला के पुत्रों में से एक था
[भा. ४.१३.१६] ।
शिबि V. n. (सो. वृष्णि.) एक यादव राजा, जो वृष्णि एवं माद्री के पुत्रों में से एक था
[मत्स्य. ४५.२] ।
शिबि VI. n. पुरूरवस्वंशीय शिनि राजा का नामांतर (शिनि १. देखिये)
शिबि VII. n. एक आचार्य, जो शुनस्कर्ण बाष्कीह नामक आचार्य का पिता था (शुनष्कर्ण बाष्कीह देखिये) ।
शिबि VIII. n. भूतपूर्व पाँच इंद्रों में से एक, जो शिव की आज्ञा से पृथ्वी पर अवतीर्ण हुआ था
[म. आ. १९.१६*] ।