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सुवर्णष्ठीविन्

   
Script: Devanagari

सुवर्णष्ठीविन्

सुवर्णष्ठीविन् n.  एक राजा, जो सृंजय शैब्य (श्र्वैत्य) राजा का पुत्र था । इसका धर्म, मल, मूत्र, आदि सारा मलोत्सर्ग सुवर्णमय रहता था । इसी कारण चोरों ने इसका अपहरण किया, एवं इसका वध किया [म. द्रो. परि. १.८.३१०-३२५] । आगे चल कर नारद ने इसे पुनः जीवित किया [म. द्रो. ७१.८-९] । महाभारत में अन्यत्र प्राप्त कथा के अनुसार, इसे हिरण्यनाभ नामान्तर प्राप्त था, एवं यह गुणों में साक्षात् इंद्रतुल्य था । अपने गुणों के कारण भविष्य में यह कहीं इंद्रपद प्राप्त न कर ले, इस आशंका से इंद्र ने व्याघ्र के द्वारा इसका वध किया । मृत्यु के समय इसकी आयु पंद्रह वर्षों की थी । आगे चल कर इसके पिता सृंजय के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर नारद ने इसे पुनः जीवित किया । इसकी सुकुमारी नामक एक बहन थी, जो नारद की पत्‍नी थी । इसकी अकाल मृत्यु के पश्चात् पुत्रशोक से व्याकुल हुए सृंजय राजा को, नारद ने सोलह श्रेष्ठ प्राचीन राजाओं के जीवनचरित्र (षोडश राजकीय), एवं उनकी मृत्यु की कथाएँ सुनाई, एवं हर एक श्रेष्ठ व्यक्ति के जीवन में मृत्यु अटल बता कर उसे सांत्वना दी। नारद के द्वारा वर्णित यही ‘षोडश राजकीय’आख्यान अभिमन्यु वध के पश्चात् व्यास के द्वारा युधिष्ठिर को कथन किया गया था [म. शां. परि. १]

सुवर्णष्ठीविन्

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English |   | 
सु-वर्ण—ष्ठी°विन्  m. m. ‘spitting gold’, N. of a son of सृञ्जय, [MBh.]
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सु वर्ण ष्ठी°विन्

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